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हिंदी वर्णमाला
विवरण 'हिंदी' भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है।
लिपी देवनागरी
आधिकारिक भाषा भारत
नियामक केंद्रीय हिंदी निदेशालय
भाषा–परिवार भारोपीय भाषा परिवार
व्युत्पत्ति हिंदी शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत शब्द सिन्धु से मानी जाती है।
संबंधित लेख हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलियाँ, आठवीं अनुसूची, हिन्दी दिवस, विश्व हिन्दी दिवस, हिंदी पत्रकारिता दिवस
अन्य जानकारी सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं।

हिंदी भारतीय गणराज की राजकीय और मध्य भारतीय- आर्य भाषा है। सन् 2001 की जनगणना के अनुसार, लगभग 25.79 करोड़ भारतीय हिंदी का उपयोग मातृभाषा के रूप में करते हैं, जबकि लगभग 42.20 करोड़ लोग इसकी 50 से अधिक बोलियों में से एक इस्तेमाल करते हैं। सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में भारत की जनगणना का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफ़ेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अँगरेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अँगरेज़ी भाषियों से अधिक है। इसकी कुछ बोलियाँ, मैथिली और राजस्थानी अलग भाषा होने का दावा करती हैं। हिंदी की प्रमुख बोलियों में अवधी, भोजपुरी, ब्रजभाषा, छत्तीसगढ़ी, गढ़वाली, हरियाणवी, कुमांऊनी, मागधी और मारवाड़ी भाषा शामिल हैं।[1]

भारत में हिंदी भाषी क्षेत्र

आधुनिक हिंदी

  • हिंदी के आधुनिक काल तक आते–आते ब्रजभाषा जनभाषा से काफ़ी दूर हट चुकी थी और अवधी ने तो बहुत पहले से ही साहित्य से मुँह मोड़ लिया था। 19वीं सदी के मध्य तक अंग्रेज़ी सत्ता का महत्तम विस्तार भारत में हो चुका था। इस राजनीतिक परिवर्तन का प्रभाव मध्य देश की भाषा हिंदी पर भी पड़ा। नवीन राजनीतिक परिस्थितियों ने खड़ी बोली को प्रोत्साहन प्रदान किया। जब ब्रजभाषा और अवधी का साहित्यिक रूप जनभाषा से दूर हो गया तब उनका स्थान खड़ी बोली धीरे–धीरे लेने लगी। अंग्रेज़ी सरकार ने भी इसका प्रयोग आरम्भ कर दिया।
  • हिंदी के आधुनिक काल में प्रारम्भ में एक ओर उर्दू का प्रचार होने और दूसरी ओर काव्य की भाषा ब्रजभाषा होने के कारण खड़ी बोली को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ा। 19वीं सदी तक कविता की भाषा ब्रजभाषा और गद्य की भाषा खड़ी बोली रही। 20वीं सदी के आते–आते खड़ी बोली गद्य–पद्य दोनों की ही साहित्यिक भाषा बन गई।
  • इस युग में खड़ी बोली को प्रतिष्ठित करने में विभिन्न धार्मिक सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों ने बड़ी सहायता की। फलतः खड़ी बोली साहित्य की सर्वप्रमुख भाषा बन गयी।

खड़ी बोली

प्रमुख हिंदी साहित्यकारों की एक झलक

भारतेन्दु पूर्व युग

खड़ी बोली गद्य के आरम्भिक रचनाकारों में फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के बाहर दो रचनाकारों— सदासुख लाल 'नियाज' (सुखसागर) व इंशा अल्ला ख़ाँ (रानी केतकी की कहानी) तथा फ़ोर्ट विलियम कॉलेज, कलकत्ता के दो भाषा मुंशियों— लल्लू लालजी (प्रेम सागर) व सदल मिश्र (नासिकेतोपाख्यान) के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु पूर्व युग में मुख्य संघर्ष हिंदी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों— राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिन्द' व राजा लक्ष्मण सिंह ने हिंदी के स्वरूप निर्धारण के सवाल पर दो सीमान्तों का अनुगमन किया। राजा शिव प्रसाद ने हिंदी का गँवारुपन दूर कर उसे उर्दू–ए–मुअल्ला बना दिया तो राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिंदी का समर्थन किया।

