बापू नाडकर्णी
बापू नाडकर्णी
| |||
व्यक्तिगत परिचय
| |||
पूरा नाम | रमेशचन्द्र गंगाराम 'बापू' नाडकर्णी | ||
जन्म | 4 अप्रॅल, 1933 | ||
जन्म भूमि | नासिक, महाराष्ट्र | ||
मृत्यु | 17 जनवरी, 2020 | ||
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र | ||
खेल परिचय
| |||
बल्लेबाज़ी शैली | बाएं हाथ | ||
गेंदबाज़ी शैली | स्लो लेफ्ट आर्म ऑथोडॉक्स | ||
टीम | भारत | ||
भूमिका | गेंदबाज़ | ||
कैरियर आँकड़े
| |||
प्रारूप | टेस्ट क्रिकेट | एकदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय | टी-20 अन्तर्राष्ट्रीय |
मुक़ाबले | 41 | 191 | - |
बनाये गये रन | 1,414 | 8,880 | - |
बल्लेबाज़ी औसत | 25.70 | 40.36 | - |
100/50 | 1/7 | 14/46 | - |
सर्वोच्च स्कोर | 122* | 283* | - |
फेंकी गई गेंदें | 9,165 | - | - |
विकेट | 88 | 500 | - |
गेंदबाज़ी औसत | 29.07 | 21.37 | - |
पारी में 5 विकेट | 4 | 19 | - |
मुक़ाबले में 10 विकेट | 1 | 1 | - |
सर्वोच्च गेंदबाज़ी | 6/43 | 6/17 | - |
कैच/स्टम्पिंग | 22 | 140 | - |
अन्य जानकारी | बापू नाडकर्णी ने न्यूजीलैंड के खिलाफ दिल्ली में 1955 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया और उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मैच भी इसी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ 1968 में नवाब पटौदी की अगुआई में ऑकलैंड में खेला। |
रमेशचन्द्र गंगाराम 'बापू' नाडकर्णी (अंग्रेज़ी: Rameshchandra Gangaram 'Bapu' Nadkarni, जन्म- 4 अप्रॅल, 1933, नासिक, महाराष्ट्र; मृत्यु- 17 जनवरी, 2020) पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी थे। उन्होंने 1955 में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ अपने अंतरराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत की थी। 13 साल लंब सफ़र में 41 टेस्ट खेले। खाते में 88 विकेट आए। मशहूर हुई तो उनकी किफ़ायती गेंदबाजी। किसी भी बल्लेबाज़ को बांधकर रख देने की काबिलियत बापू नाडकर्णी की पहचान थी। बापू नाडकर्णी टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में कंजूस गेंदबाज के तौर पर हमेशा याद किए जाते हैं। उनके नाम लगातार 21 मेडन ओवर करने का अद्भुत कीर्तिमान है। बह बाएं हाथ के बल्लेबाज़ और बाएं हाथ के स्पिनर थे। इस ऑलराउंडर का प्रिय वाक्य था ‘छोड़ो मत’। बापू नाडकर्णी दृढ़ क्रिकेटर थे, जिन्होंने तब खेला जब ग्लव्ज़ और थाई पैड अच्छे नहीं होते थे, गेंद लगने से बचाने के लिए सुरक्षा उपकरण नहीं थे, लेकिन इसके बावजूद वह ‘छोड़ो मत’ पर विश्वास करते थे।
परिचय
बापू नाडकर्णी का जन्म 4 अप्रैल, 1933 को नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। उन्होंने भारत की ओर से 41 अंतरराष्ट्रीय टेस्ट मैच खेले थे। वहीं 191 फर्स्ट क्लास मैच खेले। बापू नाडकर्णी को आज भी लगातार 21 मेडन ओवर फेंकने के लिए याद किया जाता है, जिसे आज तक कोई और गेंदबाज नहीं कर पाया।
बापू नाडकर्णी नेट्स पर सिक्का रखकर गेंदबाजी करते थे। उनकी बाएं हाथ की फिरकी इतनी सधी थी कि गेंद वहीं पर गिरती थी। टेस्ट कॅरियर में उनकी 1.67 रन प्रति ओवर की इकोनॉमी रही। बापू नाडकर्णी ने 41 टेस्ट खेले, 9165 गेंदों में 2559 रन दिए और 88 विकेट झटके। क्रिकेट के हर विभाग में माहिर बापू ने न सिर्फ अपने स्पिन से बल्लेबाजों का बांधा, बल्कि उनकी बल्लेबाजी भी गजब की थी। वे एक हिम्मती क्षेत्ररक्षक भी थे, जो मैदान पर बल्लेबाज के सामने खड़े होते थे। बापू नाडकर्णी ने इंग्लैंड के खिलाफ 1963-1964 सीरीज़ में कानपुर में नाबाद 122 रनों की पारी खेलकर भारत को हार से बचाया था।[1]
कीर्तिमान
