"मनप्रीत सिंह": अवतरणों में अंतर
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'''मनप्रीत सिंह''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Manpreet Singh'', जन्म- [[26 जून]], [[1992]], [[जालंधर]], [[पंजाब]]) भारतीय फील्ड [[हॉकी]] खिलाड़ी हैं। वर्तमान में वह भारतीय पुरुष राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम के [[मई 2017]] से कप्तान हैं। वह हाफबैक स्थिति में खेलते हैं। मनप्रीत सिंह पहली बार [[2011]] में [[भारत]] के लिए खेले थे, जब वह 19 साल के थे। उनका बड़ा क्षण [[2012]] में आया, जब उन्हें 2012 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। उन्हें [[2014]] में [[एशिया]] के 'जूनियर प्लेयर ऑफ द ईयर' के रूप में चुना गया था। अपने जुनून और दृढ़ संकल्प के साथ ये खिलाड़ी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बन गया है। | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=मनप्रीत सिंह|लेख का नाम=मनप्रीत सिंह (बहुविकल्पी)}} | ||
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मनप्रीत सिंह संधू का जन्म जालंधर के पास मीठापुर में एक किसान [[परिवार]] में हुआ था। कहा जाता है कि मनप्रीत सिंह ने पेंसिल से पहले हॉकी स्टिक पकड़ ली थी। उनके दो बड़े भाई भी हॉकी खिलाड़ी हैं। वह विशेष रूप से पुरस्कार से आकर्षित थे, जो उसके भाई-बहनों ने जीते। उनकी मां मंजीत को कुछ हद तक हिचकिचाहट थी। वह अपने भाइयों की तरह टूटी नाक और चेहरों को लेकर विशेष रूप से संशय में थीं। हालांकि मनप्रीत सिंह जिद पर अड़े थे हॉकी। यह तब हुआ जब दस साल का बच्चा रुपये कमाने में कामयाब रहा। अपनी पहली हॉकी जीत के लिए 500 रुपये की पुरस्कार राशि जीती। माँ मंजीत ने अपने बेटे को हॉकी अकादमी में शामिल होने की अनुमति दी। यह फैसला नौजवान मनप्रीत सिंह की किस्मत बदलने के लिए काफी था। जल्द ही [[2005]] में मनप्रीत ने सुरजीत हॉकी अकादमी, जालंधर में अपना प्रशिक्षण शुरू किया। जब राष्ट्रीय हॉकी प्रतिभाओं के निर्माण की बात आती है तो इस अकादमी को भारत के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक माना जाता है और यहीं से एक और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने वाला था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.kreedon.com/hi/manpreet-singh-biography/?amp |title=भारतीय हॉकी टीम के स्टाइलिश कप्तान की दिलचस्प कहानी|accessmonthday=27 सितम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=kreedon.com |language=हिंदी}}</ref> | मनप्रीत सिंह संधू का जन्म जालंधर के पास मीठापुर में एक किसान [[परिवार]] में हुआ था। कहा जाता है कि मनप्रीत सिंह ने पेंसिल से पहले हॉकी स्टिक पकड़ ली थी। उनके दो बड़े भाई भी हॉकी खिलाड़ी हैं। वह विशेष रूप से पुरस्कार से आकर्षित थे, जो उसके भाई-बहनों ने जीते। उनकी मां मंजीत को कुछ हद तक हिचकिचाहट थी। वह अपने भाइयों की तरह टूटी नाक और चेहरों को लेकर विशेष रूप से संशय में थीं। हालांकि मनप्रीत सिंह जिद पर अड़े थे हॉकी। यह तब हुआ जब दस साल का बच्चा रुपये कमाने में कामयाब रहा। अपनी पहली हॉकी जीत