बुद्धघोष प्रसिद्ध बौद्धाचार्य, जिन्होंने पालि साहित्य को समृद्ध किया था। बौद्ध आचार्य बुद्धघोष का जीवन चरित्र गंधवंश, बुद्धघोसुपत्ति सद्धम्मसंग्रह आदि में मिलता है। बुद्धघोष ने अपनी अल्पावस्था में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उसने योग का भी गहन अभ्यास किया था। अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए देश में परिभ्रमण व विद्वानों से बुद्धघोष ने कई बार वादविवाद भी किया। अपने गुरु रैवत के कहने से ये श्रीलंका गए थे और वहाँ अनुराधपुर के महाविहार में संघपाल नामक स्थविर से सिंहली अट्ठकथाओं और स्थविरवाद की परंपरा का श्रवण किया।
जन्म
बुद्धघोष की रचना 'धर्मकीर्ति' के अनुसार उसका जन्म बिहार के अंतर्गत गया में बोधिवृक्ष के समीप ही कहीं हुआ था। वह बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली था, और उसने अल्पावस्था में ही वेदों का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। योग का भी अभ्यास किया। फिर वह अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए देश में परिभ्रमण व विद्वानों से वादविवाद करने लगा।
बौद्ध धर्म में दीक्षा
एक बार वह रात्रि विश्राम के लिए किसी बौद्ध विहार में पहुँच गया। वहाँ रैवत नामक स्थविर से बाद में पराजित होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली। तत्पश्चात् उसने 'त्रिपिटक' का अध्ययन किया। उसकी असाधारण प्रतिभा एवं बौद्ध धर्म में श्रद्धा से प्रभावित होकर बौद्ध संघ ने उसे 'बुद्धघोष' की पदवी प्रदान की। उसी विहार में रहकर बुद्धघोष ने "ज्ञानोदय" नामक ग्रंथ भी रचा। यह ग्रंथ अभी तक मिला नहीं है। तत्पश्चात् उन्होंने 'अभिधम्मपिटक' के प्रथम नाग धम्मसंगणि पर 'अठ्ठसालिनी' नामक टीका लिखी। उन्होंने त्रिपिटक की अट्ठकथा लिखना भी आरंभ किया।
योग्यता की परीक्षा
बुद्धघोष के गुरु रैवत ने उन्हें बतलाया कि भारत में केवल श्रीलंका से मूल पालि 'त्रिपिटक' ही आ सकता है। उनकी महास्थविर महेंद्र द्वारा संकलित अट्ठकथाएँ सिंहली भाषा में लंका द्वीप में विद्यमान हैं। अत: तुम्हें वहीं जाकर उनको सुनना चाहिए और फिर उनका मागधी भाषा में अनुवाद करना चाहिए। तदनुसार बुद्धघोष लंका गए। उस समय वहाँ महानाम राजा का राज्य था। वहाँ पहुँचकर उन्होंने अनुराधपुर के महाविहार में संघपाल नामक स्थविर से सिंहली अट्ठकथाओं और स्थविरवाद की परंपरा का श्रवण किया। बुद्धघोष को निश्चय हो गया कि धर्म के अधिनायक बुद्ध का वही अभिप्राय है। उन्होंने वहाँ के भिक्षुसंघ से अट्ठकथाओं का मागधी रूपांतर करने का अपना अभिप्राय प्रकट किया। इस पर संघ ने उनकी योग्यता की परीक्षा करने के लिए "अंतो जटा, बाहि जटा" आदि दो प्राचीन गाथाएँ देकर उनकी व्याख्या करने को कहा। बुद्धघोष ने उनकी व्याख्या रूप 'विसुद्धिमग्ग' की रचना की, जिसे देख संघ अति प्रसन्न हुआ और उसने उन्हें भावी बुद्ध मैत्रेय का अवतार माना। तत्पश्चात् उन्होंने अनुराधपुर के ही ग्रंथकार विहार में बैठकर सिंहली अट्ठकथाओं का मागधी रूपांतर पूरा किया और तत्पश्चात् भारत लौट आए।
रचनाएँ
बौद्ध आचार्य बुद्धघोष की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- पपंचसूदनी
- सारत्थपकासिनी
- सामंत पासादिका
- कंखावितरणी
- जातक-अट्ठवण्णना
- बिसुद्धिमग्ग
- पंचप्पकरण अट्ठकथा
- सुमंगलविलासिनी
- मनोरथजोतिका
- परमत्थजोतिका
- अट्ठशालिनी
- संमोहविनोदनी
- धम्मपद-अट्टकथा
बुद्धघोष ने पालि में सर्वप्रथम अट्ठकथाओं की रचना की। पालि 'त्रिपिटक' के जिस अंशों पर उन्होंने अट्ठकथाएँ नहीं लिखीं, उन पर बुद्धदत्त और धर्मपाल ने तथा आनंद आदि अन्य भिक्षुओं ने अट्ठकथाएँ लिखकर पालि त्रिपिटक के विस्तृत व्याख्यान का कार्य पूरा किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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