"समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो ("समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त) |
No edit summary |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
<poem> | <poem> | ||
ज़रा सोचिए किसी मृत्यु कारित करने वाले संगेय अपराध के अपराधी को दिया जाने वाला दण्ड बार-बार बीसियों वर्षों तक परिभाषित किया जाता रहता है। कभी उसे फांसी सुनाई जाती है तो कभी आजीवन कारावास। कभी वह ज़मानत पर जेल से बाहर रहता है तो कभी जेल के अंदर...। किसी भी निचली अदालत के फ़ैसले का पुनर्मूल्यांकन ऊँची अदालतों द्वारा बिना अपील किए ही हो तो बार-बार फ़ैसला बदले जाने की संभावना नहीं होगी। | ज़रा सोचिए किसी मृत्यु कारित करने वाले संगेय अपराध के अपराधी को दिया जाने वाला दण्ड बार-बार बीसियों वर्षों तक परिभाषित किया जाता रहता है। कभी उसे फांसी सुनाई जाती है तो कभी आजीवन कारावास। कभी वह ज़मानत पर जेल से बाहर रहता है तो कभी जेल के अंदर...। किसी भी निचली अदालत के फ़ैसले का पुनर्मूल्यांकन ऊँची अदालतों द्वारा बिना अपील किए ही हो तो बार-बार फ़ैसला बदले जाने की संभावना नहीं होगी। | ||
अदालतों में लाखों केस लंबित हैं। क्या कारण है? एक कारण तो मुख्य है ही कि न्यायपालिका के पास अदालत, जज, अधिकारी और कर्मचारियों की कमी है। यह कमी जायदाद की ख़रीद-बिक्री के पंजीयन कार्यालय में नहीं है। ना ही रजिस्ट्री ऑफ़िस में लोगों को अधिक इंतज़ार करना पड़ता है। देर रात तक ये कार्यालय खुले रहते | अदालतों में लाखों केस लंबित हैं। क्या कारण है? एक कारण तो मुख्य है ही कि न्यायपालिका के पास अदालत, जज, अधिकारी और कर्मचारियों की कमी है। यह कमी जायदाद की ख़रीद-बिक्री के पंजीयन कार्यालय में नहीं है। ना ही रजिस्ट्री ऑफ़िस में लोगों को अधिक इंतज़ार करना पड़ता है। देर रात तक ये कार्यालय खुले रहते हैं, क्योंकि वहाँ से सरकार को अरबों का राजस्व मिलता है, जो कि अदालतों से मिलना संभव नहीं है। दीवानी अदालत में तो ऐसी व्यवस्था है लेकिन फ़ौजदारी में सरकार को मिलने वाला राजस्व नगण्य ही है। | ||
एक और अहम् कारण है- वकीलों की फ़ीस की प्रक्रिया। जिस तरह गब्बर सिंह कहता है कि बसंती! जब तक तेरे पैर चलेंगे वीरू की सांस चलेगी, उसी तरह जब तक केस की तारीख़ पड़ती रहेंगी वकील साहब को प्रत्येक तारीख़ पर जाने का मेहनताना मिलता रहेगा। अब बताइये...क्या कोई वकील चाहेगा कि केस जल्दी ख़त्म हो? केस तो बस चलता रहे... चलता रहे। जिस तरह टॅलीविज़न-धारावाहिक के कलाकार, निर्माता, निर्देशक आदि यह चाहते हैं कि धारावाहिक चलता रहे... चलता रहे...। | एक और अहम् कारण है- वकीलों की फ़ीस की प्रक्रिया। जिस तरह गब्बर सिंह कहता है कि बसंती! जब तक तेरे पैर चलेंगे वीरू की सांस चलेगी, उसी तरह जब तक केस की तारीख़ पड़ती रहेंगी, वकील साहब को प्रत्येक तारीख़ पर जाने का मेहनताना मिलता रहेगा। अब बताइये...क्या कोई वकील चाहेगा कि केस जल्दी ख़त्म हो? केस तो बस चलता रहे... चलता रहे। जिस तरह टॅलीविज़न-धारावाहिक के कलाकार, निर्माता, निर्देशक आदि यह चाहते हैं कि धारावाहिक चलता रहे... चलता रहे...। | ||
हाँ! कुछ केस ऐसे होते हैं जो ठेके पर लड़े जाते हैं जैसे कि सड़क दुर्घटना के मुआवज़े के केस। सामान्यत: इन मुक़दमों में वकील से एक निश्चित धनराशि निर्धारित हो जाती है जो कि मुक़दमा जीतने पर एक मुश्त दी जाती है। इन मुक़दमों के फ़ैसले अपेक्षाकृत कम समय में ही हो जाते हैं। ज़मानत के मामलों में भी ज़्यादातर यही ठेका प्रक्रिया चलती है। | हाँ! कुछ केस ऐसे होते हैं जो ठेके पर लड़े जाते हैं जैसे कि सड़क दुर्घटना के मुआवज़े के केस। सामान्यत: इन मुक़दमों में वकील से एक निश्चित धनराशि निर्धारित हो जाती है जो कि मुक़दमा जीतने पर एक मुश्त दी जाती है। इन मुक़दमों के फ़ैसले अपेक्षाकृत कम समय में ही हो जाते हैं। ज़मानत के मामलों में भी ज़्यादातर यही ठेका प्रक्रिया चलती है। | ||
