"प्रयोग:नवनीत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा ऐतिहासिक पात्र
+
==हिंदी भाषा का विकास==
|चित्र=Tarabai.jpg
+
'''हिंदी''' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय [[हिंदी]] का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।
|चित्र का नाम=ताराबाई
+
 
|पूरा नाम=ताराबाई भोंसले
+
==वर्गीकरण==
|अन्य नाम=
+
*हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है।
|जन्म=1675 ई.  
+
*आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विश्लिष्ट भाषा है।
|जन्म भूमि=
+
*भाषा–परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
|मृत्यु तिथि=[[9 दिसम्बर]] 1761 ई.
+
*[[भारत]] में 4 भाषा–परिवार— [[भारोपीय भाषा परिवार|भारोपीय]], द्रविड़, आस्ट्रिक व चीनी–तिब्बती मिलते हैं। [[भारत]] में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
|मृत्यु स्थान=
+
*हिंदी भारोपीय/ भारत [[यूरोप|यूरोपीय]] के भारतीय– [[ईरान|ईरानी]] शाखा के भारतीय आर्य (Indo–Aryan) उपशाखा से विकसित एक भाषा है।
|पिता/माता=
+
*भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में विभक्त किया जाता है।
|पति/पत्नी=[[राजाराम शिवाजी|राजाराम]]
+
{{भारत के भाषा परिवार सूची1}}
|संतान=[[शिवाजी तृतीय]]
+
हिंदी की आदि जननी [[संस्कृत]] है। संस्कृत [[पालि भाषा|पालि]], [[प्राकृत भाषा]] से होती हुई [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]] तक पहुँचती है। फिर अपभ्रंश, [[अवहट्ट]] से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारम्भिक हिंदी का रूप लेती है। विशुद्धतः, हिंदी भाषा के इतिहास का आरम्भ अपभ्रंश से माना जाता है।
|उपाधि=
+
*हिंदी का विकास क्रम- '''[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]]→ [[पालि भाषा|पालि]]→ [[प्राकृत भाषा|प्राकृत]]→ [[अपभ्रंश भाषा|अपभ्रंश]]→ अवहट्ट→ प्राचीन / प्रारम्भिक हिंदी'''
|शासन=
+
==अपभ्रंश==
|धार्मिक मान्यता=
+
{{main|अपभ्रंश भाषा}}
|राज्याभिषेक=
+
[[अपभ्रंश भाषा]] का विकास 500 ई. से लेकर 1000 ई. के मध्य हुआ और इसमें [[साहित्य]] का आरम्भ 8वीं [[सदी]] ई. (स्वयंभू [[कवि]]) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा। अपभ्रंश (अप+भ्रंश+घञ्) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है 'पतन', किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है— प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।
|युद्ध=
+
;प्रमुख रचनाकार-
|प्रसिद्धि=
+
[[स्वयंभुव मनु|स्वयंभू]]— अपभ्रंश का [[वाल्मीकि]] ('[[पउम चरिउ]]' अर्थात् राम काव्य), धनपाल ('भविस्सयत कहा'–अपभ्रंश का पहला प्रबन्ध काव्य), पुष्पदंत ('महापुराण', '[[जसहर चरिउ]]'), सरहपा, कण्हपा आदि सिद्धों की रचनाएँ ('चरिया पद', 'दोहाकोशी') आदि।
|निर्माण=
+
==अवहट्ट==
|सुधार-परिवर्तन=
+
{{main|अवहट्ट भाषा}}
|राजधानी=
+
अवहट्ट 'अपभ्रंष्ट' शब्द का विकृत रूप है। इसे 'अपभ्रंश का अपभ्रंश' या 'परवर्ती अपभ्रंश' कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच की संक्रमणकालीन/संक्रांतिकालीन भाषा है। इसका कालखंड 900 ई. से 1100 ई. तक निर्धारित किया जाता है। वैसे साहित्य में इसका प्रयोग 14वीं सदी तक होता रहा है। अब्दुर रहमान, दामोदर पंडित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, [[विद्यापति]] आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को मधुरतर बताते हैं। देश की भाषा सब लोगों के लिए मीठी है। इसे अवहट्ठा कहा जाता है।<ref>'देसिल बयना सब जन मिट्ठा/ते तैसन जम्पञो अवहट्ठा'</ref>
|पूर्वाधिकारी=
+
;प्रमुख रचनाकार-
|राजघराना=
+
अद्दहमाण/अब्दुर रहमान ('संनेह रासय'/'संदेश रासक'), दामोदर पंडित ('उक्ति–व्यक्ति–प्रकरण'), ज्योतिरीश्वर ठाकुर ('वर्ण रत्नाकर'), विद्यापति ('कीर्तिलता') आदि।
|वंश=
+
 
