"नीग्रिटो": अवतरणों में अंतर
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'''नीग्रिटो''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Negretto'') एक प्रजाति है और हट्टन और गुहा का मत है कि यह प्रजाति [[भारत]] में सबसे प्राचीन है। यह प्रजाति अब स्वतंत्र रूप से कहीं नहीं पाई जाती है, परन्तु इसके कुछ लक्षण [[अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह|अण्डमान-निकोबार द्वीप]], [[कोचीन]] तथा 'कदार' एवं 'पालियन' जनजातियों में, [[असम]] के 'अंगामी नागाओं' में, [[बिहार|पूर्वी बिहार]], राजमहल की पहाड़ियों में बसने वाले 'बागड़ी समूह' एवं 'ईरुला जनजाति' में देखने को मिलते हैं। | |||
हट्टन और गुहा का मत है कि यह प्रजाति [[भारत]] में सबसे प्राचीन है। यह प्रजाति अब स्वतंत्र रूप से कहीं नहीं पाई जाती है, परन्तु इसके कुछ लक्षण [[अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह|अण्डमान-निकोबार द्वीप]], [[कोचीन]] तथा 'कदार' एवं 'पालियन' जनजातियों में, [[असम]] के 'अंगामी नागाओं' में, [[बिहार|पूर्वी बिहार]], राजमहल की पहाड़ियों में बसने वाले 'बागड़ी समूह' एवं 'ईरुला जनजाति' में देखने को मिलते हैं। | |||
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[[अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह|अण्डमान द्वीप समूह]] में ही इस जाति के कुछ अवशेष मिलते हैं। [[असम]] की 'नागा' एवं 'ट्रावरकोर' - [[कोचीन]] की आदिम जातियों में 'नीग्रेटो' जाति की कुछ विशेषतायें परिलक्षित होती हैं। [[अफ्रीका]] से चलकर [[अरब]], [[ईरान]] और [[बलूचिस्तान]] के रास्ते भारत पहुंची। यह जाति भारत की प्राचीनतम जातियों में से एक थी। शायद जाति कृषि - कर्म एवं पशुपालन तकनीक से वंचित थी, शिकार ही जीवन का मुख्य आधार था। मछलियों को समुद्र से पकड़ कर खाते थे। नीग्रिटो जाति का पूर्ण उन्मूलन '[[प्रोटो | [[अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह|अण्डमान द्वीप समूह]] में ही इस जाति के कुछ अवशेष मिलते हैं। [[असम]] की 'नागा' एवं 'ट्रावरकोर' - [[कोचीन]] की आदिम जातियों में 'नीग्रेटो' जाति की कुछ विशेषतायें परिलक्षित होती हैं। [[अफ्रीका]] से चलकर [[अरब]], [[ईरान]] और [[बलूचिस्तान]] के रास्ते भारत पहुंची। यह जाति भारत की प्राचीनतम जातियों में से एक थी। शायद जाति कृषि - कर्म एवं पशुपालन तकनीक से वंचित थी, शिकार ही जीवन का मुख्य आधार था। मछलियों को समुद्र से पकड़ कर खाते थे। नीग्रिटो जाति का पूर्ण उन्मूलन '[[प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड]]' जाति के द्वारा किया गया। | ||
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09:39, 18 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
नीग्रिटो (अंग्रेज़ी: Negretto) एक प्रजाति है और हट्टन और गुहा का मत है कि यह प्रजाति भारत में सबसे प्राचीन है। यह प्रजाति अब स्वतंत्र रूप से कहीं नहीं पाई जाती है, परन्तु इसके कुछ लक्षण अण्डमान-निकोबार द्वीप, कोचीन तथा 'कदार' एवं 'पालियन' जनजातियों में, असम के 'अंगामी नागाओं' में, पूर्वी बिहार, राजमहल की पहाड़ियों में बसने वाले 'बागड़ी समूह' एवं 'ईरुला जनजाति' में देखने को मिलते हैं।
- शारीरिक रचना
इनके बाल अर्द्धगोलाकार तथा लटों में विभाजित होते हैं। सिर चौड़ा, होठ मोटे, नाक चौड़ी त्वचा काली तथा क़द बहुत नाटा होता है।
- विशेषतायें
अण्डमान द्वीप समूह में ही इस जाति के कुछ अवशेष मिलते हैं। असम की 'नागा' एवं 'ट्रावरकोर' - कोचीन की आदिम जातियों में 'नीग्रेटो' जाति की कुछ विशेषतायें परिलक्षित होती हैं। अफ्रीका से चलकर अरब, ईरान और बलूचिस्तान के रास्ते भारत पहुंची। यह जाति भारत की प्राचीनतम जातियों में से एक थी। शायद जाति कृषि - कर्म एवं पशुपालन तकनीक से वंचित थी, शिकार ही जीवन का मुख्य आधार था। मछलियों को समुद्र से पकड़ कर खाते थे। नीग्रिटो जाति का पूर्ण उन्मूलन 'प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड' जाति के द्वारा किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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