"बस एक चान्स -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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* चार्ली चॅपलिन ने अपनी मशहूर फ़िल्म 'सिटी लाइट्स' के केवल एक दृश्य को ही सौ से अधिक तरीक़ों से फ़िल्माया और अंत में भी वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। यह वही दृश्य है जिसमें कि फ़िल्म की नेत्र-हीन नायिका चार्ली चॅपलिन को भूल-वश अमीर आदमी समझ लेती है। | * चार्ली चॅपलिन ने अपनी मशहूर फ़िल्म 'सिटी लाइट्स' के केवल एक दृश्य को ही सौ से अधिक तरीक़ों से फ़िल्माया और अंत में भी वे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। यह वही दृश्य है जिसमें कि फ़िल्म की नेत्र-हीन नायिका चार्ली चॅपलिन को भूल-वश अमीर आदमी समझ लेती है। | ||
* ऑल्बेयर कामू ने अपने उपन्यास 'ला पेस्त' में केवल एक अनुच्छेद को लिखने में ही कई दिन लगा दिए थे। | * ऑल्बेयर कामू ने अपने उपन्यास 'ला पेस्त' में केवल एक अनुच्छेद को लिखने में ही कई दिन लगा दिए थे। | ||
* | * महान् गणितज्ञ न्यूटन ने आठ साल की मेहनत से अपनी मशहूर किताब 'प्रिंसीपिया मॅथेमेटिका' की सामग्री तैयार की और उनके पालतू कुत्ते 'डायमन्ड' के कारण वह जल गई। न्यूटन फिर लिखने बैठ गए और दोबारा चार साल में किताब पूरी कर ली। | ||
* कार्ल मार्क्स ने बीस से अधिक वर्ष पुस्तकालय में पढ़ते हुए बिताए। एक बार लाइब्रेरियन पुस्तकालय को बन्द करके चला गया। अगले दिन आया तो मार्क्स को पढ़ते हुए पाया। मार्क्स को पता ही नहीं चला था कि कब रात गुज़र गई और अगला दिन भी हो गया। | * कार्ल मार्क्स ने बीस से अधिक वर्ष पुस्तकालय में पढ़ते हुए बिताए। एक बार लाइब्रेरियन पुस्तकालय को बन्द करके चला गया। अगले दिन आया तो मार्क्स को पढ़ते हुए पाया। मार्क्स को पता ही नहीं चला था कि कब रात गुज़र गई और अगला दिन भी हो गया। | ||
सारी दुनिया में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो हमें बतलाते हैं कि हर एक सृजन के पीछे कड़ी मेहनत छुपी है। इसलिए ध्यान रखिए कि आलोचना करना आसान है लेकिन सृजन करना मुश्किल है, बहुत मुश्किल। | सारी दुनिया में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो हमें बतलाते हैं कि हर एक सृजन के पीछे कड़ी मेहनत छुपी है। इसलिए ध्यान रखिए कि आलोचना करना आसान है लेकिन सृजन करना मुश्किल है, बहुत मुश्किल। |
11:03, 1 अगस्त 2017 का अवतरण
बस एक चान्स -आदित्य चौधरी इस बात का पता 'चंद लोगों' को ही था कि छोटे पहलवान दुनिया का सबसे अक़्लमंद लड़का है। इन 'चंद लोगों' में थे- एक तो छोटे पहलवान ख़ुद और बाक़ी उसके माता-पिता और परिवारी जन। बाहर की दुनिया से छोटे का ज़्यादा सम्पर्क हुआ नहीं था। इसी दौर में उसे यह भी महसूस होने लगा कि वह दुनिया का महानतम विद्वान् भी है। अपनी पहली किताब के छपते ही एक ज़बर्दस्त हंगामा होने का ख़याल लिए वो अपना वक़्त क्रिकेट और फ़ुटबॉल खेलने में बिताता था। बारातों में बच्चों को पैसे लूटते देखकर वो सोचता था कि उसकी किताब की भी ऐसी ही लूट मचेगी एक दिन, बस ज़रा लिखने भर की देर है।
सारी दुनिया में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो हमें बतलाते हैं कि हर एक सृजन के पीछे कड़ी मेहनत छुपी है। इसलिए ध्यान रखिए कि आलोचना करना आसान है लेकिन सृजन करना मुश्किल है, बहुत मुश्किल। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