भारतेन्दु युग

(1850 ई.–1900 ई.) इन दोनों के बीच सर्वमान्य हिंदी गद्य की प्रतिष्ठा कर गद्य साहित्य की विविध विधाओं का ऐतिहासिक कार्य भारतेन्दु युग में हुआ। हिंदी सही मायने में भारतेन्दु के काल में 'नई चाल में ढली' और उनके समय में ही हिंदी के गद्य के बहुमुखी रूप का सूत्रपात हुआ। उन्होंने न केवल स्वयं रचना की बल्कि अपना एक लेखक मंडल भी तैयार किया, जिसे 'भारतेन्दु मंडल' कहा गया। भारतेन्दु युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि गद्य रचना के लिए खड़ी बोली को माध्यम के रूप में अपनाकर युगानुरूप स्वस्थ दृष्टिकोण का परिचय दिया। लेकिन पद्य रचना के मसले में ब्रजभाषा या खड़ी बोली को अपनाने के सवाल पर विवाद बना रहा, जिसका अन्त द्विवेदी के युग में जाकर हुआ।

द्विवेदी युग

(1900 ई.–1920 ई.) खड़ी बोली और हिंदी साहित्य के सौभाग्य से 1903 ई. में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादन का भार सम्भाला। वे सरल और शुद्ध भाषा के प्रयोग के हिमायती थे। वे लेखकों की वर्तनी अथवा त्रुटियों का संशोधन स्वयं करते चलते थे। उन्होंने हिंदी के परिष्कार का बीड़ा उठाया और उसे बख़ूबी अन्जाम दिया। गद्य तो भारतेन्दु युग से ही सफलतापूर्वक खड़ी बोली में लिखा जा रहा था, अब पद्य की व्यावहारिक भाषा भी एकमात्र खड़ी बोली प्रतिष्ठित होनी लगी। इस प्रकार ब्रजभाषा, जिसके साथ में 'भाषा' शब्द जुड़ा हुआ है, अपने क्षेत्र में सीमित हो गई अर्थात् 'बोली' बन गई। इसके मुक़ाबले में खड़ी बोली, जिसके साथ 'बोली' शब्द लगा है, 'भाषा बन गई', और इसका सही नाम हिंदी हो गया। अब खड़ी बोली दिल्ली के आसपास की मेरठ–जनपदीय बोली नहीं रह गई, अपितु यह समस्त उत्तरी भारत के साहित्य का माध्यम बन गई। द्विवेदी युग में साहित्य रचना की विविध विधाएँ विकसित हुई।। महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्याम सुन्दर दास, पद्म सिंह शर्मा, माधव प्रसाद मिश्र, पूर्णसिंह, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी आदि के अवदान विशेषतः उल्लेखनीय हैं।
इसी दौरान वर्ष 1918 में इन्दौर में गांधी जी की अध्यक्षता में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' आयोजित हुआ और उसी में पारित एक प्रस्ताव के द्वारा हिन्दी राष्ट्रभाषा मानी गयी। इस प्रस्ताव के स्वीकृत होने के बाद दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की भी स्थापना हुई जिसका मुख्यालय मद्रास में था।[2]

छायावाद युग

(1920 ई.–1936 ई. एवं उसके बाद) साहित्यिक खड़ी बोली के विकास में छायावाद युग का योगदान काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा और राम कुमार आदि ने महती योगदान किया। इनकी रचनाओं को देखते हुए यह कोई नहीं कह सकता कि खड़ी बोली सूक्ष्म भावों को अभिव्यक्त करने में ब्रजभाषा से कम समर्थ है। हिंदी में अनेक भाषायी गुणों का समावेश हुआ। अभिव्यजंना की विविधता, बिंबों की लाक्षणिकता, रसात्मक लालित्य छायावाद युग की भाषा की अन्यतम विशेषताएँ हैं। हिंदी काव्य में छायावाद युग के बाद प्रगतिवाद युग (1936 ई.–1946 ई.) प्रयोगवाद युग (1943) आदि आए। इस दौर में खड़ी बोली का काव्य भाषा के रूप में उत्तरोत्तर विकास होता गया।