|शासन काल=1700 ई.-1707 ई.
+
 
|स्मारक=
+
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}}
|मक़बरा=
+
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
|संबंधित लेख=[[शिवाजी]], [[शाहजी भोंसले]], [[शम्भाजी|शम्भाजी पेशवा]], [[बालाजी विश्वनाथ]], [[बाजीराव प्रथम]], [[बाजीराव द्वितीय]], [[राजाराम शिवाजी]], [[तालीकोट का युद्ध]], [[खेड़ा का युद्ध]]  
+
<references>
|शीर्षक 1=
+
==बाहरी कड़ियाँ==
|पाठ 1=
+
*[http://www.pravakta.com/indian-aryan-languages-of-the-indo-european-family भारोपीय परिवार की भारतीय भाषाएँ]
|शीर्षक 2=
+
*[http://www.pravakta.com/reflections-in-relation-to-hindi-language हिन्दी भाषा के सम्बंध में कुछ विचार]
|पाठ 2=
+
*[http://www.rachanakar.org/2010/03/blog-post_3350.html हिन्दी भाषा-क्षेत्र एवं हिन्दी के क्षेत्रगत रूप]
|अन्य जानकारी=1700 से 1707 ई. तक के संकटकाल में ताराबाई ने [[मराठा|मराठा राज्य]] की एकसूत्रता और अखण्डता बनाये रखकर उसकी अमूल्य सेवा की।
+
*[http://www.scribd.com/doc/22142436/Hindi-Urdu हिन्दी-उर्दू का अद्वैत]
|बाहरी कड़ियाँ=
+
*[http://www.scribd.com/doc/22573933/Hindi-kee-antarraashtreeya-bhoomikaa हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीय भूमिका]
|अद्यतन=
+
 
}}
+
==संबंधित लेख==
 +
{{हिन्दी भाषा}}{{भाषा और लिपि}}{{व्याकरण}}
 +
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]][[Category:साहित्य कोश]]
 +
[[Category:हिन्दी भाषा]]
 +
[[Category:जनगणना अद्यतन]]
 +
__INDEX__
 +
__NOTOC__

07:12, 5 मई 2016 का अवतरण

हिंदी भाषा का विकास

हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था।

वर्गीकरण

  • हिंदी विश्व की लगभग 3,000 भाषाओं में से एक है।
  • आकृति या रूप के आधार पर हिंदी वियोगात्मक या विश्लिष्ट भाषा है।
  • भाषा–परिवार के आधार पर हिंदी भारोपीय परिवार की भाषा है।
  • भारत में 4 भाषा–परिवार— भारोपीय, द्रविड़, आस्ट्रिक व चीनी–तिब्बती मिलते हैं। भारत में बोलने वालों के प्रतिशत के आधार पर भारोपीय परिवार सबसे बड़ा भाषा परिवार है।
  • हिंदी भारोपीय/ भारत यूरोपीय के भारतीय– ईरानी शाखा के भारतीय आर्य (Indo–Aryan) उपशाखा से विकसित एक भाषा है।
  • भारतीय आर्यभाषा को तीन कालों में विभक्त किया जाता है।
भारत में 4 भाषा–परिवार
भाषा-परिवार भारत में बोलने वालों का %
भारोपीय 73%
द्रविड़ 25%
आस्ट्रिक 1.3%
चीनी–तिब्बती 0.7%
भारतीय आर्यभाषा को तीन काल
नाम प्रयोग काल उदाहरण
1.प्राचीन भारतीय आर्यभाषा 1500 ई. पू.– 500 ई. पू. वैदिक संस्कृत व लौकिक संस्कृत
2.मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा 500 ई. पू.– 1000 ई. पालि, प्राकृत, अपभ्रंश
3.आधुनिक भारतीय आर्यभाषा 1000 ई.– अब तक हिन्दी और हिन्दीतर भाषाएँ – बांग्ला, उड़िया, मराठी,
सिंधी, असमिया, गुजराती, पंजाबी आदि।
1.प्राचीन भारतीय आर्यभाषा
नाम प्रयोग काल अन्य नाम
वैदिक संस्कृत 1500 ई. पू.– 1000 ई. पू. छान्दस् (यास्क, पाणिनि)
लौकिक संस्कृत 1000 ई. पू.- 500 ई. पू. संस्कृत भाषा (पाणिनि)
2.मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा
नाम प्रयोग काल विशेष टिप्पणी
प्रथम प्राकृत काल– पालि 500 ई. पू.– 1 ई. भारत की प्रथम देश भाषा, भगवान बुद्ध के सारे उपदेश पालि में ही हैं।
द्वितीय प्राकृत काल– प्राकृत 1 ई.– 500 ई. भगवान महावीर के सारे उपदेश प्राकृत में ही हैं।
तृतीय प्राकृत काल– अपभ्रंश अवहट्ट 500 ई.– 1000 ई.

