- 600 ई.पू. से लेकर 1000 ई. सन् तक उत्तर भारत में जो भाषाएं बोली जाती थीं, उनका सामान्य नाम प्राकृत था।
- किंतु प्रदेश-भेद से इनके अलग-अलग नाम पड़े।
- उस समय मथुरा और उसके आसपास का क्षेत्र शूरसेन कहलाता था।
- इसे मध्यदेश भी कहते थे।
- यहाँ बोली जानेवाली भाषा शौरसेनी कहलाती थी।
- अन्य क्षेत्रीय रूप थे- पूर्वदेश की मागधी अथवा अर्ध मागधी और पश्चिमौत्तर प्रदेश की पैशाची।
- अशोक के समय के प्राचीन लेखों में इन्हीं प्राकृतों, विशेषत: शौरसेनी का प्रयोग पाया जाता है।
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