के लिए 500 रुपये की पुरस्कार राशि जीती। माँ मंजीत ने अपने बेटे को हॉकी अकादमी में शामिल होने की अनुमति दी। यह फैसला नौजवान मनप्रीत सिंह की किस्मत बदलने के लिए काफी था। जल्द ही [[2005]] में मनप्रीत ने सुरजीत हॉकी अकादमी, जालंधर में अपना प्रशिक्षण शुरू किया। जब राष्ट्रीय हॉकी प्रतिभाओं के निर्माण की बात आती है तो इस अकादमी को भारत के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक माना जाता है और यहीं से एक और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने वाला था।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.kreedon.com/hi/manpreet-singh-biography/?amp |title=भारतीय हॉकी टीम के स्टाइलिश कप्तान की दिलचस्प कहानी|accessmonthday=27 सितम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=kreedon.com |language=हिंदी}}</ref> | ||
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प्रतिद्वंद्वी के विंगर्स, चपलता और गति पर हावी होने की मनप्रीत सिंह की क्षमता ने उन्हें हाफबैक स्थिति में एक अद्वितीय कलाकार बना दिया। एक विस्फोटक गति के साथ वह आसानी से हमला करने की स्थिति से वापस लौट सकता था। नतीजतन, मनप्रीत तब से [[भारत]] की हॉकी टीम का मुख्य आधार बन गये। [[2011]] में अपने पदार्पण के बाद मनप्रीत [[2012]] के लंदन ओलंपिक में भाग लेने वाली भारतीय टीम में शामिल हो गए। दुर्भाग्य से, हालांकि यहाँ भारत का हॉकी के सबसे भव्य मंच पर निराशाजनक प्रदर्शन था। अपने सभी छह मैच हारने के बाद समूह तालिका में अंतिम स्थान पर रहा। मनप्रीत सिंह उस टीम का भी हिस्सा थे जो [[2014]] विश्व कप के लिए नीदरलैंड गई थी। वह प्रतियोगिता भी निराशाजनक थी, क्योंकि भारतीय टीम [[मलेशिया]] के ऊपर पूल ए में 5वें स्थान पर रही। | प्रतिद्वंद्वी के विंगर्स, चपलता और गति पर हावी होने की मनप्रीत सिंह की क्षमता ने उन्हें हाफबैक स्थिति में एक अद्वितीय कलाकार बना दिया। एक विस्फोटक गति के साथ वह आसानी से हमला करने की स्थिति से वापस लौट सकता था। नतीजतन, मनप्रीत तब से [[भारत]] की हॉकी टीम का मुख्य आधार बन गये। [[2011]] में अपने पदार्पण के बाद मनप्रीत [[2012]] के लंदन ओलंपिक में भाग लेने वाली भारतीय टीम में शामिल हो गए। दुर्भाग्य से, हालांकि यहाँ भारत का हॉकी के सबसे भव्य मंच पर निराशाजनक प्रदर्शन था। अपने सभी छह मैच हारने के बाद समूह तालिका में अंतिम स्थान पर रहा। मनप्रीत सिंह उस टीम का भी हिस्सा थे जो [[2014]] विश्व कप के लिए नीदरलैंड गई थी। वह प्रतियोगिता भी निराशाजनक थी, क्योंकि भारतीय टीम [[मलेशिया]] के ऊपर पूल ए में 5वें स्थान पर रही। | ||
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मनप्रीत सिंह | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मनप्रीत सिंह (बहुविकल्पी) |
मनप्रीत सिंह
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पूरा नाम | मनप्रीत सिंह संधु |
जन्म | 26 जून, 1992 |
जन्म भूमि | मीठापुर, जालंधर, पंजाब |
अभिभावक | माता- मंजीत |
कर्म भूमि | भारत |
खेल-क्षेत्र | हॉकी |
पुरस्कार-उपाधि | अर्जुन पुरस्कार (2018) 2014 में एशिया के जूनियर प्लेयर ऑफ द ईयर के रूप में नामित किया गया। |
