"सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]] | [[चित्र:Bharatkosh-copyright-2.jpg|50px|right|link=|]] [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत)]] [http://www.facebook.com/bharatdiscovery भारतकोश] [[चित्र:Facebook-icon-2.png|20px|link=http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453|फ़ेसबुक पर आदित्य चौधरी]] [http://www.facebook.com/profile.php?id=100000418727453 आदित्य चौधरी] | ||
<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>सत्ता का रंग<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div> | ||
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गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है और ख़रबूज़ा, ख़रबूज़े को देखकर रंग बदलता है। | गिरगिट माहौल देखकर रंग बदलता है और ख़रबूज़ा, ख़रबूज़े को देखकर रंग बदलता है। | ||
हमारे नेताओं के भी दो ही प्रकार होते हैं और इनमें फ़र्क़ भी वही होता है जो गिरगिट और ख़रबूज़े में... | हमारे नेताओं के भी दो ही प्रकार होते हैं और इनमें फ़र्क़ भी वही होता है जो गिरगिट और ख़रबूज़े में... | ||
न जाने कितने साल पुरानी बात है कि न जाने किस देश के एक [[सुल्तान]] ने अपनी पसंद का महल बनवाने का हुक़्म दिया। बीस साल में महल बनकर तैयार हो गया। अब इतना ही काम बाक़ी रह गया था कि महल के बाहरी दरवाज़े पर सुल्तान का नाम लिख दिया जाये। अगले दिन सुल्तान महल देखने आने वाला था। | न जाने कितने साल पुरानी बात है कि न जाने किस देश के एक [[सुल्तान]] ने अपनी पसंद का महल बनवाने का हुक़्म दिया। बीस साल में महल बनकर तैयार हो गया। अब इतना ही काम बाक़ी रह गया था कि महल के बाहरी दरवाज़े पर सुल्तान का नाम लिख दिया जाये। अगले दिन सुल्तान महल देखने आने वाला था। | ||
लेकिन ये क्या ? सुबह को देखा तो पता चला कि महल के बाहरी दरवाज़े पर तो सुल्तान की बजाय 'इन्ना' का नाम लिखा हुआ है, और फिर रोज़ाना यही होने लगा कि नाम लिखा जाता था सुल्तान का लेकिन वह बदल जाता था इन्ना के नाम से...। | लेकिन ये क्या ? सुबह को देखा तो पता चला कि महल के बाहरी दरवाज़े पर तो सुल्तान की बजाय 'इन्ना' का नाम लिखा हुआ है, और फिर रोज़ाना यही होने लगा कि नाम लिखा जाता था सुल्तान का लेकिन वह बदल जाता था इन्ना के नाम से...। | ||
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इन्ना अब वो इन्ना नहीं रहा था। महल की आराम और अय्याशी की ज़िंदगी, जिसमें लज़ीज़ खाना, उम्दा शराब और मनोरंजन के लिए नर्तकियाँ शामिल थीं, ने इन्ना को पूरी तरह बदल दिया था। आये दिन इन्ना को अपने फ़रमानों को बदलना पड़ता था। जंग के लिए तैयार करने के लिए घोड़ों को फिर से कोड़े लगा कर दौड़ाने का आदेश इन्ना ने जारी किया और इन्ना का पूरा व्यक्तित्व अब ठीक वैसा ही हो गया था जैसा कि किसी ज़ालिम शासक का हो सकता है। | इन्ना अब वो इन्ना नहीं रहा था। महल की आराम और अय्याशी की ज़िंदगी, जिसमें लज़ीज़ खाना, उम्दा शराब और मनोरंजन के लिए नर्तकियाँ शामिल थीं, ने इन्ना को पूरी तरह बदल दिया था। आये दिन इन्ना को अपने फ़रमानों को बदलना पड़ता था। जंग के लिए तैयार करने के लिए घोड़ों को फिर से कोड़े लगा कर दौड़ाने का आदेश इन्ना ने जारी किया और इन्ना का पूरा व्यक्तित्व अब ठीक वैसा ही हो गया था जैसा कि किसी ज़ालिम शासक का हो सकता है। | ||
दो साल गुज़र गये थे, अब सुल्तान ने इन्ना को बुलवाकर उससे तमाम सवाल किए और उसे कोई सुरीला गाना सुनाने के लिए कहा। दो साल शराब पीने और आराम की ज़िंदगी बिताने वाला इन्ना अब सिर्फ़ फटी आवाज़ में ही गा पाया। यह लिखने की ज़रूरत नहीं है कि महल के दरवाज़े से इन्ना का नाम मिटाकर जब सुल्तान का नाम दोबारा लिखा गया तो वह बदल कर इन्ना नहीं हुआ। | दो साल गुज़र गये थे, अब सुल्तान ने इन्ना को बुलवाकर उससे तमाम सवाल किए और उसे कोई सुरीला गाना सुनाने के लिए कहा। दो साल शराब पीने और आराम की ज़िंदगी बिताने वाला इन्ना अब सिर्फ़ फटी आवाज़ में ही गा पाया। यह लिखने की ज़रूरत नहीं है कि महल के दरवाज़े से इन्ना का नाम मिटाकर जब सुल्तान का नाम दोबारा लिखा गया तो वह बदल कर इन्ना नहीं हुआ। | ||
इन्ना का क़िस्सा असल में असग़र वजाहत के नाटक 'इन्ना की आवाज़' का सारांश है। | इन्ना का क़िस्सा असल में [[असग़र वजाहत]] के नाटक 'इन्ना की आवाज़' का सारांश है। | ||
