फ़ातिमा बीबी

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फ़ातिमा बीबी
एम. फ़ातिमा बीबी
एम. फ़ातिमा बीबी
पूरा नाम मीरा साहिब फ़ातिमा बीबी
जन्म 30 अप्रैल 1927
जन्म भूमि पथानामथिट्टा, केरल
मृत्यु 23 नवंबर, 2023
मृत्यु स्थान कोल्लम, केरल
अभिभावक पिता- मीर साहिब

माता- ख़दीजा बीबी

कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र न्यायपालिका
शिक्षा बी.एल.
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण, 2024

केरल प्रभा पुरस्कार, 2023

प्रसिद्धि भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश।
नागरिकता भारतीय
धर्म इस्लाम
पद राज्यपाल, तमिलनाडु- 25 जनवरी, 1997 से 3 जुलाई, 2001 तक

न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत- 6 अक्टूबर, 1989 से 24 अप्रैल, 1992 तक
सदस्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत- 1993-1997

अन्य जानकारी 8 अप्रैल 1983 को फ़ातिमा बीबी उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में हुईं। 6 अक्टूबर 1989 को वे सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त हुईं। जहां से 24 अप्रैल 1992 को वे सेवा निवृत हुईं।

मीरा साहिब फ़ातिमा बीबी (अंग्रेज़ी: Meera Sahib Fathima Beevi, जन्म- 30 अप्रैल, 1927; मृत्यु- 23 नवंबर, 2023) भारत में सर्वोच्च न्यायालय की भूतपूर्व न्यायाधीश थीं। वे वर्ष 1989 में इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली भारतीय महिला थी। उन्हें 3 अक्टूबर, 1993 को 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' (भारत) की सदस्य बनाया गया था। वे तमिलनाडु की राज्यपाल भी रही थीं। साल 2023 में उन्हें दूसरे सबसे बड़े 'केरल प्रभा पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने फ़ातिमा बीबी को 2024 में मरणोपरांत पद्म भूषण से सम्मानित किया है। न्यायमूर्ति फ़ातिमा बीबी न केवल सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला बनीं, बल्कि वह उच्च न्यायपालिका में पहली मुस्लिम महिला और किसी एशियाई देश में सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने वाली पहली महिला भी बनीं।

परिचय

पूर्व न्यायमूर्ति एम. फ़ातिमा बीबी का जन्म केरल के पथानामथिट्टा में हुआ था। फ़ातिमा के पिता का नाम मीर साहिब और माँ का नाम ख़दीजा बीबी था। उन्होंने अपनी शुरुवाती पढ़ाई अपने पैदाइश के शहर से की थी और बाद में त्रिवेंद्रम से बी.एस.सी. की पढ़ाई की। तिरुवनंतपुरम से फ़ातिमा ने बी.एल. की डिग्री प्राप्त की। 1989 में राजीव गाँधी सरकार में इन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया और ये जब पहला मौक़ा था कि किसी महिला को हिन्दुस्तान में जज बनाया गया हो। 25 जनवरी, 1997 से 2001 के बीच वे तमिलनाडु की राज्यपाल भी रहीं।

कार्यकाल

14 नवम्बर 1950 को फ़ातिमा बीबी अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत हुईं, मई, 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवा में मुंसिफ़ के रूप में नियुक्त हुईं, 1968 में वे अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुईं। 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, 1974 में ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश, 1980 में आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल की न्यायिक सदस्य और 8 अप्रैल 1983 को उन्हें उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। 6 अक्टूबर 1989 को वे सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश नियुक्त हुईं। जहां से 24 अप्रैल 1992 को वे सेवा निवृत हुईं।

सेवानिवृत्ति के बाद

29 अप्रॅल, 1992 को अपनी सेवानिवृत्ति के बाद, न्यायमूर्ति फ़ातिमा बीबी को 1997 में तमिलनाडु के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया। वह 25 जनवरी, 1997 को तमिलनाडु की राज्यपाल बनीं। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को केरल का राज्यपाल नियुक्त किया। राज्यपाल के रूप में फ़ातिमा बीबी ने राजीव गांधी हत्या मामले में चार दोषी कैदियों द्वारा दायर दया याचिकाओं को खारिज कर दिया। हालाँकि, कई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के बाद फ़ातिमा बीबी को अपने गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा।

एम. फ़ातिमा बीबी ने 'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' (1993) के सदस्य और 'केरल पिछड़ा वर्ग आयोग' (1993) के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। उन्हें माननीय भी प्राप्त हुआ। 1990 में डी लिट और 'महिला शिरोमणि पुरस्कार' और 'भारत ज्योति पुरस्कार' और 'यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल' (यूएसआईबीसी) 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

फ़ातिमा बीबी की मृत्यु 23 नवंबर, 2023 को भारतीय राज्य केरल के कोल्लम ज़िले में हुई। भारतीय न्यायपालिका के उच्च क्षेत्रों में उनके प्रवेश ने पूरे भारत और एशिया में महिलाओं के लिए बड़े सपने देखने और सफलता की सबसे बड़ी ऊंचाइयों को हासिल करने के द्वार खोल दिए थे। उनकी यात्रा चुनौतियों से रहित नहीं थी, क्योंकि उन्होंने पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान पेशे को शालीनता और दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ाया। उनकी उपलब्धियों ने कानून में अनगिनत महत्वाकांक्षी महिलाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया और नई पीढ़ी को कानूनी क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया।


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