प्रसिद्धि | भारतीय हॉकी खिलाड़ी |
नागरिकता | भारतीय |
ऊंचाई | 1.71 मीटर |
कोच | बलदेव सिंह |
अन्य जानकारी | भारतीय हॉकी टीम ने 2014 इंचियोन खेलों में स्वर्ण पदक के साथ सफल वर्ष का समापन किया। फाइनल में उन्होंने जीत को और भी मधुर बनाने के लिए चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 4-2 से हराया था। |
अद्यतन | 15:16, 27 सितम्बर 2021 (IST)
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मनप्रीत सिंह (अंग्रेज़ी: Manpreet Singh, जन्म- 26 जून, 1992, जालंधर, पंजाब) भारतीय फील्ड हॉकी खिलाड़ी हैं। वर्तमान में वह भारतीय पुरुष राष्ट्रीय फील्ड हॉकी टीम के मई 2017 से कप्तान हैं। वह हाफबैक स्थिति में खेलते हैं। मनप्रीत सिंह पहली बार 2011 में भारत के लिए खेले थे, जब वह 19 साल के थे। उनका बड़ा क्षण 2012 में आया, जब उन्हें 2012 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया। उन्हें 2014 में एशिया के 'जूनियर प्लेयर ऑफ द ईयर' के रूप में चुना गया था। अपने जुनून और दृढ़ संकल्प के साथ ये खिलाड़ी युवा खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बन गया है।
परिचय
मनप्रीत सिंह संधू का जन्म जालंधर के पास मीठापुर में एक किसान परिवार में हुआ था। कहा जाता है कि मनप्रीत सिंह ने पेंसिल से पहले हॉकी स्टिक पकड़ ली थी। उनके दो बड़े भाई भी हॉकी खिलाड़ी हैं। वह विशेष रूप से पुरस्कार से आकर्षित थे, जो उसके भाई-बहनों ने जीते। उनकी मां मंजीत को कुछ हद तक हिचकिचाहट थी। वह अपने भाइयों की तरह टूटी नाक और चेहरों को लेकर विशेष रूप से संशय में थीं। हालांकि मनप्रीत सिंह जिद पर अड़े थे हॉकी। यह तब हुआ जब दस साल का बच्चा रुपये कमाने में कामयाब रहा। अपनी पहली हॉकी जीत के लिए 500 रुपये की पुरस्कार राशि जीती। माँ मंजीत ने अपने बेटे को हॉकी अकादमी में शामिल होने की अनुमति दी। यह फैसला नौजवान मनप्रीत सिंह की किस्मत बदलने के लिए काफी था। जल्द ही 2005 में मनप्रीत ने सुरजीत हॉकी अकादमी, जालंधर में अपना प्रशिक्षण शुरू किया। जब राष्ट्रीय हॉकी प्रतिभाओं के निर्माण की बात आती है तो इस अकादमी को भारत के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक माना जाता है और यहीं से एक और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने वाला था।[1]
अंतरराष्ट्रीय शुरुआत
प्रतिद्वंद्वी के विंगर्स, चपलता और गति पर हावी होने की मनप्रीत सिंह की क्षमता ने उन्हें हाफबैक स्थिति में एक अद्वितीय कलाकार बना दिया। एक विस्फोटक गति के साथ वह आसानी से हमला करने की स्थिति से वापस लौट सकता था। नतीजतन, मनप्रीत तब से भारत की हॉकी टीम का मुख्य आधार बन गये। 2011 में अपने पदार्पण के बाद मनप्रीत 2012 के लंदन ओलंपिक में भाग लेने वाली भारतीय टीम में शामिल हो गए। दुर्भाग्य से, हालांकि यहाँ भारत का हॉकी के सबसे भव्य मंच पर निराशाजनक प्रदर्शन था। अपने सभी छह मैच हारने के बाद समूह तालिका में अंतिम स्थान पर रहा। मनप्रीत सिंह उस टीम का भी हिस्सा थे जो 2014 विश्व कप के लिए नीदरलैंड गई थी। वह प्रतियोगिता भी निराशाजनक थी, क्योंकि भारतीय टीम मलेशिया के ऊपर पूल ए में 5वें स्थान पर रही।
