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इसकी शब्दावली पर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] का प्रभाव भी देखा सकता है। डोगरी भाषा पश्चिमोत्तर भारत के पर्वतीय और उपपर्वतीय क्षेत्रों तथा इससे सटे मैदानों में बोली जाती है। यह क्षेत्र उत्तर में पीरपंजाल और धौलाधार पर्वतश्रेणियों, दक्षिण में [[पंजाब]] के मैदानों, पूर्व में [[सतलुज नदी]] और पश्चिम में मुनव्वर तवी से घिरा हुआ है।  
 
इसकी शब्दावली पर [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] का प्रभाव भी देखा सकता है। डोगरी भाषा पश्चिमोत्तर भारत के पर्वतीय और उपपर्वतीय क्षेत्रों तथा इससे सटे मैदानों में बोली जाती है। यह क्षेत्र उत्तर में पीरपंजाल और धौलाधार पर्वतश्रेणियों, दक्षिण में [[पंजाब]] के मैदानों, पूर्व में [[सतलुज नदी]] और पश्चिम में मुनव्वर तवी से घिरा हुआ है।  
 
==स्वर और व्यंजन==
 
==स्वर और व्यंजन==
डोगरी भाषा में 10 स्वर और 28 व्यंजन हैं। इस भाषा में कर्मवाच्य और भाववाचक शब्दों की प्रधानता है। उदाहरण के लिए, लिकिआ-'लिखा' और लखोआ-'लिख गया'। डोगरी (डुग्गर) के बारे में सबसे पुराना उल्लेख 1317 ई0 में [[अमीर ख़ुसरों]] द्वारा लिखित एक मसनवी नूह-शिफ़िर में मिलता है, जैसे- सिंधी ओ लहोरी ओ कश्मीरी ओ डोग्गर।  
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डोगरी भाषा में 10 स्वर और 28 व्यंजन हैं। इस भाषा में कर्मवाच्य और भाववाचक शब्दों की प्रधानता है। उदाहरण के लिए, लिकिआ-'लिखा' और लखोआ-'लिख गया'। डोगरी (डुग्गर) के बारे में सबसे पुराना उल्लेख 1317 ई0 में [[अमीर ख़ुसरो]] द्वारा लिखित एक मसनवी नूह-शिफ़िर में मिलता है, जैसे- सिंधी ओ लहोरी ओ कश्मीरी ओ डोग्गर।
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==लिपि==
 
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इसकी अपनी लिपि है, जिसे डोगरा अख्खर या डोगरे<ref>पुराने डोगरे और नामें डोगरे, जो तक्री या तहक्री लिपियों पर आधारित है</ref> कहते हैं। इस लिपि में लिखी गई डोगरी, महाराजा रणवीर सिंह (1857-1885) के शासनकाल में [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] की राजभाषा थी, लेकिन नई पीढ़ी ने डोगरी के लिए नागरी लिपि को अपना लिया। लगभग सम्पूर्ण आधुनिक साहित्य की रचना [[देवनागरी लिपि]] में ही हुई है और अब भी इसी का उपयोग हो रहा है। डोगरी भाषा को जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान की मान्यता प्राप्त है और इसे विद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर पर भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है।  
 
इसकी अपनी लिपि है, जिसे डोगरा अख्खर या डोगरे<ref>पुराने डोगरे और नामें डोगरे, जो तक्री या तहक्री लिपियों पर आधारित है</ref> कहते हैं। इस लिपि में लिखी गई डोगरी, महाराजा रणवीर सिंह (1857-1885) के शासनकाल में [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू-कश्मीर]] की राजभाषा थी, लेकिन नई पीढ़ी ने डोगरी के लिए नागरी लिपि को अपना लिया। लगभग सम्पूर्ण आधुनिक साहित्य की रचना [[देवनागरी लिपि]] में ही हुई है और अब भी इसी का उपयोग हो रहा है। डोगरी भाषा को जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान की मान्यता प्राप्त है और इसे विद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर पर भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है।  

11:28, 9 अगस्त 2010 का अवतरण

डोगरी भाषा भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य की दूसरी मुख्य भाषा है। यह भारोपीय भाषा परिवार के भारतीय-आर्य भाषा समूह की सदस्य है। इसका मूल प्राचीन भारतीय-आर्य भाषा समूह और लौकिक संस्कृत में स्थित है। अन्य आधुनिक भारतीय-आर्य भाषाओं के समान डोगरी भी विकास के प्राचीन भारतीय-आर्य (संस्कृत) और मध्य भारतीय-आर्य (पालि, प्राकृत और अपभ्रंश) चरणों से गुज़र चुकी है और इसने लगभग 10वीं शताब्दी में आधुनिक भारतीय-आर्य चरण में प्रवेश किया। इसमें ध्वनि संरचना में विकास की तीन स्तरीय प्रक्रिया दिखाई देती है, जो शौरसेनी प्राकृत से इसकी निकटता को प्रदर्शित करती है, लेकिन वैदिक काल से इसके वर्तमान स्वरूप तक विकास के दौरान डोगरी ने सभी चरणों की विशेषताओं को संरक्षित रखा है, जैसा डोगरी शब्द पुत्तर, यानी 'बेटा' (प्राचीन भारतीय-आर्य पुत्र, मध्य भारतीय-पुत्त) में दिखाई देता है।

