"ताऊ का इलाज -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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आइए अब भारतकोश पर वापस चलते हैं- | आइए अब भारतकोश पर वापस चलते हैं- | ||
मरीज़ों को सरकारी अस्पतालों में और ख़ासकर गाँवों में, किन असुविधाओं से होकर गुज़रना होता है यह किसी से छुपा नहीं है। इस मुद्दे को लेकर अख़बारी आँकड़ों सहित चर्चा करने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है। हम तो कुछ और ही चर्चा करेंगे। | मरीज़ों को सरकारी अस्पतालों में और ख़ासकर गाँवों में, किन असुविधाओं से होकर गुज़रना होता है यह किसी से छुपा नहीं है। इस मुद्दे को लेकर अख़बारी आँकड़ों सहित चर्चा करने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है। हम तो कुछ और ही चर्चा करेंगे। | ||
आज से लगभग 30 साल पहले भारत में रंगीन टी॰वी॰ प्रसारण शुरु हुआ। बाज़ार में विदेशी रंगीन टी॰वी॰ छा गए। सोनी, जे॰वी॰सी, पॅनासोनिक आदि। इनके 21 इंच के टी॰वी॰ की क़ीमत थी लगभग 15 हज़ार रुपए। आज भी इसी नाप के टी॰वी॰ की क़ीमत या तो 15 हज़ार है या इससे भी काफ़ी कम। इन तीस सालों में रुपए के अवमूल्यन को देखते हुए यदि हिसाब लगाया जाय तो आज उसी टी॰वी॰ की क़ीमत बैठती है मात्र हज़ार रुपए। याने टी॰वी॰ 15-16 गुना सस्ता हो गया या शायद और भी सस्ता। आज से 15 साल पहले मोबाइल की 'आउटगोइंग कॉल' और 'इनकमिंग कॉल' की दर थी 6 रुपये से लेकर 18 रुपए। आज तो मोबाइल फ़ोन की दरें 20 गुने से भी ज़्यादा सस्ती हैं। लगभग यही हाल कंप्यूटर का भी है। इस तरह के उत्पादों और सुविधाओं के सस्ते होने का परिणाम यह हुआ कि निम्न | आज से लगभग 30 साल पहले भारत में रंगीन टी॰वी॰ प्रसारण शुरु हुआ। बाज़ार में विदेशी रंगीन टी॰वी॰ छा गए। सोनी, जे॰वी॰सी, पॅनासोनिक आदि। इनके 21 इंच के टी॰वी॰ की क़ीमत थी लगभग 15 हज़ार रुपए। आज भी इसी नाप के टी॰वी॰ की क़ीमत या तो 15 हज़ार है या इससे भी काफ़ी कम। इन तीस सालों में रुपए के अवमूल्यन को देखते हुए यदि हिसाब लगाया जाय तो आज उसी टी॰वी॰ की क़ीमत बैठती है मात्र हज़ार रुपए। याने टी॰वी॰ 15-16 गुना सस्ता हो गया या शायद और भी सस्ता। आज से 15 साल पहले मोबाइल की 'आउटगोइंग कॉल' और 'इनकमिंग कॉल' की दर थी 6 रुपये से लेकर 18 रुपए। आज तो मोबाइल फ़ोन की दरें 20 गुने से भी ज़्यादा सस्ती हैं। लगभग यही हाल कंप्यूटर का भी है। इस तरह के उत्पादों और सुविधाओं के सस्ते होने का परिणाम यह हुआ कि निम्न मध्यवर्ग भी इसका आनंद ले रहा है। | ||
इसी तरह से हम अनेक उत्पाद और सुविधाओं के बारे में अध्ययन कर सकते हैं जो विज्ञान की सहायता से अब बहुत सस्ती हो गई हैं। अब ज़रा स्वास्थ्य सुविधा और इलाज की सुविधाओं के बारे में भी देखें। ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि की दरें कितनी कम या ज़्यादा हुई हैं। यदि यह माना जाय कि विनिमय का माध्यम चाँदी रुपया है और उसमें 10 ग्राम चाँदी है तो इस बात की व्याख्या कुछ इस तरह होगी- | इसी तरह से हम अनेक उत्पाद और सुविधाओं के बारे में अध्ययन कर सकते हैं जो विज्ञान की सहायता से अब बहुत सस्ती हो गई हैं। अब ज़रा स्वास्थ्य सुविधा और इलाज की सुविधाओं के बारे में भी देखें। ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि की दरें कितनी कम या ज़्यादा हुई हैं। यदि यह माना जाय कि विनिमय का माध्यम चाँदी रुपया है और उसमें 10 ग्राम चाँदी है तो इस बात की व्याख्या कुछ इस तरह होगी- | ||
