ईश्वर (सूक्तियाँ)
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
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(1) | ईश्वर को देखा नहीं जा सकता, इसीलिए तो वह हर जगह मौजूद है। | यासुनारी कावाबाता |
(2) | यदि ईश्वर का अस्तित्व न होता, तो उसके आविष्कार की आवश्यकता पड़ती। | वाल्टेयर |
(3) | मैं ईश्वर से डरता हूँ और ईश्वर के बाद उससे डरता हूँ जो ईश्वर से नहीं डरता। | शेख सादी |
(4) | ईश्वर एक है और वह एकता को पसंद करता है। | हजरत मोहम्मद |
(5) | ईश्वर के अस्तित्व के लिए बुद्धि से प्रमाण नहीं मिल सकता क्योंकि ईश्वर भ्द्धि से परे है। | महात्मा गाँधी |
(6) | यदि ईश्वर नहीं है तो उसका अविष्कार कर लेना ज़रूरी है। | वाल्टेयर |
(7) | ईश्वर एक शाश्वत बालक है जो शाश्वत बाग़ में शाश्वत खेल खेल रहा है। | अरविन्द |
(8) | ईश्वर बड़े साम्राज्यों से विमुख हो सकता है पर छोटे छोटे फूलों से कभी खिन्न नहीं होता। | रविन्द्र नाथ टैगोर |
(9) | ईश्वर निराकार है। मगर उनके गुण-कर्म-स्वभाव अनंत है। | दयानंद सरस्वती |
(10) | ईश्वर एक ही है, भक्ति उसे अलग-अलग रूप में वर्णन करती है। | उपनिषद |
(11) | जो प्रभु कृपा में सच्चा विशवास रखता है, उसके लिएँ अनंत कृपा बहती है। | माताजी |
(12) | परमात्मा हमेशा दयालु है। जो शुद्ध हृदय से उसकी मदद मांगता है उसे वह अवश्य देता है। | स्वामी विवेकानंद |
(13) | परमात्मा की शक्ति अमर्याद है, सिर्फ हमारी श्रद्दा अल्प होती है। | महावीर स्वामी |
(14) | जो सचमुच दयालु है, वही सचमुच बुद्धिमान है, और जो दूसरों से प्रेम नहीं करता उस पर ईश्वर की कृपा नहीं होती। | होम |
(15) | न्याय करना ईश्वर का काम है, आदमी का काम तो दया करना है। | फ्रांसिस |
(16) | दयालुता हमें ईश्वर तुल्य बनती है। | क्लाडियन |
(17) | हम सभी ईश्वर से दया कि प्रार्थना करते हैं और वही प्रार्थना हमे दूसरों पर दया करना सिखाती है। | शेक्सपियर |
(18) | ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति है। | अज्ञात |
(19) | मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है। | अग्नि पुराण |
(20) | न्याय में देर करना न्याय को अस्वीकार करना है, ईश्वर की चक्की धीरे चलती है पर बारीक पीसती है। | कहावत |
(21) | जीवन अपनी इच्छा अनुकूल चलना नहीं, ईश्वर की इच्छा के अनुकूल चलने में है। | ताल्सतॉय |
(22) | अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के। | |
(23) | आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। | |
(24) | ईश्वर की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती। | |
(25) | ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें। | |
(26) | ईश्वर अर्थात् मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था। | |
(27) | ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया। | |
(28) | ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया। | |
(29) | उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए। | |
(30) | चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है। | |
(31) | जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों। | |
(32) | जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है। | |
(33) | जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है। | |
(34) | जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन। | |
(35) | संसार में सच्चा सुख ईश्वर और धर्म पर विश्वास रखते हुए पूर्ण परिश्रम के साथ अपना कत्र्तव्य पालन करने में है। | |
(36) | सद्भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से जिनका जीवन जितना ओतप्रोत है, वह ईश्वर के उतना ही निकट है। | |
(37) | प्रसुप्त देवत्व का जागरण ही सबसे बड़ी ईश्वर पूजा है। | |
(38) | विपन्नता की स्थिति में धैर्य न छोड़ना मानसिक संतुलन नष्ट न होने देना, आशा पुरुषार्थ को न छोड़ना, आस्तिकता अर्थात् ईश्वर विश्वास का प्रथम चिह्न है। | |
(39) | नेतृत्व ईश्वर का सबसे बड़ा वरदान है, क्योंकि वह प्रामाणिकता, उदारता और साहसिकता के बदले ख़रीदा जाता है। | |