पद्य के ही नहीं, गद्य के सन्दर्भ में भी छायावाद युग साहित्यिक खड़ी बोली के विकास का स्वर्ण युग था। कथा साहित्य (उपन्यास व कहानी) में प्रेमचंद, नाटक में जयशंकर प्रसाद, आलोचना में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने जो भाषा–शैलियाँ और मर्यादाएँ स्थापित कीं, उनका अनुसरण आज भी किया जा रहा है। गद्य साहित्य के क्षेत्र में इनके महत्त्व का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गद्य–साहित्य के विभिन्न विधाओं के इतिहास में कालों का नामकरण इनके नाम को केन्द्र में रखकर ही किया गया है। जैसे उपन्यास के इतिहास में प्रेमचंद– पूर्व युग, प्रेमचंद युग, प्रेमचंदोत्तर युग; नाटक के इतिहास में प्रसाद– पूर्व युग, प्रसाद युग, प्रसादोत्तर युग; आलोचना के इतिहास में शुक्ल– पूर्व युग, शुक्ल युग, शुक्लोत्तर युग।

हिंदी के विभिन्न अर्थ

भाषा शास्त्रीय अर्थ

नागरी लिपि में लिखित संस्कृत बहुल खड़ी बोली।

संवैधानिक/क़ानूनी अर्थ

संविधान के अनुसार हिंदी भारत संघ की राजभाषा या अधिकृत भाषा तथा अनेक राज्यों की राजभाषा है।

सामान्य अर्थ

समस्त हिंदी भाषी क्षेत्र की परिनिष्ठित भाषा अर्थात् शासन, शिक्षा, साहित्य, व्यापार आदि की भाषा।

व्यापक अर्थ

आधुनिक युग में हिंदी को केवल खड़ी बोली में ही सीमित नहीं किया जा सकता। हिंदी की सभी उपभाषाएँ और बोलियाँ हिंदी के व्यापक अर्थ में आ जाती हैं।

हिंदी के लिए महापुरुष कथन
हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।
चन्द्रबली पाण्डेय

है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥
मैथिलीशरण गुप्त

जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती।
महात्मा गाँधी
हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।
विनोबा भावे
हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।
सुभाष चन्द्र बसु
हिंदी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी

राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, नवीन चंद्र राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, तरुणी चरण मिश्र, राजेन्द्र लाल मित्र, राज नारायण बसु, भूदेव मुखर्जी, बंकिम चंद्र चैटर्जी ('हिंदी भाषा की सहायता से भारतवर्ष के विभिन्न प्रदेशों के मध्य में जो ऐक्यबंधन संस्थापन करने में समर्थ होंगे वही सच्चे भारतबंधु पुकारे जाने योग्य हैं।)', सुभाषचंद्र बोस ('अगर आज हिंदी भाषा मान ली गई है तो वह इसलिए नहीं कि वह किसी प्रान्त विशेष की भाषा है, बल्कि इसलिए कि वह अपनी सरलता, व्यापकता तथा क्षमता के कारण सारे देश की भाषा हो सकती है।')।

