"ईमानदारी की क़ीमत -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
[[चित्र:Bhrashtachar.jpg|225px|right|border]] | [[चित्र:Bhrashtachar.jpg|225px|right|border]] | ||
<poem> | <poem> | ||
एक उदयीमान भ्रष्टाचारी मंत्री | एक उदयीमान भ्रष्टाचारी मंत्री, अपने कार्यालय में उदास बैठे हैं... एकाएक अपने निजी सचिव से ठंडी साँस लेकर कहते हैं - | ||
"इस बार भी 15 अगस्त पर झण्डा फहराने के लिए किसी 'बड़ी' जगह से कोई इंविटेशन नहीं आया ना ?" | "इस बार भी 15 अगस्त पर झण्डा फहराने के लिए किसी 'बड़ी' जगह से कोई इंविटेशन नहीं आया ना ?" | ||
"नहीं सर ! ऐसी बात नहीं है, कई जगह से इंविटेशन है।" सचिव ने कार्ड दिखाए | "नहीं सर ! ऐसी बात नहीं है, कई जगह से इंविटेशन है।" सचिव ने कार्ड दिखाए | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 56: | ||
इसके साथ ही ईमानदारी एक उपदेश की वस्तु हो गयी। जहाँ भी उपदेश दिया जा रहा है, ईमानदारी का दिया जा रहा है और मनुष्य का सहज स्वभाव होता है कि उपदेश हमेशा ऊब पैदा करता है। हज़ारों साल से वही एक से उपदेश चले आ रहे हैं लेकिन उनका कितना असर होता है, हम सभी जानते हैं। ईमानदारी को अँग्रेज़ी में एक कहावत बना कर समझाया गया कि 'Honesty is the best policy' याने ईमानदारी एक सबसे अच्छी नीति है। ईमानदारी को पॉलिसी बनाया गया। यदि आप योजनाबद्ध तरीक़े से ईमानदार हैं तो यह आपके लिए लाभकारी रहेगी। इससे हुआ क्या ?... कुछ नहीं। | इसके साथ ही ईमानदारी एक उपदेश की वस्तु हो गयी। जहाँ भी उपदेश दिया जा रहा है, ईमानदारी का दिया जा रहा है और मनुष्य का सहज स्वभाव होता है कि उपदेश हमेशा ऊब पैदा करता है। हज़ारों साल से वही एक से उपदेश चले आ रहे हैं लेकिन उनका कितना असर होता है, हम सभी जानते हैं। ईमानदारी को अँग्रेज़ी में एक कहावत बना कर समझाया गया कि 'Honesty is the best policy' याने ईमानदारी एक सबसे अच्छी नीति है। ईमानदारी को पॉलिसी बनाया गया। यदि आप योजनाबद्ध तरीक़े से ईमानदार हैं तो यह आपके लिए लाभकारी रहेगी। इससे हुआ क्या ?... कुछ नहीं। | ||
ये कोई अच्छा समाधान नहीं था। | ये कोई अच्छा समाधान नहीं था। | ||
असल में होना क्या चाहिए ? बेईमानी हटाओ, बेईमानी को रोको, झूठ मत बोलो, भ्रष्टाचार बंद करो, भ्रष्टाचार मत करो, इससे कानों में दिन और रात जो चीज़ गूँजने लगती है, वो है, 'बेईमानी और भ्रष्टाचार'। दिन और रात अख़बारों में और पत्रिकाओं में पढ़ने को भ्रष्टाचार के क़िस्से आते हैं। | असल में होना क्या चाहिए ? बेईमानी हटाओ, बेईमानी को रोको, झूठ मत बोलो, भ्रष्टाचार बंद करो, भ्रष्टाचार मत करो, इससे कानों में दिन और रात जो चीज़ गूँजने लगती है, वो है, 'बेईमानी और भ्रष्टाचार'। दिन और रात अख़बारों में और पत्रिकाओं में पढ़ने को भ्रष्टाचार के क़िस्से आते हैं। प्रमुख समाचार होते हैं, ब्रेकिंग न्यूज़ होती है कि फ़लाँ ने भ्रष्टाचार कर दिया, फलाँ स्कैम हो गया, फ़लाँ घोटाला हो गया... दिमाग़ में यही सब चलता रहता है। इसमें कमाल की बात ये है, कि जो लोग ये घोटाला करते हैं, उनकी जीवन-शैली को बड़े विस्तार से बताया जाता है, कि उन पर कितने करोड़ की सम्पत्ति मिली, कितना अधिक उन्हें समाज में महत्त्व मिलता था, किस तरह वो विदेशों में यात्राएँ करते थे, कैसे वो ऐशो-आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे थे। उसके बाद कुछ दिन जेल जाते हैं, जेल के बाद फिर ज़मानत पर बाहर आ जाते हैं, उनकी सम्पत्ति का एक छोटा सा हिस्सा जब्त कर लिया जाता है। क्योंकि अभी तक किसी भ्रष्टाचारी की सम्पत्ति को पूरी तरह से ज़ब्त करने का और उसे बिल्कुल कंगाल बना देने का, कंगाल से अर्थ है कि उसे बिल्कुल एक आम निम्न मध्यवर्गीय का जीवन बिताने पर मजबूर कर देने के कोई उदाहरण सामने नहीं आया है। | ||
