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पूर्वी हिन्दी की तीन शाखाएँ मानी गई हैं- बघेली, छत्तीसगढ़ी और अवधी। अवधी बोली अर्धमागधी प्राकृत की परम्परा में आती है। यह बोली मुख्यत: अवध में बोली जाती है।
- अवध में बोली जाने वाली बोली के दो भेद हैं-
- पूर्वी अवधी
- पश्चिमी अवधी
- अवधी को 'बैसवाड़ी' भी कहा जाता है। तुलसीदास के 'रामचरितमानस' में अधिकांशत: पश्चिमी अवधी मिलती है और जायसी के 'पद्मावत' में पूर्वी अवधी दृष्टिगोचर होती है।
- बघेली बघेलखंड में प्रचलित है। यह अवधी का ही एक दक्षिणी रूप है।
- छत्तीसगढ़ी पलामू की सीमा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक और पश्चिम में बघेलखंड की सीमा से उड़ीसा की सीमा तक फैले हुए भूभाग की बोली है। इसमें प्राचीन साहित्य नहीं मिलता।
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