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'''साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान''' उत्तरी केरल के पालक्काड ज़िले के मन्नारकाड से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। 90 वर्ग कि.मी. में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान पालक्काड ज़िले के उत्तरी भाग में अवस्थित है। उत्तर में यह नीलगिरि पठार तक विस्तृत है और दक्षिण में मन्नारकाड के मैदान से ऊँचा है।
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'''साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान''' उत्तरी [[केरल]] के [[पालक्काड|पालक्काड ज़िले]] के मन्नारकाड से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। 90 वर्ग कि.मी. में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान पालक्काड ज़िले के उत्तरी भाग में अवस्थित है। उत्तर में यह [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरि]] पठार तक विस्तृत है और दक्षिण में मन्नारकाड के मैदान से ऊँचा है।
 
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==इतिहास==
प्रमुख आकर्षण: यह ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा-वनों का एक अत्यंत अनोखा किंतु नाजुक संतुलन है जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता पूर्ण नर्सरी है। इनमें से कुछ प्रजातियां तो यहां के अलावा दुनिया में और कहीं नहीं मिलतीं।
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इस वन क्षेत्र को सन 1847 में एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट वाइट ने खोजा था। स्थानीय लोग इसे सैरन्ध्रीवनम कहते हैं। [[सैरन्ध्री]] [[द्रौपदी]] का नाम है। कहते हैं कि [[अज्ञातवास]] के दौरान [[पांडव]] यहाँ आकर भी रहे। इसे साइलेंट वैली कहने के पीछे सबसे बड़ी वजह यहाँ की अजब प्राकृतिक शांति है। शायद सैरन्ध्री शब्द को बोलने में [[अंग्रेज़|अंग्रेजों]] को दिक्कत थी इसलिए उससे मिलता-जुलता नाम साइलेंट वैली मिला।<ref>{{cite web |url=http://gyaankosh.blogspot.in/2011_08_01_archive.html |title=सायलेंट वैली कहाँ है? इसका नाम सायलेंट वैली क्यों है? |accessmonthday=16 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=|publisher=ज्ञानकोश (ब्लॉग) |language= हिंदी}} </ref>
 
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==मुख्य आकर्षण==
 
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इस जंगल की विशेषता है कि यहाँ प्रकृति के साथ लगभग न के बराबर छेड़छाड़ की गई है। सन 70 के दशक में यहाँ एक पनबिजली योजना लाने की कोशिश की गई, पर जनता के विरोध के कारण उसे अनुमति नहीं मिली। यह राष्ट्रीय उद्यान ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा वनों का एक अत्यंत अनोखा, किंतु नाजुक संतुलन है, जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता से भरी हुई पूर्ण नर्सरी है। इस उद्यान में पाई जाने वाली जीवों की कुछ प्रजातियाँ तो यहाँ के अलावा दुनिया में और कहीं भी देखने को नहीं मिलती हैं।
नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान की हृदय स्थली है। अपने नाम (रइयां का कोलाहल यहां नदारद है) के विपरीत यह जैवविविधता से भरपूर है। जीवविज्ञान के विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और क्षेत्र जीवविज्ञानियों के लिए यह स्थान स्वर्ग है।
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नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान की [[हृदय]] स्थली है। अपने नाम <ref>रइयाँ का कोलाहल यहाँ नदारद है।</ref> के विपरीत यह जैव-विविधता से भरपूर है। जीव विज्ञान के विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और क्षेत्र के जीव विज्ञानियों के लिए यह स्थान एक स्वर्ग के समान है। पश्चिमी घाट की जैव-विविधता का ऐसा संग्रह अन्यत्र मिल पाना मुश्किल है।
शायद आपको और कहीं भी पश्चिमी घाट की जैवविविधता का ऐसा संग्रह नहीं मिलेगा। यहां 1000 से भी अधिक पुष्पी पौधों की प्रजातियां जिनमें 110 किस्मों के ऑर्किड, 34 से अधिक प्रजातियों के स्तनधारी, लगभग 200 किस्मों की तितलियां, 400 किस्मों के शलभ, 128 किस्मों के भृंग (जिनमें से 10 तो जीवविज्ञान के लिए बिल्कुल नए हैं।) और दक्षिण भारत में पाई जाने वाली 16 प्रजातियों के पक्षियों सहित चिड़ियों की 150 प्रजातियां पाई जाती हैं।
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==जीव जंतु==
 