प्रमुख समाचार होते हैं, ब्रेकिंग न्यूज़ होती है कि फ़लाँ ने भ्रष्टाचार कर दिया, फलाँ स्कैम हो गया, फ़लाँ घोटाला हो गया... दिमाग़ में यही सब चलता रहता है। इसमें कमाल की बात ये है, कि जो लोग ये घोटाला करते हैं, उनकी जीवन-शैली को बड़े विस्तार से बताया जाता है, कि उन पर कितने करोड़ की सम्पत्ति मिली, कितना अधिक उन्हें समाज में महत्त्व मिलता था, किस तरह वो विदेशों में यात्राएँ करते थे, कैसे वो ऐशो-आराम की ज़िंदगी बसर कर रहे थे। उसके बाद कुछ दिन जेल जाते हैं, जेल के बाद फिर ज़मानत पर बाहर आ जाते हैं, उनकी सम्पत्ति का एक छोटा सा हिस्सा जब्त कर लिया जाता है। क्योंकि अभी तक किसी भ्रष्टाचारी की सम्पत्ति को पूरी तरह से ज़ब्त करने का और उसे बिल्कुल कंगाल बना देने का, कंगाल से अर्थ है कि उसे बिल्कुल एक आम निम्न मध्यवर्गीय का जीवन बिताने पर मजबूर कर देने के कोई उदाहरण सामने नहीं आया है। | |||
घोटाले होते रहते है, लोग मौज लेते रहते हैं। ये सब हुआ कि बेईमानी हटाओ और भ्रष्टाचार हटाओ की रट लगाने से। कोई प्रयास ऐसा नहीं हुआ कि भ्रष्टाचार की जगह ये कहा गया हो कि सदाचार को लाओ, ये कहा गया हो कि ईमानदारी को लाओ और अगर ये कहा भी गया है तो केवल कहा गया है उसके लिए प्रयास कुछ नहीं किया गया। | घोटाले होते रहते है, लोग मौज लेते रहते हैं। ये सब हुआ कि बेईमानी हटाओ और भ्रष्टाचार हटाओ की रट लगाने से। कोई प्रयास ऐसा नहीं हुआ कि भ्रष्टाचार की जगह ये कहा गया हो कि सदाचार को लाओ, ये कहा गया हो कि ईमानदारी को लाओ और अगर ये कहा भी गया है तो केवल कहा गया है उसके लिए प्रयास कुछ नहीं किया गया। | ||
क्या सभी नेता, क्या सभी अधिकारी भ्रष्ट हैं, ऐसा नहीं है। अनेक नेता ऐसे थे, और आज भी हैं, जो भ्रष्ट नहीं हैं। अनेक अधिकारी ऐसे हैं जो भ्रष्ट नहीं हैं और उन्हें भ्रष्टाचार की जो मौज भरी ज़िंदगी है, उससे मोह भी नहीं रखते है। तो क्या इन ईमानदार नेताओं, इन ईमानदार अधिकारियों, इन ईमानदार व्यापारियों या समाज के और दूसरे तबके के लोगों को इस बात के लिए सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए। | क्या सभी नेता, क्या सभी अधिकारी भ्रष्ट हैं, ऐसा नहीं है। अनेक नेता ऐसे थे, और आज भी हैं, जो भ्रष्ट नहीं हैं। अनेक अधिकारी ऐसे हैं जो भ्रष्ट नहीं हैं और उन्हें भ्रष्टाचार की जो मौज भरी ज़िंदगी है, उससे मोह भी नहीं रखते है। तो क्या इन ईमानदार नेताओं, इन ईमानदार अधिकारियों, इन ईमानदार व्यापारियों या समाज के और दूसरे तबके के लोगों को इस बात के लिए सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए। | ||
