"भारतकोश सम्पादकीय 31 दिसम्बर 2012": अवतरणों में अंतर
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{{:यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी}} | {{:यमलोक में एक निर्भय अमानत 'दामिनी' -आदित्य चौधरी}} | ||
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| <center>भारतकोश पर अतिथि रचनाकार<br />'श्रीमती चित्रा देसाई' की एक कविता</center> | |||
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>[[छोटी थी -चित्रा देसाई|छोटी थी]] <small>-[[छोटी थी -चित्रा देसाई|चित्रा देसाई]]</small></font></div> | |||
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छोटी थी | |||
तो ज़िद करती थी | |||
फ़्रॉक के लिए, | |||
मेले में जाने | |||
और खिलोंनों के लिए। | |||
खीर पूरी खाने के लिए | |||
नानी की गोदी में सोने के लिए। | |||
थोड़ी बड़ी हुई ... | |||
तो स्कूल के लिए, | |||
नई तख़्ती और | |||
क़लम दवात के लिए। | |||
थोड़ी और बड़ी हुई ... | |||
तो धीरे से मेरे कानों में कहा ... | |||
अब ज़िद करना छोड़ दो। | |||
नानी की दुलारी थी | |||
सो बात मान ली | |||
ज़िद करना छोड़ दिया। | |||
... और धीरे धीरे | |||
मुझे पता ही नहीं चला | |||
कब मेरी ज़मीन पर | |||
दूसरों के गांव बसने लगे। | |||
अनजान लोगों की ज़िद मानने लगी ... | |||
पर आज अचानक भीड़ देखी | |||
तो उस बच्ची की ज़िद याद आई। | |||
बंद संदूक से | |||
अपने ज़िद्दीपन को निकाला, | |||
मनुहार किया अपना ही ... | |||
सुनो! | |||
अपने आह्वान में ... | |||
मेरा भी मन जोड़ लो। | |||
आओ इतनी ज़िद करें | |||
कि छत और दीवार ही नहीं | |||
नींव और ज़मीन भी हिल जाऐं ... | |||
बंद कोठरी से | |||
सबका ज़िद्दी मन निकालें, | |||
खुले मैदानों में फैल जाऐं | |||
अपने आसमान के लिए | |||
सुनसान सड़कों पर | |||
हवा से बह जाऐं। | |||
आओ ... | |||
आज पूरे ज़िद्दी बन जाऐं। | |||
</poem> | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
{{भारतकोश सम्पादकीय}} | {{भारतकोश सम्पादकीय}} | ||
[[Category:सम्पादकीय]] | [[Category:सम्पादकीय]] |
13:35, 17 जनवरी 2013 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह व्यवस्था बड़े शहरों के लिए ही होगी इस कड़े में यह व्यवस्था होती है कि जैसे ही इस कड़े पर दवाब बढ़ता है या इसे खोला जाता है इसकी सूचना निकटतम पुलिस तंत्र को मिल जाती है और पुलिस वहाँ पहुंच जाती है। इसके बटन को दबाने से ही पुलिस को बुलाया जा सकता है।