खाशाबा जाधव

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खाशाबा दादासाहेब जाधव (अंग्रेज़ी: Khashaba Dadasaheb Jadhav, जन्म- 15 जनवरी, 1926, महाराष्ट्र; मृत्यु- 14 अगस्त, 1984) भारत के प्रसिद्ध कुश्ती खिलाड़ी थे। वे पहले भारतीय खिलाड़ी थे, जिन्होंने सन 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में देश के लिए कुश्ती की व्यक्तिगत स्पर्धा में सबसे पहले कांस्य पदक जीता था। वैसे तो 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने फिर से स्वर्ण पदक हासिल किया था, लेकिन चर्चा सोने से अधिक उस कांस्य पदक की होती है, जिसे पहलवान खाशाबा जाधव ने जीता था। खाशाबा को पॉकेट डायनमो के नाम से भी जाना जाता है। भारत को ओलम्पिक पदक दिलाने वाला यह खिलाड़ी बाद में गुमनाम बनकर रह गया।

परिचय

पहलवान खाशाबा जाधव का जन्म 15 जनवरी सन 1926 में सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। वर्ष 1940 से 1947 के मध्य खाशाबा जाधव ने अपनी स्कूली शिक्षा तिलक हाई स्कूल, ज़िला कारद से पूरी की। खाशाबा ने कम उम्र में ही स्थानीय चैंपियन को मात्र दो मिनट में पराजित कर दिया था। इसके बाद वे अपने क्षेत्र के निर्विवाद चैंपियन बन गए थे।

आर्थिक संकट

खाशाबा जाधव ने सबसे पहली बार ओलम्पिक में 1948 में हिस्सा लिया था। कोलहापुर के महाराजा ने उनकी लंदन यात्रा का खर्चा उठाया। तब वे कोई विजयी प्रदर्शन नहीं कर सके। इसके बाद उन्होंने 1952 में हेलसिंकी में हुए ओलम्पिक खेलों में एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया। हेलसिंकी जाना उनके लिए आसान बात नहीं थी। वे क्वालिफ़ाई तो कर चुके थे, लेकिन वहां पहुंचने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। खाशाबा ने हेलसिंकी जाने के लिए सरकार से मदद मांगी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनसे पल्ला झाड़ लिया। सरकार ने कहा- "जब खेल खत्म हो जाएं, तब वे उनसे आ कर मिलें।"

हेलसिंकी ओलम्पिक में प्रतिभाग

खाशाबा ने जैसे हेलसिंकी जाने की ठान ली थी। उन्होंने अपने परिवार के साथ मिल कर इस यात्रा के लिए भीख मांग कर राशि जुटाई। राज्य सरकार ने उनके लगातार आग्रह के बाद उन्हें 4000 रुपए की छोटी-सी राशि दे दी। उस समय खाशाबा राजाराम कॉलेज में पढ़ा करते थे। उस कॉलेज के प्रधानाध्यापक खरडिकर ने खाशाबा की लगन देखकर उन्हें 7000 रुपए की आर्थिक मदद दे दी। अब उन्हें हेलसिंकी जाने का रास्ता मिल गया था।

कांस्य पदक

खाशाबा जाधव ने हेलसिंकी में कांस्य पदक जीतकर अपना जलवा दिखा दिया। हेलसिंकी की मैट सर्फेस पर वे एडजस्ट नहीं कर सके और इसी कारण वे स्वर्ण पदक से चूक गए। उन खेलों में नियमों के विरुद्ध लगातार दो बाउट रखवाए गए थे। खाशाबा के स्वर्ण पदक से चूकने का यह भी एक प्रमुख कारण रहा था।

भारत वापसी

पदक जीतने के बाद स्वदेश लौटने पर खाशाबा का जोरदार स्वागत हुआ, लेकिन उनके मन में सिर्फ एक ही बात थी, अपने प्रिंसिपल का वह कर्ज चुकाना। भारत आने के बाद उन्होंने जो पहली कुश्ती लड़ी, उसकी पूरी इनामी राशि अपने प्रिंसिपल खरडीकर को दे दी, ताकि वे अपना गिरवी रखा घर छुड़ा सकें।

निधन

सन 1955 में शाशाबा जाधव को मुंबई पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की नौकरी मिली। अगले कई वर्षों तक वे इसी पद पर बिना किसी प्रमोशन के बने रहे। 1982 में महज 6 महीनों के लिए उन्हें असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर का पद दिया गया। इसके बाद वे सेवानिवृत्त हो गए। सेवानिवृत्ति के महज दो साल बाद एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया। आज दिल्ली में खाशाबा जाधव के नाम से स्टेडियम है, लेकिन उनके परिवार को कोई आर्थिक सहायता मुहैया नहीं हो सकी है।

मुंबई पुलिस के लिए खाशाबा जाधव ने 25 साल तक सेवाएं दीं, लेकिन उनके सहकर्मी इस बात को कभी नहीं जान सके कि वे ओलम्पिक चैंपियन हैं। पुलिस विभाग में खेल कोटा खाशाबा के ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद ही शुरू हुआ। आज भी लोगों की भर्ती खेल कोटा से होती है, लेकिन यह खाशाबा जाधव की ही देन है, इस बात की जानकारी आज के पुलिस वालों को शायद ही हो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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