"शर्मदार की मौत -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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और तीसरे से आचार्य ने स्वयं कहा- | और तीसरे से आचार्य ने स्वयं कहा- | ||
"महाशय, मुझे आप जैसे व्यक्ति से इस तरह का अपराध करने की उम्मीद नहीं थी। अब आप जा सकते हैं।" | "महाशय, मुझे आप जैसे व्यक्ति से इस तरह का अपराध करने की उम्मीद नहीं थी। अब आप जा सकते हैं।" | ||
राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने आचार्य से पूछा- | |||
"आचार्य, आपने एक ही अपराध की तीन सज़ाएँ सुनाई, इसके पीछे क्या कारण है ?" | "आचार्य, आपने एक ही अपराध की तीन सज़ाएँ सुनाई, इसके पीछे क्या कारण है ?" | ||
विद्याधर ने कहा- | विद्याधर ने कहा- | ||
"महाराज! इसका उत्तर आपको कल मिल जाएगा। इन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पूरा ब्यौरा पता करके मैं आपको कल दे दूँगा। इससे आपको अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। अगले दिन आचार्य विद्याधर ने राजा को प्रश्न का उत्तर दिया- | "महाराज! इसका उत्तर आपको कल मिल जाएगा। इन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पूरा ब्यौरा पता करके मैं आपको कल दे दूँगा। इससे आपको अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल जाएगा। अगले दिन आचार्य विद्याधर ने राजा को प्रश्न का उत्तर दिया- | ||
"महाराज, मैंने उन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पता किया है। जिस अपराधी को मुँह काला करके चौराहे पर कोड़े लगवाये गये थे, वह अब शराब पीकर जुआ खेल रहा है, उस को अपने अपराध और मिले दंड से किसी प्रकार की कोई शर्मिंदगी नहीं है। दूसरा अपराधी, जिसे एक रात जेल में रखा गया था, उसे सज़ा से इतनी शर्मिंदगी हुई कि वह सदैव के लिए राज्य छोड़कर चला गया। तीसरा अपराधी जिससे मैंने सिर्फ इतना कहा था कि आप जैसे व्यक्ति से मुझे ऐसे अपराध की उम्मीद नहीं थी, उसे इतनी शर्मिंदगी हुई कि उसने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली।" | "महाराज, मैंने उन तीनों अपराधियों के सम्बंध में पता किया है। जिस अपराधी को मुँह काला करके चौराहे पर कोड़े लगवाये गये थे, वह अब शराब पीकर जुआ खेल रहा है, उस को अपने अपराध और मिले दंड से किसी प्रकार की कोई शर्मिंदगी नहीं है। दूसरा अपराधी, जिसे एक रात जेल में रखा गया था, उसे सज़ा से इतनी शर्मिंदगी हुई कि वह सदैव के लिए राज्य छोड़कर चला गया। तीसरा अपराधी जिससे मैंने सिर्फ इतना कहा था कि आप जैसे व्यक्ति से मुझे ऐसे अपराध की उम्मीद नहीं थी, उसे इतनी शर्मिंदगी हुई कि उसने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली।" | ||
राजा ने पूछा- "लेकिन आपको यह कैसे पता चला आचार्य कि तीनों को अलग अलग सज़ा दी जानी चाहिए।" | राजा ने पूछा- "लेकिन आपको यह कैसे पता चला आचार्य कि तीनों को अलग अलग सज़ा दी जानी चाहिए।" | ||
"महाराज! हमारा उद्देश्य अपराध को समाप्त करना है न कि अपराधी को दंडित करना। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति, आचरण, निष्ठा आदि ऐसे गुण हैं जिनसे वह पहचाना जाता है। जब मैंने इन तीनों अपराधियों की दिनचर्या, आचरण, शिक्षा, पृष्ठभूमि आदि को लेकर कुछ प्रश्न किये तो मुझे मालूम हो गया था कि किस व्यक्ति की क्या प्रकृति है और मैंने यही समझ कर उन्हें भिन्न दंड दिये और उन दंडों का असर भी भिन्न भिन्न ही हुआ। | "महाराज! हमारा उद्देश्य अपराध को समाप्त करना है न कि अपराधी को दंडित करना। प्रत्येक मनुष्य की प्रकृति, आचरण, निष्ठा आदि ऐसे गुण हैं जिनसे वह पहचाना जाता है। जब मैंने इन तीनों अपराधियों की दिनचर्या, आचरण, शिक्षा, पृष्ठभूमि आदि को लेकर कुछ प्रश्न किये तो मुझे मालूम हो गया था कि किस व्यक्ति की क्या प्रकृति है और मैंने यही समझ कर उन्हें भिन्न दंड दिये और उन दंडों का असर भी भिन्न भिन्न ही हुआ।" | ||
आइये अब वापस चलते हैं... | आइये अब वापस चलते हैं... | ||
मनुष्य और जानवर में सामान्य रूप से कुछ अंतर माने जाते हैं। वे हैं- | मनुष्य और जानवर में सामान्य रूप से कुछ अंतर माने जाते हैं। वे हैं- |
07:40, 16 जुलाई 2012 का अवतरण
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