"खाशाबा जाधव": अवतरणों में अंतर

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'''खाशाबा दादासाहेब जाधव''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Khashaba Dadasaheb Jadhav'', जन्म- [[15 जनवरी]], [[1926]], [[महाराष्ट्र]]; मृत्यु- [[14 अगस्त]], [[1984]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध [[कुश्ती]] खिलाड़ी थे। वे पहले भारतीय खिलाड़ी थे, जिन्होंने सन [[1952]] में हेलसिंकी ओलम्पिक में देश के लिए कुश्ती की व्यक्तिगत स्पर्धा में सबसे पहले कांस्य पदक जीता था। वैसे तो 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया था, लेकिन चर्चा सोने से अधिक उस कांस्य पदक की होती है, जिसे पहलवान खाशाबा जाधव ने जीता था। खाशाबा को '''पॉकेट डायनमो''' के नाम से भी जाना जाता है। भारत को [[ओलम्पिक खेल|ओलम्पिक]] का पदक दिलाने वाला यह खिलाड़ी बाद में गुमनाम बनकर रह गया।
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==पुरस्कार व सम्मान==
==पुरस्कार व सम्मान==
अपने सेवाभाव से खाशाबा जाधव ने बहुत-से खिलाड़ी तैयार किये। [[1983]] में 'फ़ाय फ़ाउंडेशन' ने उनको 'जीवन गौरव पुरस्कार' से सम्मानित किया था। [[1990]] में इन्हें 'मेघनाथ नागेश्वर अवार्ड' से (मरणोपरांत) नवाजा गया। 'शिव छत्रपति पुरस्कार' से वे [[1993]] में (मरणोपरांत) नवाजे गए। खाशाबा जाधव भारत माँ के महान सपूत थे, जिसने [[स्वतंत्रता आंदोलन]] में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा की और साथ ही देश को पहला कांस्य पदक दिलाकर [[भारत]] का सर विश्व में ऊँचा किया।<ref>{{cite web |url=http://www.krantidoot.in/2015/08/India-first-Olympic-medalist-wrestler-Dadasaheb-Jadhav.html |title=भुला दिए गए भारत को पहला ओलिंपिक मेडल दिलाने वाले पहलवान दादासाहेब जाधव|accessmonthday=05 अगस्त|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=krantidoot.in |language=हिन्दी}}</ref>
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==खाशाबा पर फ़िल्म निर्माण==
[[हिन्दी]] फ़िल्मों के अभिनेता रितेश देशमुख फ़िल्म निर्माता के रूप में अपनी अगली फ़िल्म ‘पॉकेट डायनेमो’ के निर्माण के लिए तैयारी कर रहे हैं। फ़िल्म का निर्माण उनकी कम्पनी ‘मुम्बई फ़िल्म कम्पनी’ (एमएफ़सी) के बैनर तले किया जाएगा। फ़िल्म की [[कहानी]] [[कुश्ती]] खिलाड़ी खाशाबा जाधव की जीवनी पर आधारित है। एक आधिकारिक बयान में पुष्टि करते हुए रितेश ने कहा कि हमने खाशाबा जाधव के जीवन पर फ़िल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए हैं। मैं खुश हूं कि जाधव के बेटे रंजीत जाधव ने हमें अपने [[पिता]] की जिंदगी पर फ़िल्म बनाने के काबिल समझा। रितेश का कहना था कि "खेलों में खाशाबा जाधव का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा था। उन्होंने देश को पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलवाया, लेकिन दुर्भाग्य से उनके बारे में देश के लोगों को मालूम नहीं है। वह देश के नायक हैं, उन्हें पहचान मिलनी चाहिए और उनके योगदान को याद किया जाना चाहिए।"<ref>{{cite web |url= !http://hindi.insistpost.com/25261/first-indian-olympic-medalist-wrestler-dadasaheb-jadhav/4/ |title=आखिर क्यों भुला दिया देश ने पहला ओलम्पिक मैडल दिलाने वाले पहलवान दादासाहेब जाधव को ? |accessmonthday=05 अगस्त |accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=hindi.insistpost.com |language=हिन्दी }}</ref>