पुराने समय के निर्धारित जुर्माने और सज़ा भी एक मुख्य कारण है। इसके लिए भी हमें | पुराने समय के निर्धारित जुर्माने और सज़ा भी एक मुख्य कारण है। इसके लिए भी हमें बिलगेट्स के माइक्रोसॉफ़्ट से सीख लेनी चाहिए। ऑपरेटिंग सिस्टम के नये से नये रूपांतरण (वर्ज़न) लाना और लगातार सॉफ़्टवेयर अपडेट का आना ही माइक्रोसॉफ़्ट की सफलता का राज़ है। ज़माना अपडेट्स का है। न्यायपालिका और कार्यपालिका भी समाज के ऑपरेटिंग सिस्टम हैं। जिनको समय-समय पर नये रूपान्तरण (वर्ज़न) और अद्यतन (अपडेट) की आवश्यकता होती है। किसी भी शिक्षा, तंत्र, तकनीक की तरह ही न्याय व्यवस्था को भी अद्यतन रहने की आवश्यकता है। यदि न्याय व्यवस्था को समय-समय पर अद्यतन न किया गया तो न्याय-व्यवस्था की भूमिका समाज के प्रगति और विकास के रास्ते में नकारात्मक ही रहेगी जो कि आज है भी। बहुत सारे जुर्माने और सज़ा पुराने समय से चले आ रहे हैं। जिन्हें पुनरीक्षण की अनिवार्य आवश्यकता है। | ||
ट्रॅफ़िक के क़ानून को ही उदाहरण के लिए लें तो जुर्मानों की रक़म सुनकर हँसी आती है। 100-500 या हज़ार दो हज़ार... जबकि ट्रॅफ़िक का नियम तोड़ने से मनुष्य की जान भी जा सकती है। ज़रा सोचिए कि शराब पीकर वाहन चलाने का जुर्माना यदि एक लाख रुपया कर दिया जाय और एक सप्ताह की सज़ा अनिवार्य हो, साथ ही जुर्माना न दे पाने की स्थिति में एक वर्ष की क़ैद बा-मशक़्क़त हो... तो क्या होगा... शराब तो दूर की बात है कोई ख़ाँसी की दवाई पीकर भी वाहन नहीं चलाएगा... यहाँ एक शाश्वत समस्या तो है कि पुलिस वालों की रिश्वत भी बड़ी हाइ-फ़ाइ हो जाएगी लेकिन फिर भी समस्या बहुत हद तक कम होगी और सरकार को राजस्व भी मिलेगा। | ट्रॅफ़िक के क़ानून को ही उदाहरण के लिए लें तो जुर्मानों की रक़म सुनकर हँसी आती है। 100-500 या हज़ार दो हज़ार... जबकि ट्रॅफ़िक का नियम तोड़ने से मनुष्य की जान भी जा सकती है। ज़रा सोचिए कि शराब पीकर वाहन चलाने का जुर्माना यदि एक लाख रुपया कर दिया जाय और एक सप्ताह की सज़ा अनिवार्य हो, साथ ही जुर्माना न दे पाने की स्थिति में एक वर्ष की क़ैद बा-मशक़्क़त हो... तो क्या होगा... शराब तो दूर की बात है कोई ख़ाँसी की दवाई पीकर भी वाहन नहीं चलाएगा... यहाँ एक शाश्वत समस्या तो है कि पुलिस वालों की रिश्वत भी बड़ी हाइ-फ़ाइ हो जाएगी लेकिन फिर भी समस्या बहुत हद तक कम होगी और सरकार को राजस्व भी मिलेगा। | ||
न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की स्थापना का अर्थ है देश का संपूर्ण पतन... इसलिए यदि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं हो सकता तो इसको वैधानिक मान्यता देकर इसका "राष्ट्रीयकरण" ही कर देना चाहिए... | न्यायपालिका में भ्रष्टाचार की स्थापना का अर्थ है देश का संपूर्ण पतन... इसलिए यदि भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं हो सकता तो इसको वैधानिक मान्यता देकर इसका "राष्ट्रीयकरण" ही कर देना चाहिए... |
11:24, 21 सितम्बर 2013 का अवतरण
समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम -आदित्य चौधरी "यार! ये बंडा काका का तो लास्ट शो चल रहा है... ये तो टेंऽऽऽ बोलने वाला है... पक्का मरेगा अब तो पक्का... सीधी सी बात है कि इलाज का पैसा तो है नईं..." आइए भारतकोश पर वापस चलें- ज़रा सोचिए किसी मृत्यु कारित करने वाले संगेय अपराध के अपराधी को दिया जाने वाला दण्ड बार-बार बीसियों वर्षों तक परिभाषित किया जाता रहता है। कभी उसे फांसी सुनाई जाती है तो कभी आजीवन कारावास। कभी वह ज़मानत पर जेल से बाहर रहता है तो कभी जेल के अंदर...। किसी भी निचली अदालत के फ़ैसले का पुनर्मूल्यांकन ऊँची अदालतों द्वारा बिना अपील किए ही हो तो बार-बार फ़ैसला बदले जाने की संभावना नहीं होगी। जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की स्थिति में अक्सर होता है कि अमीरों, नेताओं और सॅलिब्रिटी ग़ुंडों को जेलों में फ़ाइव स्टार जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं। क्या समस्या है यदि जेलों में कुछ हिस्सा इस तरह की सुविधाओं से भरपूर हो इसका किराया इन हाइ-फ़ाइ अपराधियों से वसूला जाय। साथ ही शारीरिक परिश्रम में कोई ढील न बरती जाय। ऐसी फ़ाइव स्टार जेलों में रहने पर सज़ा की अवधि भी साधारण जेल से कम से कम दो गुनी या तीन गुनी हो। |
पिछले सम्पादकीय