साहित्य (सूक्तियाँ)
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| क्रमांक | सूक्तियाँ | सूक्ति कर्ता |
|---|---|---|
| (1) | साहित्य समाज का दर्पण होता है। | |
| (2) | साहित्यसंगीतकला विहीन: साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः। (साहित्य संगीत और कला से हीन पुरुष साक्षात् पशु ही है जिसके पूँछ और् सींग नहीं हैं।) | भर्तृहरि |
| (3) | सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। | अनंत गोपाल शेवड़े |
| (4) | साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है, परंतु एक नया वातावरण देना भी है। | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
| (5) | जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। | प्रेमचंद |
| (6) | विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। | श्री परमहंस योगानंद |
| (7) | सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकान्त साधना में होता है। | अनंत गोपाल शेवड़े |
| (8) | अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। | कमलेश्वर |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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