ब्रजभाषा

  • केन्द्रमथुरा
  • बोलने वालों की संख्या— 3 करोड़
  • देश के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में ब्रजभाषा बोली जाती है, जिसे 'ताज्जुबेकी ब्रजभाषा' कहा जाता है।
  • साहित्य— कृष्ण भक्ति काव्य की एकमात्र भाषा, लगभग सारा रीतिकाल साहित्य। साहित्यिक दृष्टि से हिंदी भाषा की सबसे महत्त्वपूर्ण बोली। साहित्यिक महत्त्व के कारण ही इसे ब्रजबोली नहीं ब्रजभाषा की संज्ञा दी जाती है। मध्यकाल में इस भाषा ने अखिल भारतीय विस्तार पाया। बंगाल में इस भाषा से बनी भाषा का नाम 'ब्रज बुलि' पड़ा। आधुनिक काल तक इस भाषा में साहित्य सृजन होता रहा। पर परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि ब्रजभाषा साहित्यिक सिंहासन से उतार दी गई और उसका स्थान खड़ी बोली ने ले लिया।
  • रचनाकार— भक्तिकालीन– सूरदास, नन्ददास आदि।

रीतिकालबिहारी, मतिराम, भूषण, देव आदि। आधुनिक कालीनभारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जगन्नाथ दास 'रत्नाकर' आदि।

  • नमूना— एक मथुरा जी के चौबे हे (थे), जो डिल्ली सैहर कौ चलै। गाड़ी वारे बनिया से चौबेजी की भेंट है गई। तो वे चौबे बोले, अर भइया सेठ, कहाँ जायगो। वौ बोलो, महराजा डिल्ली जाऊँगो। तो चौबे बोले, भइया हमऊँ बैठाल्लेय। बनिया बोलो, चार रूपा चलिंगे भाड़े के। चौबे बोले, अच्छा भइया चारी दिंगे।

अवधी

  • केन्द्रअयोध्या/अवध
  • बोलने वालों की संख्या— 2 करोड़
  • देश के बाहर फीजी में अवधी बोलने वाले लोग हैं।
  • साहित्य— सूफ़ी काव्य, रामभक्ति काव्य। अवधी में प्रबन्ध काव्य परम्परा विशेषतः विकसित हुई।
  • रचनाकार— सूफ़ी कवि— मुल्ला दाउद ('चंदायन'), जायसी ('पद्मावत'), क़ुत्बन ('मृगावती'), उसमान ('चित्रावली'), रामभक्त कवि— तुलसीदास ('रामचरितमानस')।
  • नमूना— एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा। सबेरे जब सोय के उठै तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मज़ाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत।

भोजपुरी

  • केन्द्रभोजपुर
  • बोलने वालों की संख्या— 3.5 करोड़ (बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिंदी प्रदेश की बोलियों में सबसे अधिक बोली जाने वाली बोली)।
  • इस बोली का प्रसार भारत के बाहर सूरीनाम, फिजी, मॉरिशस, गयाना, त्रिनिडाड में है। इस दृष्टि से भोजपुरी अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की बोली है।
  • साहित्य— भोजपुरी में लिखित साहित्य नहीं के बराबर है। मूलतः भोजपुरी भाषी साहित्यकार मध्यकाल में ब्रजभाषा व अवधी में तथा आधुनिक काल में हिंदी में लेखन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है।
  • रचनाकारभिखारी ठाकुर (उपनाम— 'भोजपुरी का शेक्सपीयर', 'भोजपुरी का भारतेन्दु')।
  • सिनेमासिनेमा जगत में भोजपुरी ही हिंदी की वह बोली है, जिसमें सबसे अधिक फ़िल्में बनती हैं।
  • नमूना— काहे दस–दस पनरह–पनरह हज़ार के भीड़ होला ई नाटक देखें ख़ातिर। मालूम होतआ कि एही नाटक में पबलिक के रस आवेला।

