"यूँ तो कुछ भी नया नहीं -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
|-
|-
|  
|  
<br />
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>
<noinclude>[[चित्र:Copyright.png|50px|right|link=|]]</noinclude>  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>वक़्त बहुत कम है<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;"><font color=#003333 size=5>यूँ तो कुछ भी नया नहीं<br />
<small>-आदित्य चौधरी</small></font></div>
----
----
{| width="100%" style="background:transparent"
|-valign="top"
| style="width:35%"|
| style="width:35%"|
<poem style="color=#003333">
<poem style="color=#003333">
यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
पंक्ति 26: पंक्ति 28:
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!
</poem>
</poem>
| style="width:30%"|
|}
|}
|}
<br />


<noinclude>
<noinclude>

07:21, 24 सितम्बर 2013 का अवतरण

वक़्त बहुत कम है -आदित्य चौधरी

यूँ तो कुछ भी नया नहीं मेरे फ़साने में !
लुत्फ़ आता है, तुझे बारहा सुनाने में !!

वो जो इक दूर से आवाज़ आ रही थी कोई !
उसे तो वक़्त है, मेरे क़रीब आने में !!

तुझे भुला न सकूँगा ये मेरी फ़ितरत है !
चैन मिलता है मुझे, ख़ुद को भूल जाने में !!

सुन के आवाज़ अपने दिल के टूट जाने की !
मैं भी हैरान हूँ, इस क़िस्म के वीराने में !!
 
ग़मे दौराँ की भी क़ीमत लगाई जाती है !
तन्हा जीने की भी, इक शर्त है ज़माने में !!
 
कोई मक़्सद ही नहीं मुझको मिला जीने का !
एक लम्हा ही जीऊँ, जब हो मौत आने में !!