उपसंपदा

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उपसंपदा अर्थात् गुरुकुल में विधिपूर्वक स्वयं को समर्पित कर आचार्य का शिष्य बनना। दीक्षा का बौद्ध संस्कार, जिसके द्वारा एक नव बौद्ध व्यक्ति भिक्षु बनता है। थेरवाद परंपरा में होने वाले इस समारोह का स्वरूप मूलत: प्राचीन बौद्ध धर्म के समान ही है। यह आवश्यक रूप से स्थायी नहीं होता तथा कुछ देशों में भिक्षु के जीवन काल में इसे दोहराया भी जा सकता है।[1]

  • दीक्षा के लिए आवश्यक है कि प्रत्याशी कम से कम 20 वर्ष का हो। उसे अभिभावकों की अनुमति प्राप्त हो। वह सैनिक सेवा में न हो। ऋण तथा संक्रामक रोगों से मुक्त हो तथा उसने बौद्ध धर्म में कम से कम आरंभिक शिक्षा प्राप्त की हो।
  • यह समारोह 'वस्सा' (वर्षा) को छोड़कर पवित्र माने जाने वाले किसी भी दिन किया जा सकता है। यह परिसर के भीतर पहले से दीक्षित भिक्षुओं की उपस्थिति में संपन्न होता है।
  • 'पबज्जा' (प्रवज्जा) संस्कार भी दोहराया जाता है, भले ही प्रत्याशी पहले भी इससे गुज़र चुका हो।
  • प्रत्याशी भिक्षु की वेशभूषा धारण करता है तथा बुद्ध, धर्म और संघ के 'त्रिरत्नों' तथा 10 ज्ञान बोधों[2] का जाप करता है।
  • दीक्षा ग्रहण करने वाला प्रत्याशी इसके बाद सभा के सामने अपने गुरुओं के साथ खड़ा होता है तथा उससे संघ में शामिल किए जाने की उसकी योग्यता पर प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • सभा से तीन बार पूछा जाता है तथा यदि किसी को उसकी दीक्षा पर आपत्ति न हो, तो उसे भिक्षु-संघ में शामिल कर लिया जाता है।
  • महिला प्रत्याशियों को इसी प्रकार के अनुष्ठान में भिक्षुणी (पालि में भिक्कुनी) संप्रदाय में दीक्षित किया जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारत ज्ञानकोश, खण्ड-1 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 235 |
  2. भिक्षु के लिए नैतिक आचार के आधारभूत नियम

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