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साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान में 1000 से भी अधिक पुष्पी पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें 110 किस्मों के ऑर्किड, 34 से अधिक प्रजातियों के स्तनधारी जीव, लगभग 200 किस्मों की तितलियाँ, 400 किस्मों के शलभ, 128 किस्मों के भृंग, जिनमें से 10 तो जीव विज्ञान के लिए बिल्कुल नए हैं, और दक्षिण भारत में पाई जाने वाली 16 प्रजातियों के पक्षियों सहित चिड़ियों की 150 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
कुंती नदी नीलगिरि पर्वत की 2000 मी. की ऊंचाई से उतरती है और घाटी में गुजरती हुई घने जंगलों वाले मैदानों के होकर आगे बढ़ती है। कुंती नदी का रंग कभी भी मटमैला नहीं पड़ता। सालों भर बहने वाली इस बनैली नदी का पानी हमेशा शीशे की तरह स्वच्छ रहता है।
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कुंती नदी [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरि पर्वत]] की 2000 मीटर की ऊँचाई से उतरती है और घाटी में गुजरती हुई घने जंगलों वाले मैदानों से होकर आगे प्रवाहित होती है। कुंती नदी का [[रंग]] कभी भी मटमैला नहीं पड़ता। वर्ष भर बहने वाली इस बनैली नदी का [[जल]] हमेशा काँच के समान स्वच्छ बना रहता है। इन जंगलों से वाष्पीकरण-प्रस्वेदन किसी भी अन्य स्थान की तुलना में अधिक होता है। इस कारण यहाँ का वायुमंडल शीतल बना रहता है और जलवाष्प बड़ी आसानी से संघनित होकर मैदानों में ग्रीष्म कालीन [[वर्षा]] का कारण बनता है।
इन जंगलों से वास्पीकरण-प्रस्वेदन किसी भी अन्य स्थान की तुलना में अधिक होता है। इस कारण यहां का वायुमंडल शीतल बना रहता है और जलवाष्प बड़ी आसानी से संघनित होकर मैदानों में गृष्म कालीन वर्षा का कारण बनता है।
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इस उद्यान तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन [[पालक्काड]] है, जो लगभग 80 कि.मी. दूर है। निकटतम हवाई अड्डा [[तमिलनाडु]] का [[कोयम्बटूर]] है, जो लगभग 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
यहां पहुंचने के लिए:
 
निकटतम रेलवे स्टेशन : पालक्काड, लगभग 80 किमी।
 
निकटतम हवाई अड्डा: कोयम्बटूर (पड़ोसी तमिलनाडु राज्य में), लगभग 55 किमी।
 
  
 
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08:51, 16 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान उत्तरी केरल के पालक्काड ज़िले के मन्नारकाड से 40 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। 90 वर्ग कि.मी. में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान पालक्काड ज़िले के उत्तरी भाग में अवस्थित है। उत्तर में यह नीलगिरि पठार तक विस्तृत है और दक्षिण में मन्नारकाड के मैदान से ऊँचा है।

इतिहास

इस वन क्षेत्र को सन 1847 में एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट वाइट ने खोजा था। स्थानीय लोग इसे सैरन्ध्रीवनम कहते हैं। सैरन्ध्री द्रौपदी का नाम है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ आकर भी रहे। इसे साइलेंट वैली कहने के पीछे सबसे बड़ी वजह यहाँ की अजब प्राकृतिक शांति है। शायद सैरन्ध्री शब्द को बोलने में अंग्रेजों को दिक्कत थी इसलिए उससे मिलता-जुलता नाम साइलेंट वैली मिला।[1]

मुख्य आकर्षण

इस जंगल की विशेषता है कि यहाँ प्रकृति के साथ लगभग न के बराबर छेड़छाड़ की गई है। सन 70 के दशक में यहाँ एक पनबिजली योजना लाने की कोशिश की गई, पर जनता के विरोध के कारण उसे अनुमति नहीं मिली। यह राष्ट्रीय उद्यान ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा वनों का एक अत्यंत अनोखा, किंतु नाजुक संतुलन है, जिसके अंतर्गत अनेक प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की विविधता से भरी हुई पूर्ण नर्सरी है। इस उद्यान में पाई जाने वाली जीवों की कुछ प्रजातियाँ तो यहाँ के अलावा दुनिया में और कहीं भी देखने को नहीं मिलती हैं।

जैव विविधता

नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान की हृदय स्थली है। अपने नाम [2] के विपरीत यह जैव-विविधता से भरपूर है। जीव विज्ञान के विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और क्षेत्र के जीव विज्ञानियों के लिए यह स्थान एक स्वर्ग के समान है। पश्चिमी घाट की जैव-विविधता का ऐसा संग्रह अन्यत्र मिल पाना मुश्किल है।

जीव जंतु

साइलैंट वैली राष्ट्रीय उद्यान में 1000 से भी अधिक पुष्पी पौधों की प्रजातियाँ, जिनमें 110 किस्मों के ऑर्किड, 34 से अधिक प्रजातियों के स्तनधारी जीव, लगभग 200 किस्मों की तितलियाँ, 400 किस्मों के शलभ, 128 किस्मों के भृंग, जिनमें से 10 तो जीव विज्ञान के लिए बिल्कुल नए हैं, और दक्षिण भारत में पाई जाने वाली 16 प्रजातियों के पक्षियों सहित चिड़ियों की 150 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

जल की उपलब्धता

कुंती नदी नीलगिरि पर्वत की 2000 मीटर की ऊँचाई से उतरती है और घाटी में गुजरती हुई घने जंगलों वाले मैदानों से होकर आगे प्रवाहित होती है। कुंती नदी का रंग कभी भी मटमैला नहीं पड़ता। वर्ष भर बहने वाली इस बनैली नदी का जल हमेशा काँच के समान स्वच्छ बना रहता है। इन जंगलों से वाष्पीकरण-प्रस्वेदन किसी भी अन्य स्थान की तुलना में अधिक होता है। इस कारण यहाँ का वायुमंडल शीतल बना रहता है और जलवाष्प बड़ी आसानी से संघनित होकर मैदानों में ग्रीष्म कालीन वर्षा का कारण बनता है।

कैसे पहुँचें

इस उद्यान तक पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन पालक्काड है, जो लगभग 80 कि.मी. दूर है। निकटतम हवाई अड्डा तमिलनाडु का कोयम्बटूर है, जो लगभग 55 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सायलेंट वैली कहाँ है? इसका नाम सायलेंट वैली क्यों है? (हिंदी) ज्ञानकोश (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 16 दिसम्बर, 2012। 
  2. रइयाँ का कोलाहल यहाँ नदारद है।

बाहरी कड़ियाँ

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