(40) | नास्तिकता ईश्वर की अस्वीकृति को नहीं, आदर्शों की अवहेलना को कहते हैं। | |
(41) | निरभिमानी धन्य है; क्योंकि उन्हीं के हृदय में ईश्वर का निवास होता है। | |
(42) | हमारा शरीर ईश्वर के मन्दिर के समान है, इसलिये इसे स्वस्थ रखना भी एक तरह की इश्वर - आराधना है। | |
(43) | भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं। | |
(44) | भूत इतिहास होता है, भविष्य रहस्य होता है और वर्तमान ईश्वर का वरदान होता है। | |
(45) | रेष्ठ मार्ग पर क़दम बढ़ाने के लिए ईश्वर विश्वास एक सुयोग्य साथी की तरह सहायक सिद्ध होता है। | |
(46) | एक ईश्वर के अलावा सबकुछ असत्य है। | मुण्डकोपनिषद |
(47) | ईश्वर प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। | इमर्सन |
(48) | कला ईश्वर की परपौत्री है। | दांते |
(49) | प्रकृति ईश्वर का प्रकट रूप है, कला मानुषय का। | लांगफैलो |
(50) | ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। | महात्मा गाँधी |
(51) | ईश्वर आपत्तियों का भला करे क्योंकि इन्हीं से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। | अज्ञात |
(52) | ईश्वर ने आदमी को मेहनत करके खाने के लिए बनाया है और कहा है कि जो मेहनत किये बगैर खाते हैं बे चोर हैं। | महात्मा गाँधी |
(53) | जनता कि आवाज़ ईश्वर की आवाज़ है। | कहावत |
(54) | हँसते हुए जो समय आप व्यतीत करते हैं, वह ईश्वर के साथ व्यतीत किया समय है। | अज्ञात |
(55) | ईश्वर बोझ देता है, और कंधे भी। | अज्ञात |
(56) | बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। | मुक्ता |
(57) | जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया। | विनोबा भावे |
(58) | ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। | रवींद्रनाथ ठाकुर |
(59) | प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। | रवींद्रनाथ ठाकुर |
(60) | जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। | रामकृष्ण परमहंस |
(61) | चिंता के समान शरीर का क्षय और कुछ नहीं करता, और जिसे ईश्वर में जरा भी विश्वास है उसे किसी भी विषय में चिंता करने में ग्लानि होनी चाहिए। | महात्मा गांधी |
(62) | कोई व्यक्ति कितना ही महान् क्यों न हो, आँखें मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता? | स्वामी विवेकानन्द |
(63) | ईश्वर से प्रार्थना करो, पर अपनी पतवार चलाते रहो। | वेदव्यास |
(64) | कोई तुम्हारे काँधे पर हाथ रखता है तो तुम्हारा हौसला बढ़ता है पर जब किसी का हाथ काँधे पर नहीं होता तुम अपनी शक्ति खुद बन जाते हो और वही शक्ति ईश्वर है! | रश्मि प्रभा |
(65) | त्याग निश्चय ही आपके बल को बढ़ा देता है, आपकी शक्तियों को कई गुना कर देता है, आपके पराक्रम को दृढ कर देता है, वही आपको ईश्वर बना देता है। वह आपकी चिंताएं और भय हर लेता है, आप निर्भय तथा आनंदमय हो जाते हैं। | स्वामी रामतीर्थ |
(66) | ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते। | नवाजो |
(67) | चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। | समर्थ रामदास |
(68) | मुश्किलें वे औजार हैं जिनसे ईश्वर हमें बेहतर कामों के लिए तैयार करता हैं। | एच. डबल्यू वीचर |
(69) | ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। | शेख़ सादी |
(70) | हम जो हैं वह हमें ईश्वर की देन है, हम जो बनते हैं वह परमेश्वर को हमारी देन है। | एलानर पॉवेल |
(71) | आप इसे मोड़ और मरोड़ सकते हैं। आप इसका बुरा और ग़लत प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन ईश्वर भी सत्य को बदल नहीं सकते हैं। | माइकल लेवी |
(72) | केवल प्रतिभाशाली होने से ही काम नहीं चलता। ईश्वर प्रतिभा देता है तो प्रतिभा को विलक्षणता में परिणत कर देता है काम। | अन्ना पाव्लोवा (1881-1931), रूसी नर्तकी |
(73) | हर शिशु इस संदेश के साथ आता है कि ईश्वर अभी इंसान से थका नहीं है। | रवींद्रनाथ टैगोर |
(74) | जब मैं किसी नारी के सामने खड़ा होता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर के सामने खड़ा हूँ। | एलेक्जेंडर स्मिथ |
