वन महोत्सव
वन महोत्सव भारत में प्रतिवर्ष जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में आयोजित किया जाने वाला महोत्सव है। यह महोत्सव भारत सरकार द्वारा वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए आयोजित किया जाता है। सन 1960 के दशक में यह पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करने वाला एक आंदोलन था। तत्कालीन कृषिमंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने इसका सूत्रपात किया था।
इतिहास
भारत में वन महोत्सव धरती माता की रक्षा के लिये धर्म युद्ध की तरह शुरू किया गया था। वन महोत्सव का मतलब पेड़ों का उत्सव है। इसकी अनौपचारिक शुरुआत जुलाई, 1947 में दिल्ली में सघन वृक्षारोपण हेतु आन्दोलन के रूप में बीड़ा उठाकर की गयी थी, जिसमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू सिरीखे राष्ट्रीय नेताओं ने शिरकत की थी। इसके साथ-साथ यह उत्सव कई राज्यों में मनाया गया था। तब से भिन्न-भिन्न प्रजातियों के हज़ारों पौधे वन विभाग जैसी विभिन्न स्थानीय एजेंसियों की प्रभावशाली सहभागिता से लगाते हैं।
उद्देश्य
वन महोत्सव पर पौधे लगाकर कई उद्देश्यों को साधा जाता है, जैसे- वैकल्पिक ईधन व्यवस्था, खाद्यान्न संसाधन बढ़ाना, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये खेतों के चारों ओर शेल्टर बेल्ट बनाना, पशुओं के लिये चारा उत्पादन, छाया व सौंदर्यकरण, भूमि संरक्षण आदि। यह लोगों में पेड़ों के प्रति जागरुकता की शिक्षा का उत्सव है और यह बताता है कि पेड़ लगाना व उनका रखरखाव करना ग्लोबल वार्मिंग व प्रदूषण को रोकने में सबसे अच्छा रास्ता है। वन महोत्सव जीवन के उत्सव तरह मनाया जाता है।
सफलता
वन महोत्सव को राष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी सराहना व सफलता मिली है। वन महोत्सव सप्ताह के दौरान देश भर में लाखों पौधे लगाये जाते हैं। प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह वन महोत्सव सप्ताह में एक पौधा जरूर लगाये। वन महोत्सव लोगों में पेड़ों को काटने से होने वाले नुकसान के प्रति सजगता फैलाने में सहायक है। यह महोत्सव लोगों द्वारा घरों, ऑफिसों, स्कूल, कॉलेज आदि में पौधों का पौधारोपण कर मनाया जाता है। इस अवसर पर अलग-अलग स्तर पर जागरुकता अभियान चलाये जाते हैं। लोगों को प्रोत्साहित करने के लिये विभिन्न संगठनों व वॉलंटियर्स द्वारा निशुल्क पौधों का वितरण भी किया जाता है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी 15 अगस्त, 2014 को दिल्ली के लाल क़िले से सवच्छता अभियान का आह्वान करना पड़ा। ईको फ़्रेन्डली बजट की बातें आनी शुरू हो चुकी हैं। ये चीजें वन महोत्सव के उद्देश्य की गंभीरता को स्पष्ट रेखांकित करती हैं। पर्यावरण की सुरक्षा केवल सरकार या सरकारी अमले के बलबूते पर नहीं हो सकती है। यह केवल और केवल आम जनता की जन भागीदारी से ही संभव है। वन महोत्सव को प्रभावी बनाने के लिए विद्यालयों के छात्रों के साथ प्रभात फेरी का आयोजन कर गाँव-गाँव, गली-गली में वन महोत्सव के नारे लगवाना आवश्यक है, जिससे लोगों में जागरूकता सन्देश आसानी प्रसारित हो सके।
नारे
- बंजर धरती करे पुकार, पेड़ लगाकर करो सिंगार।
- वन उपवन कर रहे पुकार, देते हम वर्षा की बोछार।
- सर साटे रूख रहे, तो भी सस्तो जाण।
- कहते हे सब वेद-पुराण, एक वृक्ष दस पुत्र सामान।
- धरती पर स्वर्ग है वहाँ, हरे भरे वृक्ष है जहाँ।
- जहां हरयाली है, वहीं खुशहाली है।
- वृक्ष प्रदूषण-विष पी जाते, पर्यावरण पवित्र बनाते।
- पेड़ लगाएं, प्राण बचाएं।
- कड़ी धूप में जलते हैं पाँव, होते पेड़ तो मिलती छाँव।
- पेड़ों से वायु, वायु से आयु।
पेड़ों से लाभ
पेड़ हवा के झोंके, वर्षा, धूप और पाला सब कुछ सहते हैं, फूलों, पत्तों और फलों का भार वहन करते हैं। सब कुछ सहन करके भी पेड़ एड़ी से चोटी तक जीवन पर्यन्त दूसरों को समर्पित रहते हैं। हमारे सुख के लिये पेड़ अपना तन भी समर्पित कर देते हैं। यह किसी-न-किसी रूप में हमारे लिये लाभदायक ही रहते हैं-
- साँस के लिये ऑक्सीजन बनाते हैं।
- धूप की पीड़ा और ठंड के कष्ट से बचाते हैं।
- धरती का श्रृंगार कर सुंदर प्रकृति का निर्माण करते हैं।
- पथिकों को विश्राम-स्थल, पक्षियों को नीड़, जीव-जन्तुओं को आश्रय स्थल देते हैं।
- पेड़ अपना तन समर्पित कर गृहस्थों को ईधन, इमारती लकड़ी, पत्तों-जड़ों तथा छालों से समस्त जीवों को औषधि देते हैं।
- पत्ते, फूल, फल, जड़, छाल, लकड़ी, गन्ध, गोंद, राख, कोयला, अंकुर और कोंपलों से भी प्राणियों की अन्य अनेकानेक कामनाएँ पूर्ण करते हैं।
कुल मिलाकर पेड़ हमारी पहली साँस से लेकर अंतिम संस्कार तक मदद करते हैं। ऐसे परोपकारी संसार में सच्चे संत ही हो सकते हैं, जो सारी बाधाएं स्वयं झेलकर दूसरों की सहायता करते हैं। हमारे पौराणिक साहित्य से दो उद्धरण : दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र तथा दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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