30 वर्ष पहले चाँदी के दस ग्राम के सिक़्क़े का मूल्य था लगभग 28 रुपये। याने चाँदी का रुपया 28 भारतीय रुपये का था। यदि चाँदी के रुपये से टी॰वी॰ ख़रीदा जाता तो 15000 हज़ार के टी॰वी॰ के लिए लगभग 535 रुपये (चाँदी के) देने होते। इसी 15000 के टी॰वी॰ के लिए आज मात्र 33 रुपये (चाँदी के) के देने होंगे। वास्तविकता ये है कि 21 इंच के टी॰वी॰ की क़ीमत इससे भी कम है शायद आधी। | 30 वर्ष पहले चाँदी के दस ग्राम के सिक़्क़े का मूल्य था लगभग 28 रुपये। याने चाँदी का रुपया 28 भारतीय रुपये का था। यदि चाँदी के रुपये से टी॰वी॰ ख़रीदा जाता तो 15000 हज़ार के टी॰वी॰ के लिए लगभग 535 रुपये (चाँदी के) देने होते। इसी 15000 के टी॰वी॰ के लिए आज मात्र 33 रुपये (चाँदी के) के देने होंगे। वास्तविकता ये है कि 21 इंच के टी॰वी॰ की क़ीमत इससे भी कम है शायद आधी। | ||
बाज़ार में यदि ऍक्स-रे की क़ीमत देखी जाय तो 30 साल पहले 15 रुपये में होता था और आज 300 रुपये में। याने 30 साल पहले चाँदी के एक रुपये में दो ऍक्स-रे होते थे और आज केवल एक। टी॰वी॰ की क़ीमत कम होने से इसकी तुलना करें तो आज के समय में ऍक्स-रे को मात्र एक भारतीय रुपये का होना चाहिए या उससे भी कम। | बाज़ार में यदि ऍक्स-रे की क़ीमत देखी जाय तो 30 साल पहले 15 रुपये में होता था और आज 300 रुपये में। याने 30 साल पहले चाँदी के एक रुपये में दो ऍक्स-रे होते थे और आज केवल एक। टी॰वी॰ की क़ीमत कम होने से इसकी तुलना करें तो आज के समय में ऍक्स-रे को मात्र एक भारतीय रुपये का होना चाहिए या उससे भी कम। | ||
हर साल ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि की दरें बढ़ती जा रही हैं। जबकि विज्ञान लगातार तरक़्क़ी कर रहा है। यह तो सही है कि इलाज के लिए नई-नई तकनीक निकलती जा रही हैं लेकिन इलाज दिन ब दिन मँहगा हो रहा है और आम आदमी की पकड़ से बाहर भी। सूचना एवं जन संपर्क और मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान का जो रूप देखने को मिल रहा है वह हमेशा उम्मीद से बढ़कर और | हर साल ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि की दरें बढ़ती जा रही हैं। जबकि विज्ञान लगातार तरक़्क़ी कर रहा है। यह तो सही है कि इलाज के लिए नई-नई तकनीक निकलती जा रही हैं लेकिन इलाज दिन ब दिन मँहगा हो रहा है और आम आदमी की पकड़ से बाहर भी। सूचना एवं जन संपर्क और मनोरंजन के क्षेत्र में विज्ञान का जो रूप देखने को मिल रहा है वह हमेशा उम्मीद से बढ़कर और चमत्कृत करने वाला है। यह चमत्कारिक रूप आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में भी सक्रिय है लेकिन सुविधाएँ आम आदमी की हदों से बाहर क्यों हैं? | ||