07:44, 5 अगस्त 2016 का अवतरण

खाशाबा जाधव
खाशाबा जाधव
खाशाबा जाधव
पूरा नाम खाशाबा दादासाहेब जाधव
जन्म 15 जनवरी, 1926
जन्म भूमि सतारा, महाराष्ट्र
मृत्यु 14 अगस्त, 1984
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र कुश्ती
पुरस्कार-उपाधि 'जीवन गौरव पुरस्कार' (1983), 'मेघनाथ नागेश्वर अवार्ड' (1990-मरणोपरांत), 'शिव छत्रपति पुरस्कार' (1993-मरणोपरांत)।
प्रसिद्धि पहलवान
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख कुश्ती, कुश्ती का इतिहास, कुश्ती की पद्धतियाँ, ओलम्पिक खेल, गामा पहलवान, सुशील कुमार पहलवान
अन्य जानकारी पुलिस विभाग में खेल कोटा खाशाबा जाधव के ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद से ही शुरू हुआ। आज भी खेल कोटा से जो भर्ती होती है, वह खाशाबा जाधव की ही देन है, इस बात की जानकारी आज के पुलिस वालों को शायद ही हो।
अद्यतन‎ 01:14, 5 अगस्त, 2016 (IST)

खाशाबा दादासाहेब जाधव (अंग्रेज़ी: Khashaba Dadasaheb Jadhav, जन्म- 15 जनवरी, 1926, महाराष्ट्र; मृत्यु- 14 अगस्त, 1984) भारत के प्रसिद्ध कुश्ती खिलाड़ी थे। वे पहले भारतीय खिलाड़ी थे, जिन्होंने सन 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में देश के लिए कुश्ती की व्यक्तिगत स्पर्धा में सबसे पहले कांस्य पदक जीता था। वैसे तो 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया था, लेकिन चर्चा सोने से अधिक उस कांस्य पदक की होती है, जिसे पहलवान खाशाबा जाधव ने जीता था। खाशाबा को पॉकेट डायनमो के नाम से भी जाना जाता है। भारत को ओलम्पिक का पदक दिलाने वाला यह खिलाड़ी बाद में गुमनाम बनकर रह गया।

परिचय

पहलवान खाशाबा जाधव का जन्म 15 जनवरी सन 1926 में सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। वर्ष 1940 से 1947 के मध्य खाशाबा जाधव ने अपनी स्कूली शिक्षा तिलक हाई स्कूल, ज़िला कारद से पूरी की। खाशाबा ने कम उम्र में ही स्थानीय चैंपियन को मात्र दो मिनट में पराजित कर दिया था। इसके बाद वे अपने क्षेत्र के निर्विवाद चैंपियन बन गए थे।

आर्थिक संकट

खाशाबा जाधव ने सबसे पहली बार ओलम्पिक में 1948 में हिस्सा लिया था। कोलहापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया। तब वे कोई विजयी प्रदर्शन नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलम्पिक खेलों में एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। हेलसिंकी जाना उनके लिए आसान बात नहीं थी। वे क्वालिफ़ाई तो कर चुके थे, लेकिन वहां पहुंचने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। खाशाबा ने हेलसिंकी जाने के लिए सरकार से मदद मांगी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। सरकार ने कहा- "जब खेल खत्म हो जाएं, तब वे उनसे आ कर मिलें।"

हेलसिंकी ओलम्पिक में प्रतिभाग

खाशाबा ने जैसे हेलसिंकी जाने की ठान ली थी। उन्होंने अपने परिवार के साथ मिल कर इस यात्रा के लिए भीख मांग कर राशि जुटाई। राज्य सरकार ने उनके लगातार आग्रह के बाद उन्हें 4000 रुपए की छोटी-सी राशि दे दी। उस समय खाशाबा राजाराम कॉलेज में पढ़ा करते थे। उस कॉलेज के प्रधानाध्यापक खरडिकर ने खाशाबा की लगन देखकर उन्हें 7000 रुपए की आर्थिक मदद दे दी। अब उन्हें हेलसिंकी जाने का रास्ता मिल गया था।

कांस्य पदक

युवा खाशाबा जाधव

खाशाबा जाधव ने हेलसिंकी में कांस्य पदक जीतकर अपना जलवा दिखा दिया। हेलसिंकी की मैट सर्फेस पर वे एडजस्ट नहीं कर सके और इसी कारण वे स्वर्ण पदक से चूक गए। उन खेलों में नियमों के विरुद्ध लगातार दो बाउट रखवाए गए थे। खाशाबा के स्वर्ण पदक से चूकने का यह भी एक प्रमुख कारण रहा था।

हेलसिंकी ओलंपिक में यूं तो भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया था, लेकिन चर्चा में सबसे ज़्यादा खाशाबा द्वारा जीता गया कांस्य पदक ही रहा। यह पहली बार था, जब किसी भारतीय एथलीट ने व्यक्तिगत पदक हासिल किया हो। इसके पहले 1900 में नॉर्मन पिचार्ड ने दो रजत पदक जीते थे, लेकिन वे भारतीय मूल के नहीं थे और तब भारत भी अंग्रेज़ों के अधीन देश के रूप में हिस्सा लेता था। इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद खाशाबा को कभी 'पद्म पुरस्कार' नहीं मिला। बेंटमवेट वर्ग (57 कि.ग्रा. से कम) में लड़ने वाले खाशाबा जाधव की चपलता उन्हें अपने समकालीन पहलवानों से अलग करती थी। इसी कारण अंग्रेज़ कोच रीस गार्डनर ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए उन्हें प्रशिक्षण दिया था।[1]

