अभिमान (सूक्तियाँ)
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क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
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(1) | जरा रूप को, आशा धैर्य को, मृत्यु प्राण को, क्रोध श्री को, काम लज्जा को हरता है पर अभिमान सब को हरता है। | विदुर नीति |
(2) | अभिमान नरक का मूल है। | महाभारत |
(3) | कोयल दिव्या आमरस पीकर भी अभिमान नहीं करती, लेकिन मेढक कीचर का पानी पीकर भी टर्राने लगता है। | प्रसंग रत्नावली |
(4) | कबीरा जरब न कीजिये कबुहूँ न हासिये कोए अबहूँ नाव समुद्र में का जाने का होए। | कबीर |
(5) | समस्त महान् ग़लतियों की तह में अभिमान ही होता है। | रस्किन |
(6) | किसी भी हालत में अपनी शक्ति पर अभिमान मत कर, यह बहुरुपिया आसमान हर घडी हजारों रंग बदलता है। | हाफ़िज़ |
(7) | जिसे होश है वह कभी घमंड नहीं करता। | शेख सादी |
(8) | अभिमान नरक का द्वार है। | |
(9) | अभिमान जब नम्रता का महोरा पहन लेता है, तब ज़्यादा ही घृणास्पद होता है। | कम्बरलेंद |
(10) | बड़े लोगों के अभिमान से छोटे लोगों की श्रद्धा बड़ा कार्य कर जाती है। | दयानंद सरस्वती |
(11) | जिसे खुद का अभिमान नहीं, रूप का अभिमान नहीं, लाभ का अभिमान नहीं, ज्ञान का अभिमान नहीं, जो सर्व प्रकार के अभिमान को छोड़ चुका है, वही संत है। | महावीर स्वामी |
(12) | सभी महान् भूलों की नींव में अहंकार ही होता है। | रस्किन |
(13) | नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। | वेदव्यास |
(14) | यदि कोई हमारा एक बार अपमान करे,हम दुबारा उसकी शरण में नहीं जाते। और यह मान (ईगो) प्रलोभन हमारा बार बार अपमान करवाता है। हम अभिमान का आश्रय त्याग क्यों नहीं देते? | हंसराज सुज्ञ |
(15) | जिस त्याग से अभिमान उत्पन्न होता है, वह त्याग नहीं, त्याग से शांति मिलनी चाहिए, अंतत: अभिमान का त्याग ही सच्चा त्याग है। | विनोबा भावे |
(16) | लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। | हितोपदेश |
(17) | ग़रीबी मेरा अभिमान है। | हज़रत मोहम्मद |
(18) | ज्यों-ज्यों अभिमान कम होता है, कीर्ति बढ़ती है। | यंग |
(19) | जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। | फुलर |
(20) | अभिमान करना अज्ञानी का लक्षण है। | सूत्रकृतांग |
(21) | जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है। | क्षेमेन्द्र |
(22) | उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। | अज्ञात |
(23) | कभी-कभी हमें उन लोगों से शिक्षा मिलती है, जिन्हें हम अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं। | प्रेमचंद |
(24) | शंति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें और संतोष से लाभ को जीतें। | दशवैकालिक |
(25) | उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। | अज्ञात |
(26) | जिसमें न दंभ है, न अभिमान है, न लोभ है, न स्वार्थ है, न तृष्णा है और जो क्रोध से रहित तथा प्रशांत है, वही ब्राह्मण है, वही श्रमण है, और वही भिक्षु है। | उदान |
(27) | जिनकी विद्या विवाद के लिए, धन अभिमान के लिए, बुद्धि का प्रकर्ष ठगने के लिए तथा उन्नति संसार के तिरस्कार के लिए है, उनके लिए प्रकाश भी निश्चय ही अंधकार है। | क्षेमेंद्र |
(28) | प्रयत्न न करने पर भी विद्वान् लोग जिसे आदर दें, वही सम्मानित है। इसलिए दूसरों से सम्मान पाकर भी अभिमान न करे। | वेद व्यास |
(29) | शांति से क्रोध को जीतें, मृदुता से अभिमान को जीतें, सरलता से माया को जीतें तथा संतोष से लाभ को जीतें। | दशवैकालिक |
(30) | तीन चीजों पर अभिमान मत करो – ताकत, सुन्दरता, यौवन। | |
(31) | अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। | |
(32) | अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। | |
(33) | आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो। | |
(34) | स्वार्थ और अभिमान का त्याग करने से साधुता आती है। | |
(35) | वर्ण, आश्रम आदि की जो विशेषता है, वह दूसरों की सेवा करने के लिए है, अभिमान करने के लिए नहीं। | |
(36) | ज्ञान मुक्त करता है, पर ज्ञान का अभिमान नरकों में ले जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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