आख़िर होली ने भी रंग बदल ही लिया ...
सुहानी सुबह
आज इक और होली
अलसाई आखोँ से
शरमा के बोली
मुझे ख़ूब खेला है
मैं भी तो खेलूँ
वो दिन गए
जब थी सीधी और भोली
पहले मेरी ज़ात के लोग लाओ
या उनके मज़हब से वाकिफ़ कराओ
यूँ ही मुझे कोई छूएगा कैसे
कोई ग़ैर कैसे करेगा ठिठोली
बहुत मौज लेली है फोकट में राजा
मुझको भी दारू की बोतल पिलाओ
रंगों की मस्ती में रक्खा ही क्या है
मैं इस शहर में और तुम उस शहर में
ई-कार्ड से रंग दिखाओ-सुनाओ
यूँ भी अलर्जी है मुझको रंगों से
कुछ भी करो यार
रंग ना लगाओ
रंग ना लगाओ