कोई मुस्कान ऐसी है जो हरदम याद आती है
छिड़कती जान ऐसी है वो हरदम याद आती है
अंधेरी ठंड की रातों में बस लस्सी ही पीनी है
फुला के मुंह जो बैठी है वो हरदम याद आती है
कभी हर बात पे हाँ है कभी हर बात पे ना है
पटक कर पैर खिसियाती वो हरदम याद आती है
शरारत आँखों में तैरी है और मैं देख ना पाऊँ
झुकी नज़रों की शैतानी वो हरदम याद आती है
न जाने कौन से जन्मों में मोती दान कर बैठा
कई जन्मों के बंधन से वो हरदम याद आती है