भारत वापसी

पदक जीतने के बाद स्वदेश लौटने पर खाशाबा का जोरदार स्वागत हुआ, लेकिन उनके मन में सिर्फ एक ही बात थी, अपने प्रिंसिपल का वह कर्ज चुकाना। भारत आने के बाद उन्होंने जो पहली कुश्ती लड़ी, उसकी पूरी इनामी राशि अपने प्रिंसिपल खरडीकर को दे दी, ताकि वे अपना गिरवी रखा घर छुड़ा सकें।

निधन

सन 1955 में शाशाबा जाधव को मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। अगले कई वर्षों तक वे इसी पद पर बिना किसी प्रमोशन के बने रहे। 1982 में महज 6 महीनों के लिए उन्हें असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर का पद दिया गया। इसके बाद वे सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्ति के महज दो साल बाद एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आज दिल्ली में खाशाबा जाधव के नाम से स्टेडियम है, लेकिन उनके परिवार को कोई आर्थिक सहायता मुहैया नहीं हो सकी है।

मुंबई पुलिस के लिए खाशाबा जाधव ने 25 साल तक सेवाएं दीं, लेकिन उनके सहकर्मी इस बात को कभी नहीं जान सके कि वे ओलम्पिक चैंपियन हैं। पुलिस विभाग में खेल कोटा खाशाबा के ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद ही शुरू हुआ। आज भी लोगों की भर्ती खेल कोटा से होती है, लेकिन यह खाशाबा जाधव की ही देन है, इस बात की जानकारी आज के पुलिस वालों को शायद ही हो।

पुरस्कार व सम्मान

अपने सेवाभाव से खाशाबा जाधव ने बहुत-से खिलाड़ी तैयार किये। 1983 में 'फ़ाय फ़ाउंडेशन' ने उनको 'जीवन गौरव पुरस्कार' से सम्मानित किया था। 1990 में इन्हें 'मेघनाथ नागेश्वर अवार्ड' से (मरणोपरांत) नवाजा गया। 'शिव छत्रपति पुरस्कार' से वे 1993 में (मरणोपरांत) नवाजे गए। खाशाबा जाधव भारत माँ के महान सपूत थे, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं पुलिस में भर्ती होकर देश की सेवा की और साथ ही देश को पहला कांस्य पदक दिलाकर भारत का सर विश्व में ऊँचा किया।[2]

खाशाबा पर फ़िल्म निर्माण

हिन्दी फ़िल्मों के अभिनेता रितेश देशमुख फ़िल्म निर्माता के रूप में अपनी अगली फ़िल्म ‘पॉकेट डायनेमो’ के निर्माण के लिए तैयारी कर रहे हैं। फ़िल्म का निर्माण उनकी कम्पनी ‘मुम्बई फ़िल्म कम्पनी’ (एमएफ़सी) के बैनर तले किया जाएगा। फ़िल्म की कहानी कुश्ती खिलाड़ी खाशाबा जाधव की जीवनी पर आधारित है। एक आधिकारिक बयान में पुष्टि करते हुए रितेश ने कहा कि हमने खाशाबा जाधव के जीवन पर फ़िल्म बनाने के अधिकार खरीद लिए हैं। मैं खुश हूं कि जाधव के बेटे रंजीत जाधव ने हमें अपने पिता की जिंदगी पर फ़िल्म बनाने के काबिल समझा। रितेश का कहना था कि "खेलों में खाशाबा जाधव का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा था। उन्होंने देश को पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलवाया, लेकिन दुर्भाग्य से उनके बारे में देश के लोगों को मालूम नहीं है। वह देश के नायक हैं, उन्हें पहचान मिलनी चाहिए और उनके योगदान को याद किया जाना चाहिए।"[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1952 हेलसिंकी ओलम्पिक:भारतीय पहलवान जाधव ने देश को दिलाया पहला व्यक्तिगत पदक (हिन्दी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2016।
  2. भुला दिए गए भारत को पहला ओलिंपिक मेडल दिलाने वाले पहलवान दादासाहेब जाधव (हिन्दी) krantidoot.in। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2016।
  3. [!http://hindi.insistpost.com/25261/first-indian-olympic-medalist-wrestler-dadasaheb-jadhav/4/ आखिर क्यों भुला दिया देश ने पहला ओलम्पिक मैडल दिलाने वाले पहलवान दादासाहेब जाधव को ?] (हिन्दी) hindi.insistpost.com। अभिगमन तिथि: 05 अगस्त, 2016।

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