900 ई. – 1100 ई.

संक्रमणकालीन/संक्रान्तिकालीन भाषा
3.आधुनिक भारतीय आर्यभाषा (हिन्दी)
नाम प्रयोग काल
प्राचीन हिन्दी 1100 ई. – 1400 ई.
मध्यकालीन हिन्दी 1400 ई. - 1850 ई.
आधुनिक हिन्दी 1850 ई. – अब तक


हिंदी की आदि जननी संस्कृत है। संस्कृत पालि, प्राकृत भाषा से होती हुई अपभ्रंश तक पहुँचती है। फिर अपभ्रंश, अवहट्ट से गुजरती हुई प्राचीन/प्रारम्भिक हिंदी का रूप लेती है। विशुद्धतः, हिंदी भाषा के इतिहास का आरम्भ अपभ्रंश से माना जाता है।

अपभ्रंश

अपभ्रंश भाषा का विकास 500 ई. से लेकर 1000 ई. के मध्य हुआ और इसमें साहित्य का आरम्भ 8वीं सदी ई. (स्वयंभू कवि) से हुआ, जो 13वीं सदी तक जारी रहा। अपभ्रंश (अप+भ्रंश+घञ्) शब्द का यों तो शाब्दिक अर्थ है 'पतन', किन्तु अपभ्रंश साहित्य से अभीष्ट है— प्राकृत भाषा से विकसित भाषा विशेष का साहित्य।

प्रमुख रचनाकार-

स्वयंभू— अपभ्रंश का वाल्मीकि ('पउम चरिउ' अर्थात् राम काव्य), धनपाल ('भविस्सयत कहा'–अपभ्रंश का पहला प्रबन्ध काव्य), पुष्पदंत ('महापुराण', 'जसहर चरिउ'), सरहपा, कण्हपा आदि सिद्धों की रचनाएँ ('चरिया पद', 'दोहाकोशी') आदि।

अवहट्ट

अवहट्ट 'अपभ्रंष्ट' शब्द का विकृत रूप है। इसे 'अपभ्रंश का अपभ्रंश' या 'परवर्ती अपभ्रंश' कह सकते हैं। अवहट्ट अपभ्रंश और आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के बीच की संक्रमणकालीन/संक्रांतिकालीन भाषा है। इसका कालखंड 900 ई. से 1100 ई. तक निर्धारित किया जाता है। वैसे साहित्य में इसका प्रयोग 14वीं सदी तक होता रहा है। अब्दुर रहमान, दामोदर पंडित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, विद्यापति आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को मधुरतर बताते हैं। देश की भाषा सब लोगों के लिए मीठी है। इसे अवहट्ठा कहा जाता है।[1]

प्रमुख रचनाकार-

अद्दहमाण/अब्दुर रहमान ('संनेह रासय'/'संदेश रासक'), दामोदर पंडित ('उक्ति–व्यक्ति–प्रकरण'), ज्योतिरीश्वर ठाकुर ('वर्ण रत्नाकर'), विद्यापति ('कीर्तिलता') आदि।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

<references>

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


  1. 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा/ते तैसन जम्पञो अवहट्ठा'