ऑपरेशन पोलो
ऑपरेशन पोलो उस सैनिक अभियान को कहा जाता है जिसके बाद हैदराबाद और बराड़ की रियासत भारतीय संघ में शामिल हुई। इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हैदराबाद के निज़ाम उस्मान अली ख़ान आसिफ़ जाह सातवें ने देश के बंटवारे के बाद स्वतंत्र रहने का फ़ैसला किया। भारत के बीच एक स्वतंत्र रियासत का बने रहना सरकार को स्वीकार्य नहीं था। भारत के राजनीतिक एकीकरण के प्रमुख वास्तुकार सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसे अपनी प्राथमिकता बनाया। निज़ाम को मनाने की कोशिशें की गईं लेकिन उन्होंने संधि पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। तब हारकर सेना भेजी गई और हैदराबाद 12 सितंबर 1948 को भारतीय संघ में शामिल हो गया। भारतीय सेना के इसी गुप्त ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन पोलो था।[1]
निज़ाम का विरोध
निज़ाम ने भारत को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं पर रोक लगा दी थी और भारतीय करेंसी पर भी। यानि वह खुद अपनी करेंसी वहां चलाता था। निजाम ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये भी दिए। यही नहीं उसने कराची में अपने एक अधिकारी को नियुक्त कर दिया और वह कई अन्य देशों में अपने एजेंटों को भेजने वाला था।
निजाम के सलाहकारों ने उन्हें आश्वस्त किया कि यदि भारत आर्थिक प्रतिबंध थोपता है यह प्रभावी नहीं हो पाएंगे तथा आगामी कुछ महीनों तक हैदराबाद अपने पांवों पर खड़ा रह सकेगा, और इस अवधि में दुनिया भर में जनमत को अपने पक्ष में खड़ा किया जा सकेगा। माना जाता था कि सभी मुस्लिम देश हैदराबाद के साथ दोस्ताना थे और वे उसके विरुद्ध किसी सैन्य कार्रवाई को नहीं होने देंगे।
हैदराबाद रेडियो ने तो ये घोषणा भी कर दी कि यदि हैदराबाद के विरुद्ध युद्ध छेड़ा गया तो हज़ारों पाकिस्तानी भारत की ओर मार्च कर देंगे। माना जा रहा था कि हैदराबाद के विमान बॉम्बे, मद्रास, कलकत्ता और दिल्ली जैसे शहरों पर बम बरसा सकते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऑपरेशन पोलो क्या है? (हिंदी) www.bbc.com। अभिगमन तिथि: 27 जनवरी, 2017।
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