हुस्न औ इश्क़ के क़िस्से तो हज़ारों हैं मगर
उनको कहने या न कहने से फ़र्क़ क्या होगा
कोई तफ़सील से समझाए मुहब्बत का सबब
इसके होने या ना होने से फ़र्क़ क्या होगा
तराश संग को बनते हैं, बुत तो रोज़ मगर
इसके यूँ ही पड़ा रहने से फ़र्क़ क्या होगा
कभी जो फ़ुरसतें होंगी तो इश्क़ कर लेंगे
इसके करने या करने से फ़र्क़ क्या होगा
तुम ही समझाओ मुझे तुम ही इश्क़ करते हो
समझ भी लूँ तो समझने से फ़र्क़ क्या होगा