मैथिली

  • लिपि— तिरहुता व देवनागरी
  • केन्द्र— मिथिला या विदेह या तिरहुत
  • बोलने वालों की संख्या— 1.5 करोड़
  • साहित्य— साहित्य की दृष्टि से मैथिली बहुत सम्पन्न है।
  • रचनाकारविद्यापति (पदावली)— यदि ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया तो मैथिली को विद्यापति ने, हरिमोहन झा (उपन्यास— कन्यादान, द्विरागमन, कहानी संग्रह—एकादशी, 'खट्टर काकाक तरंग'), नागार्जुन (मैथिली में 'यात्री' नाम से लेखन; उपन्यास— पारो, कविता संग्रह— 'कविक स्वप्न', 'पत्रहीन नग्न गाछ'), राजकमल चौधरी ('स्वरगंघा') आदि।
  • आठवीं अनुसूची में स्थान— 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान दिया गया। मैथिली हिंदी क्षेत्र की बोलियों में से 8वीं अनुसूची में स्थान पाने वाली एकमात्र बोली है।
  • नमूनापटना किए एलऽह? पटना एलिअइ नोकरी करैले।

भेटलह नोकरी? नाकरी कत्तौ नइ भेटल। गाँ में काज नइ भेटइ छलऽह? भेटै छलै, रूपैयाबला नइ, अऽनबला। तखन एलऽ किऐ? रिनियाँ तङ केलकइ, तै। कत्ते रीन छऽह? चाइर बीस। सूद कत्ते लइ छऽह? दू पाइ महिनबारी।

समाचार

हिंदी सुधारने के लिए अंग्रेज़ी शब्दों की छूट

13 अक्टूबर, 2011 गुरुवार

आज़ादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह उर्दू, फ़ारसी, सामान्य हिंदी और अंग्रेज़ी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के ख़िलाफ़ खड़ा करती है। गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ़्ट, फीस, क़ानून, अदालत, मुक़दमा, दफ़्तर, एफ़आईआर जैसे अंग्रेज़ी, फ़ारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।

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दुनिया के 80 करोड़ लोग जानते हैं हिंदी

20 सितम्बर, 2012 गुरुवार

भारत की राजभाषा हिंदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बहुभाषी भारत के हिंदी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03 फीसदी की मातृभाषा हिंदी है। हिंदी को दूसरी भाषा के तौर पर इस्तेमाल करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिंदी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिंदी भाषियों सहित पूरी दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा इसे नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिडाड एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी ख़ासी संख्या है। इसके आलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले अच्छे ख़ासे लोग हैं।

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ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में पढ़ाई जाएगी हिंदी

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड
29 अक्टूबर, 2012 सोमवार

ऑस्ट्रेलिया के स्कूलों में हिंदी और अन्य प्रमुख एशियाई भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। भारत और अन्य एशियाई देशों से संबंध मजबूत बनाने के लिए यह रणनीति तय की गई है। ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने नई नीति का पहला खाका रखते हुए कहा, "जिस समय ऑस्ट्रेलिया बदल रहा था उसी समय एशिया में भी बदलाव हो रहा था, इस सदी में चाहे जो मिले, यह निश्चित ही एशिया को नेतृत्व में फिर से लाएगा। एशिया के उत्थान को कोई नहीं रोक सकता। यह तेज हो रहा है।" प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड ने एशियन सेंचुरी व्हाइट पेपर जारी करते हुए इसकी घोषणा की। गिलार्ड ने कहा कि शुरुआत स्कूलों, प्रशिक्षण केंद्रों से करना होगी। हरेक स्कूल एशिया के किसी स्कूल के साथ जुड़ेगा और एक प्रमुख एशियाई भाषा हिंदी, मंदारिन, जापानी या इंडोनेशियन सीखने की पहल करेगा। उन्होंने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की कोशिश करना होगी। अब पहले जैसा नहीं चलेगा। गिलार्ड ने कहा कि इस सदी में एशिया के बड़ी ताकत बनने की संभावना है। विश्व में यह क्षेत्र नेतृत्व की भूमिका में होगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ABSTRACT OF SPEAKERS' STRENGTH OF LANGUAGES AND MOTHER TONGUES - 2001 (अंग्रेज़ी) (एच.टी.एम.एल) census of india। अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2012।
  2. गांधीजी की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य सम्मलेन का 8वां अधिवेशन सन 1918 में (हिंदी) सर्व सेवा संघ प्रकाशन वाश्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर। अभिगमन तिथि: 4 जून, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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