बात सिर्फ़ इतनी सी है कि 'सत्ता' की एक 'अपनी भाषा' और 'अपनी संस्कृति' होती है और सत्ता में बने रहने के कुछ नियम होते हैं। इन भाषा, संस्कृति और नियमों का प्रयोग किये बिना सत्ता चल नहीं सकती। जबकि सत्ता प्राप्त करने के लिए कोई नियम नहीं है। सत्ता प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाये जा सकते हैं और अपनाये जाते भी हैं। | बात सिर्फ़ इतनी सी है कि 'सत्ता' की एक 'अपनी भाषा' और 'अपनी संस्कृति' होती है और सत्ता में बने रहने के कुछ नियम होते हैं। इन भाषा, संस्कृति और नियमों का प्रयोग किये बिना सत्ता चल नहीं सकती। जबकि सत्ता प्राप्त करने के लिए कोई नियम नहीं है। सत्ता प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाये जा सकते हैं और अपनाये जाते भी हैं। | ||
कुछ उदाहरणों पर एक दृष्टि डाली जाय: | कुछ उदाहरणों पर एक दृष्टि डाली जाय: | ||
- मुग़ल बादशाह को हराने के बाद [[शेरशाह सूरी]] जब [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठा तो कहते हैं कि सबसे पहले वह शाही बाग़ के तालाब में अपना चेहरा देखकर यह परखने गया कि उसका माथा बादशाहों जैसा चौड़ा है या नहीं ! | - मुग़ल बादशाह को हराने के बाद [[शेरशाह सूरी]] जब [[दिल्ली]] की गद्दी पर बैठा तो कहते हैं कि सबसे पहले वह शाही बाग़ के तालाब में अपना चेहरा देखकर यह परखने गया कि उसका माथा बादशाहों जैसा चौड़ा है या नहीं ! | ||
जब शेरशाह से पूछा गया "आपके बादशाह बनने पर क्या-क्या किया जाय ?" | जब शेरशाह से पूछा गया "आपके बादशाह बनने पर क्या-क्या किया जाय ?" | ||
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- जब हम सड़क पर पैदल चल रहे होते हैं तो हम स्वत: ही पैदल चलने वालों के समूह के सदस्य होते हैं। हमारी सहज सहानुभूति पैदल चलने वालों की ओर रहती है और कार वालों का समूह हमें अपना नहीं लगता। हमें पैदल चलते समय सड़क पर चलती कारों और उनके मालिकों का अपने विरुद्ध प्रतीत होना स्वाभाविक ही है। जब हम कार में बैठे हों तो ऐसी इच्छा होती है कि काश ये पैदल, साइकिल, रिक्शा, तांगे न होते तो फर्राटे से हमारी कार जा सकती ! इस संबंध में एक क़िस्सा बहुत सही बैठता है- | - जब हम सड़क पर पैदल चल रहे होते हैं तो हम स्वत: ही पैदल चलने वालों के समूह के सदस्य होते हैं। हमारी सहज सहानुभूति पैदल चलने वालों की ओर रहती है और कार वालों का समूह हमें अपना नहीं लगता। हमें पैदल चलते समय सड़क पर चलती कारों और उनके मालिकों का अपने विरुद्ध प्रतीत होना स्वाभाविक ही है। जब हम कार में बैठे हों तो ऐसी इच्छा होती है कि काश ये पैदल, साइकिल, रिक्शा, तांगे न होते तो फर्राटे से हमारी कार जा सकती ! इस संबंध में एक क़िस्सा बहुत सही बैठता है- | ||
एक गाँव में भयंकर बाढ़ आ गई। चारों तरफ़ तबाही हो गई, तमाम मकान टूट गए। बढ़ते हुए पानी से बचने के लिए एक पुराने मज़बूत मकान की छत पर सैकड़ों गाँव वाले जा चढ़े। छत पर पहुँचने के सभी रास्ते बंद थे, सिर्फ़ एक | एक गाँव में भयंकर बाढ़ आ गई। चारों तरफ़ तबाही हो गई, तमाम मकान टूट गए। बढ़ते हुए पानी से बचने के लिए एक पुराने मज़बूत मकान की छत पर सैकड़ों गाँव वाले जा चढ़े। छत पर पहुँचने के सभी रास्ते बंद थे, सिर्फ़ एक बांस की सीढ़ी लगी हुई थी। उसी सीढ़ी से चढ़ कर गाँव का सरपंच भी छत पर पहुँच गया। ये सरपंच हमेशा समाज सुधार की बातें किया करता था, लेकिन छत पर आकर जब इसने सीढ़ी ऊपर खींच ली तो सबको आश्चर्य हुआ। उससे पूछा गया- | ||
"सरपंच जी आपने ऐसा क्यों किया ? सीढ़ी ऊपर खींच ली तो अब और लोग कैसे चढ़ेंगे ?" | "सरपंच जी आपने ऐसा क्यों किया ? सीढ़ी ऊपर खींच ली तो अब और लोग कैसे चढ़ेंगे ?" | ||
"तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। | "तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। | ||
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इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | ||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small> | <small>संस्थापक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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13:23, 21 मई 2017 के समय का अवतरण
![]() ![]() ![]() सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी
![]() गिरगिट और ख़रबूज़े में क्या फ़र्क़ है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