(75) | हंसी के साथ समय गुजारने का अर्थ है ईश्वर के साथ समय गुजारना। यानी हंसी में है सबसे बड़ी खुशी। | जापानी कहावत |
(76) | चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। | समर्थ रामदास |
(77) | जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। | जॉन बनयन |
(78) | ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट का अनुभव नहीं करते, न वे उल्लास की अभिलाषा करते हें और न पुण्य समझकर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों की हाथों द्वारा ईश्वर बोलता है। | ख़लील जिब्रान |
(79) | ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से विमुख हो जाता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। | रवींद्रनाथ टैगोर |
(80) | प्रसन्नता न हमारे अंदर है और न बाहर बल्कि यह ईश्वर के साथ हमारी एकता स्थापित करने वाला एक तत्व है। | पास्कल |
(81) | जब तक तुममें दूसरों को व्यवस्था देने या दूसरों के अवगुण ढूंढने, दूसरों के दोष ही देखने की आदत मौजूद है, तब तक तुम्हारे लिए ईश्वर का साक्षात्कार करना कठिन है। | स्वामी रामतीर्थ |
(82) | अमीर जो ग़रीबों के समान नम्र हैं और ग़रीब जो कि अमीरों के समान उदार हैं, वही ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। | शेख सादी |
(83) | मैं ईश्वर से डरता हूं। ईश्वर के बाद मुख्यत: उससे डरता हूं जो ईश्वर से नहीं डरता। | शेख सादी |
(84) | जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। | रामकृष्ण परमहंस |
(85) | हमारी प्रार्थना सर्व-सामान्य की भलाई के लिए होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर जानता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है। | सुकरात |
(86) | ईश्वर के सामने सिर झुकाने से क्या होगा, जब हृदय ही अशुद्ध हो। | गुरुनानक |
(87) | कोई भी आपके पास आए, ईश्वर समझ कर उसका स्वागत करो, परंतु उस समय अपने को भी अधम मत समझो। | स्वामी रामतीर्थ |
(88) | मेरे लिए इस बात का महत्व नहीं है कि ईश्वर हमारे पक्ष में है या नहीं, मेरे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर सदैव सही होता है। | अब्राहम लिंकन |
(89) | ईश्वर न तो काष्ठ में विद्यमान रहता है, न पाषाण में और न ही मिट्टी की मूर्ति में। वह तो भावों में निवास करता है। | चाणक्य |
(90) | ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। | शंकराचार्य |
(91) | सच्ची कला दैवी सिद्धि का केवल प्रतिबिंब होती है। ईश्वर की पूर्णता की छाया होती है। | माइकल एंजिलो |
(92) | पत्थर में ईश्वर के दर्शन करना काव्य का काम है। इसके लिए व्यापक प्रेम की आवश्यकता है। ज्ञानेश्वर महाराज भैंसे की आवाज़ में भी वेद श्रवण कर सके, इसलिए वह कवि हैं। | विनोबा भावे |
(93) | लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक - दूसरे को देते हैं। | एली वाइजेला |
(94) | निष्काम कर्म ईश्वर को ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको सूद सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है। | स्वामी रामतीर्थ |
(95) | लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक- दूसरे को देते हैं। | एली वाइजेला |
(96) | प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर संसार में आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। | रवींद्रनाथ टैगोर |
(97) | ईश्वर उससे संतुष्ट होता है जो सब धर्मों के उपदेशों को सुनता है, सभी देवताओं की उपासना करता है, जो ईर्ष्या से मुक्त है और क्रोध को जीत चुका है। | विष्णुधर्मोत्तर पुराण |
(98) | जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। | महात्मा गांधी |
(99) | जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। | रामकृष्ण परमहंस |
(100) | डर रखने से हम अपनी ज़िंदगी को बढ़ा तो नहीं सकते। डर रखने से बस इतना होता है कि हम ईश्वर को भूल जाते हैं, इंसानियत को भूल जाते हैं। | विनोबा भावे |