इसके पीछे यदि यह व्यावसायिक तर्क काम कर रहा है जो वाणिज्य और | इसके पीछे यदि यह व्यावसायिक तर्क काम कर रहा है जो वाणिज्य और अर्थशास्त्र के मांग-आपूर्ति-उत्पादन नियम पर आधारित है। जिसकी बिक्री ज़्यादा होगी, उसका उतना ही उत्पादन ज्य़ादा होगा और अनेक उत्पादनकर्ताओं के कारण क़ीमत भी कम होती जाएगी... लेकिन यह तर्क इलाज के क्षेत्र में तो काम नहीं करेगा ना? क्योंकि दवाई बनाने के पीछे उद्देश्य उस दवाई को बेचना नहीं बल्कि उस बीमारी को उन हालातों तक पहुँचाना है जहाँ कि बीमारी ख़त्म ही हो जाती है। यदि उद्देश्य मात्र यह है कि दवा ज़्यादा बिके तो इसका अर्थ हुआ कि विक्रेता चाहता है कि बीमारी और मरीज़ बढ़ें... जो कि मानवीयता के ख़िलाफ़ है। इसे आप यूँ भी कह सकते हैं कि पोलियो के टीके के पीछे छुपा उद्देश्य पोलियो को जड़ से मिटाना है न कि टीके की बिक्री बढ़ाना। | ||
अब यहाँ सीधा सा व्यावसायिक गणित काम करता है। ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि कोई भी सुविधा टी॰वी॰ या मोबाइल फ़ोन की तरह घर-घर या हाथ-हाथ तो पहुँच नहीं सकती, इसलिए इनके उपयोगी भी धीमी गति से ही बढ़ रहे हैं। अख़बारों में आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई खोज पढ़ने को मिलती हैं लेकिन उनमें से कितनी हैं जो | अब यहाँ सीधा सा व्यावसायिक गणित काम करता है। ऍक्स-रे, ऍम॰आर॰आई, स्कॅनिंग, अल्ट्रा साउन्ड आदि कोई भी सुविधा टी॰वी॰ या मोबाइल फ़ोन की तरह घर-घर या हाथ-हाथ तो पहुँच नहीं सकती, इसलिए इनके उपयोगी भी धीमी गति से ही बढ़ रहे हैं। अख़बारों में आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई खोज पढ़ने को मिलती हैं लेकिन उनमें से कितनी हैं जो सामान्यजन की आर्थिक सीमा के भीतर है। इनमें से एक प्लास्टिक सर्जरी भी है। यह आज की दुनिया में एक वरदान है लेकिन किनके लिए? सिने तारिकाओं या विज्ञापन मॉडलों के लिए या फिर अमीरों के लिए... जिन ग़रीब बेटियों की शादी मात्र इस कारण रुकी रहती है कि उनके चेहरे पर कटे या जले का निशान है, उनके लिए क्या हम प्लास्टिक सर्जरी को उपलब्ध करा सकते हैं? | ||
मैं अपने शहर मथुरा का ही उदाहरण लूँ तो मेरे शहर में जानवरों का बहुत बड़ा, सुविधाजनक और बड़ा अस्पताल है, अस्पताल के साथ यह प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी है। यहाँ जानवरों के इलाज की पूरी सुविधा है। इंसानों के इलाज के लिए जो ज़िला अस्पताल है उसे देखकर इंसान मरना ज़्यादा पसंद करता है। मन होता है कि इससे अच्छा तो जानवर ही होते कम से कम वॅटनरी अस्पताल में इलाज तो हो जाता। ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ़ समस्या ही बता रहा हूँ। इस सब को ठीक करने के उपाय भी हैं। यह उपाय है अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा। स्वास्थ्य बीमा होने से किसी भी निजी अस्पताल को फ़ीस की समस्या नहीं रहेगी और न ही मरीज़ को अपने इलाज की। अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा समाज के प्रत्येक स्तर पर लागू होना चाहिए। बीमारियों की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए इस बीमे के अनेक स्तर रखे जा सकते हैं। | मैं अपने शहर मथुरा का ही उदाहरण लूँ तो मेरे शहर में जानवरों का बहुत बड़ा, सुविधाजनक और बड़ा अस्पताल है, अस्पताल के साथ यह प्रसिद्ध विश्वविद्यालय भी है। यहाँ जानवरों के इलाज की पूरी सुविधा है। इंसानों के इलाज के लिए जो ज़िला अस्पताल है उसे देखकर इंसान मरना ज़्यादा पसंद करता है। मन होता है कि इससे