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'''बौद्ध चिन्तन''' मानसिक एकाग्रता की प्रक्रिया है, जो कई चरणों से होते हुए अंतत: आध्यात्मिक मुक्ति, [[निर्वाण]] तक ले जाती है। [[बौद्ध धर्म]] में 'चितंन' या '[[ध्यान]]' का महत्त्वपूर्ण स्थान है और इसके सबसे ऊंचे चरणों में प्रज्ञा से प्राप्त अंतर्दृष्टि के साथ क्रमश: बढ़ती हुई अंतर्मुखता भी शामिल होती है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-4|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=67|url=}}</ref> | '''बौद्ध चिन्तन''' मानसिक एकाग्रता की प्रक्रिया है, जो कई चरणों से होते हुए अंतत: आध्यात्मिक मुक्ति, [[निर्वाण]] तक ले जाती है। [[बौद्ध धर्म]] में 'चितंन' या '[[ध्यान]]' का महत्त्वपूर्ण स्थान है और इसके सबसे ऊंचे चरणों में प्रज्ञा से प्राप्त अंतर्दृष्टि के साथ क्रमश: बढ़ती हुई अंतर्मुखता भी शामिल होती है।<ref name="aa">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारत ज्ञानकोश, खण्ड-4|लेखक=इंदु रामचंदानी|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली और पॉप्युलर प्रकाशन, मुम्बई|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=67|url=}}</ref> | ||
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13:19, 9 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
बौद्ध चिन्तन मानसिक एकाग्रता की प्रक्रिया है, जो कई चरणों से होते हुए अंतत: आध्यात्मिक मुक्ति, निर्वाण तक ले जाती है। बौद्ध धर्म में 'चितंन' या 'ध्यान' का महत्त्वपूर्ण स्थान है और इसके सबसे ऊंचे चरणों में प्रज्ञा से प्राप्त अंतर्दृष्टि के साथ क्रमश: बढ़ती हुई अंतर्मुखता भी शामिल होती है।[1]
एकाग्रता की वस्तु
एकाग्रता की वस्तु (कामत्थान) व्यक्ति और परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। एक पालि शास्त्र में 40 कम्मत्थानों की सूची है, जिसमें उपकरण (जैसे- रंग या प्रकाश), विकर्षक वस्तुएं (जैसे शव), स्मरण (जैसे बुद्ध का) और ब्रह्मविहार (सदगुण, जैसे मित्रता) शामिल हैं।
लौकिक दुनिया से ध्यान हटाना
बाहरी लौकिक दुनिया से ध्यान हटाने के क्रम में चार चरणों (संस्कृत में ध्यान; पालि में ज्ञान) की व्याख्या की गई है-
- बाहरी दुनिया से अलगाव तथा हर्ष और सहज भाव की अनुभूति
- तर्क और अन्वेषण के दमन के साथ एकाग्रता
- हर्ष की समाप्ति और सहज भाव की व्याप्ति
- सहज भाव की भी समाप्ति, जिसके बाद आत्मसंयम और स्थितप्रज्ञता की स्थिति आती है।
आध्यात्मिक प्रक्रिया
ध्यान के बाद चार और आध्यात्मिक प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें 'समाप्ति' (प्राप्ति) कहा जाता है-
- अंतरिक्ष की अनंतता की अनुभूति
- ज्ञान की अनंतता की अनुभूति
- वस्तुओं की अवास्तविकता या असत्यता का ज्ञान
- चिंतन की वस्तु के रूप में अवास्तविकता की अनुभूति
हिन्दू तथा बौद्ध ध्यान पद्धति में समानता
बौद्ध ध्यान के चरणों की हिन्दू ध्यान पद्धति से काफ़ी समानता है, जो दोनों की प्राचीन भारत की एक समान परंपरा का परिचायक है। लेकिन बौद्ध मतावलंबी समाधि जैसी स्थिति में पहुंचने को अनित्य या अस्थायी मानते हैं; और अंतिम निर्वाण के लिए प्रज्ञा की अंतर्दृष्टि की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं। प्रज्ञा के विकास के लिए जिन प्रक्रियाओं का उल्लेख है, उनमें सभी तथ्यों या संवृत्तियों का निर्माण करने वाले सत्य की वास्तविक प्रकृति और सहज धर्मों (तत्त्वों) पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।[1]
हालांकि बौद्ध धर्म के सभी मतों में ध्यान या चिंतन महत्त्वपूर्ण है, लेकिन विभिन्न परंपराओं में इसके विशेष लक्षणों में काफ़ी भिन्नता है। चीन और जापान में ध्यान प्रक्रिया इतनी महत्त्वपूर्ण हो गई कि यह अपने आप में एक मत (चान या ज़ेन) के रूप में स्थापित हो गई; सिसमें ध्यान सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है।
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