बापू नाडकर्णी को लगातार 21 ओवर मेडन करने के लिए याद किया जाता है। मद्रास (अब चेन्नई) टेस्ट मैच में उनका गेंदबाजी विश्लेषण 32-27-5-0 था। उन्होंने 131 गेंदे लगातार डॉट फेंकी थीं यानी इन गेंदों पर कोई भी रन नहीं बना था। उन्होंने पहली पारी में सिर्फ 0.15 इकोनॉमी से रन दिए थे, जो फटाफट क्रिकेट के इस दौर में सोचना भी मुश्किल लगता है। क्रिकेट में जब से एक ओवर में 6 गेंदे फेंकी जाने लगीं, उसके बाद से लेकर आज तक कोई भी दूसरा गेंदबाज इस करिश्मे को दोहरा नहीं सका है। इतने सालों से ये रिकॉर्ड बापू नाडकर्णी के नाम पर ही दर्ज है। ओवर के मामले में बापू नाडकर्णी तो गेंद के मामले में यह रिकॉर्ड दक्षिण अफ्रीकी ऑफ स्पिनर ह्यू टेफील्ड के नाम पर है। आठ गेंद के ओवर के दौर में ह्यू टेफील्ड ने 1956-1957 में लगातार 137 डॉट गेंद फेंकी थी। उन्होंने 17.1 लगातार मेडन ओवर फेंके थे।[2]
किफ़ायती गेंदबाज़
बापू नाडकर्णी को किफ़ायती गेंदबाजी करने के लिए जाना जाता था। पाकिस्तान के खिलाफ 1960-1961 में कानपुर में उनका गेंदबाजी विश्लेषण 32-24-23-0 और दिल्ली में 34-24-24-1 था। वह मुंबई के शीर्ष क्रिकेटरों में शामिल थे। उन्होंने 191 प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें 500 विकेट लिए और 8880 रन बनाए। बापू नाडकर्णी ने न्यूजीलैंड के खिलाफ दिल्ली में 1955 में टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया और उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मैच भी इसी प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ 1968 में नवाब पटौदी की अगुआई में ऑकलैंड में खेला। बापू नाडकर्णी ने 500 प्रथम श्रेणी विकेट और 8880 रन बनाए।
मद्रास टेस्ट
बापू नाडकर्णी ने अपनी बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाजी की बदौलत 1964 में मद्रास के नेहरू स्टेडियम में अंग्रेज़ों को रन के लिए तरसाया था। यहां खेले गए टेस्ट मैच के दौरान उन्होंने एक के बाद एक 131 गेंदें फेंकीं, जिन पर एक भी रन नहीं बना। उस पारी में उन्होंने कुल 32 ओवरों में 27 मेडन फेंके, जिनमें लगातार 21 मेडन ओवर थे और 5 रन ही दिए। उनका गेंदबाजी विश्लेषण रहा- 32-27-5-0।
- चार स्पेल
- पहला स्पेल- 3-3-0-0
- दूसरा स्पेल- 7-5-2-0
- तीसरा स्पेल- 19-18-1-0
- चौथा स्पेल- 3-1-2-0
जब चोटिल पाटिल को किया तैयार
पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर कहते हैं- "बापू कई दौरों में असिस्टेंट मैनेजर के तौर पर टीम के साथ रहे। खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने में वह हमेशा आगे रहते थे।" 1981 के ऑस्ट्रेलिया दौरे के पहले ही टेस्ट (सिडनी) में संदीप पाटिल को ऑस्ट्रेलियाई पेसर लेन पास्को ने तूफानी बाउंसर मारी थी, जिससे वह पिच पर ही गिर गए थे। इसके बाद बापू नाडकर्णी ने पाटिल को मानसिक तौर पर इतना मजबूत कर दिया कि अगले टेस्ट (एडिलेड) में शतक (174 रन) जमाकर उस बाउंसर का बदला लिया।[1]
मृत्यु
बापू नाडकर्णी का निधन 17 जनवरी, 2020 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुआ। बीमारियों के चलते 86 वर्ष में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। बापू नाडकर्णी बाएं हाथ के बल्लेबाज और बाएं हाथ के स्पिनर थे। उन्होंने भारत की तरफ से 41 टेस्ट मैचों में 1414 रन बनाए और 88 विकेट लिए। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 43 रन देकर छह विकेट रहा।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 ये हैं क्रिकेट इतिहास के सबसे 'कंजूस' गेंदबाज (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 04 अप्रॅल, 2020।
- ↑ इस भारतीय गेंदबाज के नाम है लगातार 131 डॉट गेंद फेंकने का रिकॉर्ड (हिंदी) news18.com। अभिगमन तिथि: 04 अप्रॅल, 2020।