बहुत से लोग ऐसे हैं जो नियमित टॅक्स देते हैं। सामान्य रूप से भारत में ये माना जाता है कि जो लोग भारत में नौकरी कर रहे हैं, उनका टॅक्स सीधा का सीधा दिया जाता है क्योंकि नौकरी की आमदनी एक नम्बर की आमदनी होती है। सीधे के सीधे टॅक्स उसमें से कट जाता है वे लोग तो बहुत सारा टॅक्स दे रहे हैं लेकिन जो और व्यापार कर रहे हैं या दूसरे तरीके से धर्नाजन कर रहे हैं, उनसे टॅक्स ले पाने का कोई बहुत प्रभावशाली तरीक़ा किसी सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है। | बहुत से लोग ऐसे हैं जो नियमित टॅक्स देते हैं। सामान्य रूप से भारत में ये माना जाता है कि जो लोग भारत में नौकरी कर रहे हैं, उनका टॅक्स सीधा का सीधा दिया जाता है क्योंकि नौकरी की आमदनी एक नम्बर की आमदनी होती है। सीधे के सीधे टॅक्स उसमें से कट जाता है वे लोग तो बहुत सारा टॅक्स दे रहे हैं लेकिन जो और व्यापार कर रहे हैं या दूसरे तरीके से धर्नाजन कर रहे हैं, उनसे टॅक्स ले पाने का कोई बहुत प्रभावशाली तरीक़ा किसी सरकार ने अभी तक लागू नहीं किया है। | ||
तो फिर होना क्या चाहिए ? टॅक्स से सरकार चलती है और देश को चलाती है। कोई भी देश सुदृढ़ अर्थव्यवस्था से ही चल पाता है और इस अर्थव्यवस्था से ही यानी उसकी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति से ही उसकी सारी व्यवस्थाऐं हो पाती हैं। किसी देश की रक्षा के लिए जितना आवश्यक उन देशवासियों का देशभक्त होना है, उतना ही आवश्यक है उस देश के पास अच्छी आर्थिक व्यवस्था, अच्छे अर्थ का इंतजाम होना और संसाधनों का सुदृढ़ और मजबूत होना। टॅक्स से ही सरकार धर्नाजन करती है। | तो फिर होना क्या चाहिए ? टॅक्स से सरकार चलती है और देश को चलाती है। कोई भी देश सुदृढ़ अर्थव्यवस्था से ही चल पाता है और इस अर्थव्यवस्था से ही यानी उसकी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति से ही उसकी सारी व्यवस्थाऐं हो पाती हैं। किसी देश की रक्षा के लिए जितना आवश्यक उन देशवासियों का देशभक्त होना है, उतना ही आवश्यक है उस देश के पास अच्छी आर्थिक व्यवस्था, अच्छे अर्थ का इंतजाम होना और संसाधनों का सुदृढ़ और मजबूत होना। टॅक्स से ही सरकार धर्नाजन करती है। | ||
टॅक्स देने वाले, और टॅक्स चोरी करने वालों में फ़र्क़ किया जाना चाहिए। लेकिन क्या ? टॅक्स न देने वालों के लिए तमाम सरकारी योजनाएँ हैं, उनके यहाँ रेड की जाती है, उन पर जुर्माने किए जाते हैं। उनको जेल की सज़ा दी जाती है, लेकिन जो नियमित टॅक्स देते हैं, उनको सरकार क्या सुविधाएँ देती है? उनका क्या सम्मान होता है? | टॅक्स देने वाले, और टॅक्स चोरी करने वालों में फ़र्क़ किया जाना चाहिए। लेकिन क्या ? टॅक्स न देने वालों के लिए तमाम सरकारी योजनाएँ हैं, उनके यहाँ रेड की जाती है, उन पर जुर्माने किए जाते हैं। उनको जेल की सज़ा दी जाती है, लेकिन जो नियमित टॅक्स देते हैं, उनको सरकार क्या सुविधाएँ देती है? उनका क्या सम्मान होता है? | ||
रेल, बस, हवाई जहाज़, सिनेमा, आदि की टिकिट खिड़की पर किसी टॅक्स भरने वाले को कोई सुविधा नहीं मिलती। गैस कनॅक्शन, ड्राइविंग लाइसेन्स, हथियार लाइसेन्स, स्कूल-कॉलेज दाख़िला, पासपोर्ट बनवाना, आदि में भी टॅक्स भरने वाले को कोई वरीयता नहीं मिलती। चुनाव में मतदान, संसद भवन का पास, किसी पर्यटन स्थल का टिकिट, आदि में भी कोई सुविधा नहीं। ज़रा सोचिए कि कोई आयकर देकर कौन सी विशेष सुविधा या सम्मान पा रहा है। यदि ऐसा किया जाय तो लोगों को आयकर देने में ज़्यादा अच्छा लगेगा। हमारे देश के प्रजातांत्रिक ढांचे को नुक़सान पहुंचाए, बिना सावधानी पूर्वक, इस तरह के नियम बनाए जा सकते हैं। | रेल, बस, हवाई जहाज़, सिनेमा, आदि की टिकिट खिड़की पर किसी टॅक्स भरने वाले को कोई सुविधा नहीं मिलती। गैस कनॅक्शन, ड्राइविंग लाइसेन्स, हथियार लाइसेन्स, स्कूल-कॉलेज दाख़िला, पासपोर्ट बनवाना, आदि में भी टॅक्स भरने वाले को कोई वरीयता नहीं मिलती। चुनाव में मतदान, संसद भवन का पास, किसी पर्यटन स्थल का टिकिट, आदि में भी कोई सुविधा नहीं। ज़रा सोचिए कि कोई आयकर देकर कौन सी विशेष सुविधा या सम्मान पा रहा है। यदि ऐसा किया जाय तो लोगों को आयकर देने में ज़्यादा अच्छा लगेगा। हमारे देश के प्रजातांत्रिक ढांचे को नुक़सान पहुंचाए, बिना सावधानी पूर्वक, इस तरह के नियम बनाए जा सकते हैं। | ||
