"तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो ("तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (अनिश्चित्त अवधि) [move=sysop] (अनिश्चित्त अवधि)))
No edit summary
पंक्ति 14: पंक्ति 14:


गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है
गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है
ख़ून तेरा ही होता है हाथ भी तेरे सनते हैं
तेरा ही ख़ून होता है हाथ तेरे ही सनते हैं


न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है
न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं


बना है तेरी ही छत से ही सुनहरा आसमां उनका
बना है तेरी ही छत से सुनहरा आसमां उनका
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं



13:14, 28 जनवरी 2014 का अवतरण

तख़्त बनते हैं -आदित्य चौधरी

तेरे ताबूत की कीलों से उनके तख़्त बनते हैं
कुचल जा जाके सड़कों पे, तभी वो बात सुनते हैं

गुनाहों को छुपाने का हुनर उनका निराला है
तेरा ही ख़ून होता है हाथ तेरे ही सनते हैं

न जाने कौनसी खिड़की से तू खाते बनाता है
जो तेरी जेब के पैसे से उनके चॅक भुनते हैं

बना है तेरी ही छत से सुनहरा आसमां उनका
मिलेगी छत चुनावों में, वहाँ तम्बू जो तनते हैं

न जाने किस तरह भगवान ने इनको बनाया था
नहीं जनती है इनको मां, यही अब मां को जनते हैं


टीका टिप्पणी और संदर्भ