भाषा

इसकी शब्दावली पर फ़ारसी और अंग्रेज़ी का प्रभाव भी देखा सकता है। डोगरी भाषा पश्चिमोत्तर भारत के पर्वतीय और उपपर्वतीय क्षेत्रों तथा इससे सटे मैदानों में बोली जाती है। यह क्षेत्र उत्तर में पीरपंजाल और धौलाधार पर्वतश्रेणियों, दक्षिण में पंजाब के मैदानों, पूर्व में सतलुज नदी और पश्चिम में मुनव्वर तवी से घिरा हुआ है।

स्वर और व्यंजन

डोगरी भाषा में 10 स्वर और 28 व्यंजन हैं। इस भाषा में कर्मवाच्य और भाववाचक शब्दों की प्रधानता है। उदाहरण के लिए, लिकिआ-'लिखा' और लखोआ-'लिख गया'। डोगरी (डुग्गर) के बारे में सबसे पुराना उल्लेख 1317 ई0 में अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखित एक मसनवी नूह-शिफ़िर में मिलता है, जैसे- सिंधी ओ लहोरी ओ कश्मीरी ओ डोग्गर।

लिपि

इसकी अपनी लिपि है, जिसे डोगरा अख्खर या डोगरे[1] कहते हैं। इस लिपि में लिखी गई डोगरी, महाराजा रणवीर सिंह (1857-1885) के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर की राजभाषा थी, लेकिन नई पीढ़ी ने डोगरी के लिए नागरी लिपि को अपना लिया। लगभग सम्पूर्ण आधुनिक साहित्य की रचना देवनागरी लिपि में ही हुई है और अब भी इसी का उपयोग हो रहा है। डोगरी भाषा को जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान की मान्यता प्राप्त है और इसे विद्यालय तथा विश्वविद्यालय स्तर पर भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है।

डोगरी भाषी क्षेत्र के तीन प्रमुख:-

  • भूखण्ड कांडी जम्मू प्रान्त के जम्मू, कठुवा और ऊधमपुर ज़िले के बलुई, पथरीले और शुष्क क्षेत्र,
  • पहाड़ी हिमाचल प्रदेश राज्य में कठुवा, चंबा व कांगड़ा का पर्वतीय क्षेत्र तथा
  • मैदानी और नदीय क्षेत्र, जिसमें जम्मू के दक्षिणी क्षेत्र, पंजाब के गुरदासपुर और होशियारपुर के उत्तरी क्षेत्र और पाकिस्तान के सियालकोट तथा शकरगढ़ क्षेत्र शामिल हैं।

ये क्षेत्र बोली में अन्तर को प्रदर्शित करते हैं, लेकिन यह देखा गया है कि पश्चिमी पंजाब और पाकिस्तान में डोगरी, कियुंथाली, कंडयाली, भटियाली, सिरमौरी, बगहाती, कुल्लुई, मंडयाली, चंबयाली, कुलहुरी, भदरवाही, गुजरी, रामपुरी, पोगाली, होशियारपुरी-पहाड़ी और लहंदा बोलियाँ बोली जाती हैं। 1981 की भारत की जनगणना के अनुसार डोगरीभाषी लोगों की जनसंख्या लगभग 15 लाख है, लेकिन ऊपर वर्णित तीन भूखण्डों में डोगरीभाषी निवासियों की संख्या अनुमानतः 50 लाख है।

साहित्य

इस भाषा में मौखिक साहित्य की लम्बी और समृद्ध परम्परा रही है। डोगरा जीवन तथा समाज के सभी आयामों से जुड़े लोकगीतों के अलावा कराक, बार, भाख और गीतडू-कत्थकन्न डोगरी लोककाव्य के विशिष्ट स्वरूप हैं। लिखित डोगरी साहित्य के इतिहास को दो चरणों में विभक्त किया गया है। पहला काल अल्प और अनियमित लेखन का था, जो 16वीं शताब्दी के बाद से 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक रहा। दूसरे काल में इस भाषा में लगातार रचनाएँ हुई और साहित्यिक क्षितिज पर कई प्रख्यात लेखकों का उदय हुआ, जैसे कवि, गल्प लेखक, नाटककार, गद्य लेखक और उल्लेखनीय साहित्यिक आलोचक। डोगरी भाषा का अपना व्याकरण है। डोगरी भाषा और साहित्य, लोकगीत व साहित्य पर शोधकार्य प्रकाशन स्वरूप में भी उपलब्ध है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुराने डोगरे और नामें डोगरे, जो तक्री या तहक्री लिपियों पर आधारित है

संबंधित लिंक