कॅरियर
राष्ट्रमंडल खेल
हालांकि इस युवा और उसके पक्ष में बहुत बड़ी चीजों का इंतजार था। 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय टीम प्रारंभिक दौर के पूल ए में ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरे स्थान पर रही। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ ग्रुप चरण के फाइनल मैच में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के सामने 5 गोल किए थे, जिनमें से एक मनप्रीत सिंह ने बनाया था। अंततः स्वर्ण विजेता ऑस्ट्रेलिया से हारने से पहले भारतीय पक्ष ने न्यूजीलैंड को 3-2 से हराया। यह राष्ट्रमंडल खेलों में उनका एकमात्र दूसरा पदक था, जिसमें पहला पदक 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में घर पर आया था।[1]
एशियाई खेल, 2018
पुरुषों की हॉकी टीम ने 2014 इंचियोन खेलों में स्वर्ण पदक के साथ सफल वर्ष का समापन किया। फाइनल में उन्होंने जीत को और भी मधुर बनाने के लिए चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 4-2 से हरा दिया था। दो साल बाद मनप्रीत ने लंदन में 2016 की पुरुष हॉकी चैंपियनशिप में अपनी टीम की रजत पदक जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कप्तानी
जैसे-जैसे मनप्रीत को इन विश्व स्तरीय आयोजनों का अधिक अनुभव हो रहा था, उन्होंने खेल के एक महत्वपूर्ण पहलू 'नेतृत्व' को प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। हालाँकि वह टीम में सबसे कम उम्र के थे, लेकिन मनप्रीत की परिपक्वता और मैदान पर स्वभाव ने उनकी उम्र को कम कर दिया। राष्ट्रीय चयनकर्ता चुपचाप इस तथ्य को नोट कर रहे थे। मनप्रीत सिंह को बड़ा मौका 2017 एशिया कप में मिला, जब भारत के मौजूदा कप्तान पीआर श्रीजेश टूर्नामेंट से ठीक पहले चोटिल हो गए। चयनकर्ता किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो श्रीजेश के लौटने तक अस्थायी रूप से कप्तानी संभाल सके और उन्हें मनप्रीत से बेहतर कोई नहीं मिला। उनके नेतृत्व में टीम न केवल समूह में शीर्ष पर रही, बल्कि अंत में ट्रॉफी भी जीती। रमनदीप और उपाध्याय ने एक-एक गोल करके मलेशिया को 2-1 से हराया। शानदार जीत से चयनकर्ताओं ने उन पर भरोसा जताकर जो एहसान किया था, उसे वापस कर दिया था। उन्होंने जल्द ही भारतीय हॉकी टीम के कप्तान के रूप में अपनी जगह मजबूत कर ली। मनप्रीत ने 2017 हॉकी वर्ल्ड लीग फाइनल में भारत को सफलतापूर्वक कांस्य पदक दिलाया।[1]
उपलब्धियां
- 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत[1]
- 2014 इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण
- 2016 में लंदन में पुरुषों की हॉकी चैंपियनशिप में रजत
- 2017 एशिया कप में गोल्ड
- 2017 हॉकी वर्ल्ड लीग में कांस्य
- 2018 चैंपियंस ट्रॉफी में रजत
- 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में कांस्य
- 2018 में सोना एशियाई चैंपियंस ट्रॉफी
पुरस्कार
- अर्जुन पुरस्कार, 2018
- टीओआईएसए, 2018
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 भारतीय हॉकी टीम के स्टाइलिश कप्तान की दिलचस्प कहानी (हिंदी) kreedon.com। अभिगमन तिथि: 27 सितम्बर, 2021।