"भूली-बिसरी कड़ियों का भारत -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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[[भारतीय संस्कृति|भारत की संस्कृति]], [[विज्ञान]] और [[भारत का इतिहास|इतिहास]] की, कब कहाँ और कौन सी कड़ी खोई हुई है, इसकी चर्चा इस लेख में कर रहा हूँ। | [[भारतीय संस्कृति|भारत की संस्कृति]], [[विज्ञान]] और [[भारत का इतिहास|इतिहास]] की, कब कहाँ और कौन सी कड़ी खोई हुई है, इसकी चर्चा इस लेख में कर रहा हूँ। | ||
आइये फ़ारस ([[ईरान]]) चलते हैं। आज से हज़ार साल पहले का ईरान। रुस्तम-सुहराब के चर्चे हैं यहाँ, उनकी बहादुरी के क़िस्से बयान करते दास्तान गो अपनी रोज़ी रोटी चला रहे हैं तमाम इनाम इक़राम पा रहे हैं। जब फ़ारस (ईरान) के | आइये फ़ारस ([[ईरान]]) चलते हैं। आज से हज़ार साल पहले का ईरान। रुस्तम-सुहराब के चर्चे हैं यहाँ, उनकी बहादुरी के क़िस्से बयान करते दास्तान गो अपनी रोज़ी रोटी चला रहे हैं तमाम इनाम इक़राम पा रहे हैं। जब फ़ारस (ईरान) के महान् कवि [[फ़िरदौसी]] अपने विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य, जिसमें 60 हज़ार शेर हैं, की रचना करते हैं तो उसमें [[भारत]] के समृद्ध लौह-शोधन और निर्माण का प्रमाण भी मिलता है। दसवीं शताब्दी के इस महाकाव्य ‘[[शाहनामा]]’ की तुलना व्यासों और सूतों के महाभारत और होमर के इलियड से की जाती है। | ||
इस रचना में अनेक दास्तान हैं, जिनमें दास्तान-ए-सोहराब मेरी पसंदीदा है। एक ज़माने में दास्तानगोई याने कथावाचन एक प्रसिद्ध विधा थी जो आज के टेलीविज़न से ज़्यादा लोकप्रिय थी। यह विधा दोबारा से अपने खोए गौरव की तलाश में है और कुछ सुधी जनों ने इसे फिर से शुरू किया है। | इस रचना में अनेक दास्तान हैं, जिनमें दास्तान-ए-सोहराब मेरी पसंदीदा है। एक ज़माने में दास्तानगोई याने कथावाचन एक प्रसिद्ध विधा थी जो आज के टेलीविज़न से ज़्यादा लोकप्रिय थी। यह विधा दोबारा से अपने खोए गौरव की तलाश में है और कुछ सुधी जनों ने इसे फिर से शुरू किया है। | ||
ख़ैर… | ख़ैर… |
11:14, 1 अगस्त 2017 का अवतरण
भूली-बिसरी कड़ियों का भारत -आदित्य चौधरी भारत की संस्कृति, विज्ञान और इतिहास की, कब कहाँ और कौन सी कड़ी खोई हुई है, इसकी चर्चा इस लेख में कर रहा हूँ।
भारत में पुत्री के विवाह की उम्र का शिक्षा पर सीधा असर रहा है।
मध्यकाल में विदेशी मुस्लिम शासन में लड़कियों की सुरक्षा को लेकर उनका विवाह अत्यधिक कम उम्र में होने लगा और शिक्षा ख़त्म होती चली गई। मध्यकाल ने ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ी शासन ने भी भारत में शिक्षा को समाप्त करने के पूरे उपाय किए। अंग्रेज़ों द्वारा, यूरोपीय शिक्षा प्रणाली तो लागू कर दी गई लेकिन बजट मात्र 1.7% ही रखा गया। याने विश्व भर में सबसे कम। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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