अच्छा तो जानवर ही होते कम से कम वॅटनरी अस्पताल में इलाज तो हो जाता। ऐसा नहीं है कि मैं सिर्फ़ समस्या ही बता रहा हूँ। इस सब को ठीक करने के उपाय भी हैं। यह उपाय है अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा। स्वास्थ्य बीमा होने से किसी भी निजी अस्पताल को फ़ीस की समस्या नहीं रहेगी और न ही मरीज़ को अपने इलाज की। अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा समाज के प्रत्येक स्तर पर लागू होना चाहिए। बीमारियों की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए इस बीमे के अनेक स्तर रखे जा सकते हैं। | ||
बीमे की बात इसलिए आवश्यक है क्योंकि सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएँ देने की प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। अब एकमात्र रास्ता यही है कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम किसी तरह सामान्य जन को इलाज की सुविधा प्रदान करें। यह तभी संभव होगा जब कि उन्हें मनचाही फ़ीस मिले और यह तभी हो सकता है जबकि बीमा लागू हो। निजी अस्पताल और नर्सिंग होम इस बीमा योजना का | बीमे की बात इसलिए आवश्यक है क्योंकि सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएँ देने की प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। अब एकमात्र रास्ता यही है कि निजी अस्पताल और नर्सिंग होम किसी तरह सामान्य जन को इलाज की सुविधा प्रदान करें। यह तभी संभव होगा जब कि उन्हें मनचाही फ़ीस मिले और यह तभी हो सकता है जबकि बीमा लागू हो। निजी अस्पताल और नर्सिंग होम इस बीमा योजना का दुरुपयोग न कर सकें इसके लिए निगरानी के नियम बनाने भी ज़रूरी होंगे। जिससे फ़र्ज़ी मरीज़ों को रोका जा सके। बीमा अनिवार्य करने के लिए नागरिकों को मिलने वाले अनेक प्रकार के पहचान पत्र, लाइसेन्स, योजना पत्र आदि के साथ बीमा जोड़ा जाना चाहिए। जैसे कि पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, हथियार लाइसेंस, राशन कार्ड, डिग्री, आदि। सरकार से मिलने वाली अनेक सुविधाओं और सबसिडियों के साथ यह बीमा जोड़ा जाना चाहिए। मज़दूरों के लिए मज़दूर कार्ड बनें जो उन्हें मज़दूरी के लिए अहर्ता प्रदान करे और साथ ही बीमा भी साथ जोड़ा जाय। यह बीमा सरकार द्वारा भी किया जाए और निजी कंपनियों द्वारा भी, जैसा कि जीवन बीमा के साथ हो रहा है। निजी कम्पनियों के मॅडी-क्लेम आम आदमी की पहुँच से भी परे हैं और समझ से भी। इसलिए सरकार को इसमें पहल करके एक अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा योजना लागू करनी होगी जो ग़रीब की भी पहुँच में हो। | ||
जिस तरह का ज़माना अब चल रहा है और आगे आ रहा है उसमें जीवन बीमा से बहुत अधिक आवश्यक है स्वास्थ्य बीमा और वह भी प्रत्येक नागरिक के लिए। | जिस तरह का ज़माना अब चल रहा है और आगे आ रहा है उसमें जीवन बीमा से बहुत अधिक आवश्यक है स्वास्थ्य बीमा और वह भी प्रत्येक नागरिक के लिए। | ||
18:38, 22 दिसम्बर 2013 का अवतरण
ताऊ का इलाज -आदित्य चौधरी कुछ समय पहले छोटे पहलवान अपने गाँव गया। वहाँ उसे कुछ विचित्र अनुभव हुआ। तो आइए छोटे पहलवान का अपने गाँव जाने का अनुभव यदि उसी से सुनें- |
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