"सुधीर कुमार वालिया": अवतरणों में अंतर

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'''मेजर सुधीर कुमार वालिया''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Major Sudhir Kumar Walia'', जन्म- [[24 मई]], [[1969]]; मृत्यु- [[29 अगस्त]], [[1999]]) भारतीय थल सेना के जांबाजों में से एक थे। तत्कालीन सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ जनरल वी. पी. मलिक के ओडीसी रहते विशेष अनुमति प्राप्त करके कारगिल युद्ध के दौरान [[29 अगस्त]], [[1999]] को सुधीर कुमार वालिया ने [[जम्मू-कश्मीर]] में कुपवाड़ा जिले के हमुडा के जंगलों में हमला कर कुल 20 में से 9 आतंकवादियों को मार गिराने के बाद वीरगति पाई थी। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले मेजर सुधीर कुमार वालिया को मरणोपरांत [[2000]] में '[[अशोक चक्र]]' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दा जाट रेजिमेंट में कमीशन किया था। उन्हें विशेष पाठ्यक्रम के लिए [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] भी भेजा गया, जहां वे प्रथम रहे। सन [[1994]] में उन्हें 'सेना पदक' से भी सम्मानित किया गया था।
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==परिचय==
==परिचय==
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10:02, 27 अगस्त 2022 के समय का अवतरण

सुधीर कुमार वालिया
मेजर सुधीर कुमार वालिया
मेजर सुधीर कुमार वालिया
पूरा नाम मेजर सुधीर कुमार वालिया
जन्म 24 मई, 1969
जन्म भूमि पालमपुर, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
स्थान कुपवाड़ा, जम्मू-कश्मीर
सेना भारतीय थल सेना
रैंक मेजर
यूनिट 9 पैरा (एसएफ़) 4 जाट
सेवा काल 1988–1999
युद्ध ऑपरेशन विजय
सम्मान अशोक चक्र, 2000

सेना पदक

नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख कारगिल, कारगिल युद्ध, ऑपरेशन विजय
सेवा नं. IC-47623P
अन्य जानकारी कारगिल के युद्ध में अपना शौर्य दिखा चुके सुधीर कुमार वालिया को साथियों ने उनकी बहादुरी के लिए 'रैंबो' नाम दिया था।

मेजर सुधीर कुमार वालिया (अंग्रेज़ी: Major Sudhir Kumar Walia, जन्म- 24 मई, 1969; मृत्यु- 29 अगस्त, 1999) भारतीय थल सेना के जांबाजों में से एक थे। तत्कालीन सेना के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ जनरल वी. पी. मलिक के ओडीसी रहते विशेष अनुमति प्राप्त करके कारगिल युद्ध के दौरान 29 अगस्त, 1999 को सुधीर कुमार वालिया ने जम्मू-कश्मीर में कुपवाड़ा जिले के हमुडा के जंगलों में हमला कर कुल 20 में से 9 आतंकवादियों को मार गिराने के बाद वीरगति पाई थी। देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले मेजर सुधीर कुमार वालिया को मरणोपरांत 2000 में 'अशोक चक्र' से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दा जाट रेजिमेंट में कमीशन किया था। उन्हें विशेष पाठ्यक्रम के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका भी भेजा गया, जहां वे प्रथम रहे। सन 1994 में उन्हें 'सेना पदक' से भी सम्मानित किया गया था।

परिचय

कारगिल युद्ध के बाद सेना को एक बड़ी जानकारी मिली थी कि कुपवाड़ा के अफरुदा के जंगलों में आतंकवादी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं। लिहाजा, मेजर सुधीर कुमार वालिया ने आतंकवादियों का सफाया करने के लिए सेना की टुकड़ी का नेतृत्व अपने हाथों में लिया था, लेकिन आतंकवादियों से आमने-सामने हुई लड़ाई के बीच मेजर सुधीर वालिया शहीद हो गए। शहीद होने से पहले उन्होंने 20 में से 9 उग्रवादियों को मार गिराया था। इस बीच में गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और गंभीर रूप से होने के बावजूद अपनी टुकड़ी को उग्रवादियों को मार गिराने का आदेश देते रहे।

उग्रवादियों को मार गिराने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वे अस्पताल पहुंचने से पहले ही अपना बलिदान दे गए। मरणोपरांत उन्हें उनकी बहादुरी पर 'अशोक चक्र' से नवाजा गया। मेजर सुधीर कुमार वालिया को इससे पहले भी दो बार सेना मेडल से नवाजा गया था।[1]

उपलब्धियाँ

कारगिल के युद्ध में अपना शौर्य दिखा चुके सुधीर कुमार वालिया को साथियों ने उनकी बहादुरी के लिए 'रैंबो' नाम दिया था। वह 29 अगस्त, 1999 को कुपवाड़ा के जंगलों में आंतकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए थे। 9 वर्ष की सैन्य सेवा में उन्होंने 15 मेडल प्राप्त किए थे। श्रीलंका में उन्हें शांति दूत के रूप में भी पुकारा जाता था। पेंटागन में 70 देशों के प्रतिनिधि गए थे, उसमें भारत की ओर से उन्होंने टॉप किया था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है उन्होंने भारतीय सेना में दो बार लगातार सेना मैडल प्राप्त किया था, जो बहुत कम सैनिकों को मिलता है। जनरल वी. पी. मलिक के साथ मेजर सुधीर कुमार वालिया ने बतौर निजी सहायक के रूप में भी कार्य किया।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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