(101) | ईश्वर को सिर झुकाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। | गुरुनानक |
(102) | ईश्वर जिसे भी मिले हैं, दु:ख में ही मिले हैं। सुख का साथी जीव है और दु:ख का साथी ईश्वर है। | रामचंद डोंगरे |
(103) | भगवान की दृष्टि में, मैं तभी आदरणीय हूं जब मैं कार्यमग्न हो जाता हूं। तभी ईश्वर एवं समाज मुझे प्रतिष्ठा देते हैं। | रवीन्द्रनाथ ठाकुर |
(104) | जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो, तब तुम अपने आप से, एक दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। | ख़लील जिब्रान |
(105) | मेरी भक्तिपूर्ण खोज ने मुझे 'ईश्वर सत्य है' के प्रचलित मंत्र की बजाय 'सत्य ही ईश्वर है' का अधिक गहरा मंत्र दिया है। | महात्मा गांधी |
(106) | ऐसे भी लोग हैं जो देते हैं, लेकिन देने में कष्ट अनुभव नहीं करते। न वे उल्लास की अभिलाषा करते हैं और न पुण्य समझ कर ही कुछ देते हैं। इन्हीं लोगों के हाथों ईश्वर बोलता है और इन्हीं की आंखों से वह पृथ्वी पर अपनी मुस्कान बिखेरता है। | ख़लील जिब्रान |
(107) | जो मनुष्य जाति की सेवा करता है, वह ईश्वर की सेवा करता है। | महात्मा गांधी |
(108) | जहां किसी प्रलोभन से प्रेरित होकर तुम कोई पाप करने पर उतारू होते हो, वहीं ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव करो। | स्वामी रामतीर्थ |
(109) | वही अच्छी प्रार्थना है जो महान् और क्षुद्र सभी जीवों से सर्वोत्तम प्रेम करता है, क्योंकि हमसे प्रेम करनेवाले ईश्वर ने ही उन सबको बनाया है और वह उनसे प्रेम करता है। | कॉलरिज |
(100) | पाप में पड़ना मानव-स्वभाव है। उसमें डूबे रहना शैतान-स्वभाव है। उस पर दुखी होना संत-स्वभाव है और सब पापों से मुक्त होना ईश्वर-स्वभाव है। | लांगफेलो |
(111) | रक्षा का पहला साधन तो अपने हृदय में पड़ा है। वह है ईश्वर में सरल श्रद्धा, दूसरा है पड़ोसियों की सद्भावना। | महात्मा गांधी |
(112) | चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हैं। | समर्थ रामदास |
(113) | जो भलाई से प्रेम करता है वह देवताओं की पूजा करता है। जो आदरणीयों का सम्मान करता है वह ईश्वर की नजदीक रहता है। | इमर्सन |
(114) | ईश्वर के सामने सिर झुकाने से ही क्या बनता है, जब हृदय अशुद्ध हो। | गुरुनानक |
(115) | चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। | समर्थ रामदास |
(116) | ये तीन दुर्लभ हैं और ईश्वर के अनुग्रह से ही प्राप्त होते हैं- मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों की संगति। | शंकराचार्य |
(117) | जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। | महात्मा गांधी |
(118) | जो मनुष्य विनम्र है, उसे सदैव ईश्वर अपने मार्गदर्शक के रूप में प्राप्त रहेगा। | जॉन बनयन |
(119) | लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। | एली वाइजेला |
(120) | सत्य का मुंह स्वर्ण पात्र से ढका हुआ है। हे ईश्वर, उस स्वर्ण पात्र को तू उठा दे जिससे सत्य धर्म का दर्शन हो सके। | ईशावास्योपनिषद |
(121) | ईश्वर के प्रति संपूर्ण अनुराग ही भक्ति है। | भक्तिदर्शन |
(122) | ईश्वर के सामने शीष नवाने से क्या बनता है, जब हृदय ही अशुद्ध हो। | गुरुनानक |
(123) | जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। | ख़लील जिब्रान |
(124) | स्वाधीनता का पक्ष ईश्वर का पक्ष है। | विलियम लियोल बाउल्स |
(125) | लोगों को यह याद रखना चाहिए कि शांति ईश्वर प्रदत्त नहीं होती। यह वह भेंट है, जिसे मनुष्य एक-दूसरे को देते हैं। | एली वाइजेला |
(126) | जब तुम प्रेमपूर्वक श्रम करते हो तब तुम अपने-आप से, एक-दूसरे से और ईश्वर से संयोग की गांठ बांधते हो। | ख़लील जिब्रान |
(127) | चाहे गुरु पर हो और चाहे ईश्वर पर हो, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए, क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ हो जाती हैं। | समर्थ रामदास |
(128) | प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। | रवींद्रनाथ ठाकुर |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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