अब ज़रा सरकारी कार्यालयों को देखें तो पता चलता है कि वहाँ, रिश्वत लेने-देने वालों को सज़ा दी जाती है लेकिन उसका क्या जो रिश्वत नहीं लेता ? ऐसे कर्मचारियों के लिए क्या पारितोषक है ? सामान्यत: यह माना जाता है कि योग्य और सामान्य कर्मचारियों में 80-20 का अनुपात होता है। अर्थात 10 में से 8 कर्मचारी ऐसे होते हैं जो कम काम करते हैं और कम योग्य होते हैं। यह नियम सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में न्यूनाधिक, समान ही है। जो अधिक कर्मठ, क्रियाशील, रचनात्मक हैं उन्हें क्या विशेष सुविधा है ? कुछ भी नहीं...। एक समय के बाद सभी को प्रोन्नति मिल जाती है चाहे उसने पूरा समय कार्यालय में मक्खी मारते ही बिताया हो...। | अब ज़रा सरकारी कार्यालयों को देखें तो पता चलता है कि वहाँ, रिश्वत लेने-देने वालों को सज़ा दी जाती है लेकिन उसका क्या जो रिश्वत नहीं लेता ? ऐसे कर्मचारियों के लिए क्या पारितोषक है ? सामान्यत: यह माना जाता है कि योग्य और सामान्य कर्मचारियों में 80-20 का अनुपात होता है। अर्थात 10 में से 8 कर्मचारी ऐसे होते हैं जो कम काम करते हैं और कम योग्य होते हैं। यह नियम सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में न्यूनाधिक, समान ही है। जो अधिक कर्मठ, क्रियाशील, रचनात्मक हैं उन्हें क्या विशेष सुविधा है ? कुछ भी नहीं...। एक समय के बाद सभी को प्रोन्नति मिल जाती है चाहे उसने पूरा समय कार्यालय में मक्खी मारते ही बिताया हो...। | ||
पुलिस विभाग में जो अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह मुस्तैद हैं, स्वास्थ्य भी अच्छा रखते हैं और जनता से व्यवहार भी अच्छा रखते हैं उन्हें क्या विशेष लाभ दिया जाता है ? यदि उन्हें पुरस्कृत किया जाय सम्मानित किया जाय तो बात बन सकती है। मोटी-मोटी तोंद वाले दारोग़ा भी जब ये देखेंगे कि उनका स्वस्थ साथी उनसे अधिक तनख्वाह पा रहा है तो उनकी तोंद भी पिचकेगी...। | पुलिस विभाग में जो अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह मुस्तैद हैं, स्वास्थ्य भी अच्छा रखते हैं और जनता से व्यवहार भी अच्छा रखते हैं उन्हें क्या विशेष लाभ दिया जाता है ? यदि उन्हें पुरस्कृत किया जाय सम्मानित किया जाय तो बात बन सकती है। मोटी-मोटी तोंद वाले दारोग़ा भी जब ये देखेंगे कि उनका स्वस्थ साथी उनसे अधिक तनख्वाह पा रहा है तो उनकी तोंद भी पिचकेगी...। | ||
प्रत्येक क्षेत्र में अब इस बात की ज़रूरत है कि ईमानदारी, कर्मठता, योग्यता, सत्यनिष्ठा जैसे गुणों को सम्मानित और पुरस्कृत किया जाय न कि बेईमानी, अकर्मण्यता, अयोग्यता, निष्ठाहीनता का रोना रोया जाय। | |||
प्रत्येक क्षेत्र में अब इस बात की ज़रूरत है कि ईमानदारी, कर्मठता, योग्यता, सत्यनिष्ठा जैसे गुणों को सम्मानित और पुरस्कृत किया जाय न कि बेईमानी, अकर्मण्यता, अयोग्यता, निष्ठाहीनता का रोना रोया जाय। | |||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... |
15:00, 14 अगस्त 2012 का अवतरण
|
|