"अवदानशतक": अवतरणों में अंतर

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*इस शब्द की व्युत्पत्ति अज्ञात है। पालि में इसके समकक्ष 'अपदान' शब्द है। सम्भवत: इसका प्रारम्भिक अर्थ असाधारण या अद्भुत कार्य है।  
*इस शब्द की व्युत्पत्ति अज्ञात है। पालि में इसके समकक्ष 'अपदान' शब्द है। सम्भवत: इसका प्रारम्भिक अर्थ असाधारण या अद्भुत कार्य है।  
*अवदान कथाएं कर्म-प्राबल्य को सिद्ध करती हैं।  
*अवदान कथाएं कर्म-प्राबल्य को सिद्ध करती हैं।  
*आजकल अवदान का अर्थ कथामात्र रह गया है। महावस्तु को भी 'अवदान' कहते हैं।  
*आजकल अवदान का अर्थ कथामात्र रह गया है। [[महावस्तु]] को भी 'अवदान' कहते हैं।  
*अवदान कथाओं का प्राचीनतम संग्रह 'अवदानशतक' है।  
*अवदान कथाओं का प्राचीनतम संग्रह 'अवदानशतक' है।  
*तीसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हो गया था। प्रत्येक कथा के अन्त में यह निष्कर्ष दिया जाता है कि शुक्ल कर्म का शुक्ल फल, कृष्ण कर्म का कृष्ण फल तथा व्यामिश्र का व्यामिश्र फल होता है। इनमें से अनेक में अतीत जन्म की कथा है। इसे हम जातक भी कह सकते हैं। क्योंकि जातक में बोधिसत्त्व के जन्म की कथा दी गयी है। किन्तु ऐसे भी अवदान हैं, जिनमें अतीत की कथा नहीं पाई जाती। कुछ अवदान 'व्याकरण' के रूप में हैं अर्थात इनमें प्रत्युत्पन्न कथा का वर्णन करके अनागत काल का व्याकरण किया गया है। तिब्बती भाषा में भी अवदान साहित्य अनूदित हुआ है।  
*तीसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हो गया था। प्रत्येक कथा के अन्त में यह निष्कर्ष दिया जाता है कि शुक्ल कर्म का शुक्ल फल, कृष्ण कर्म का कृष्ण फल तथा व्यामिश्र का व्यामिश्र फल होता है। इनमें से अनेक में अतीत जन्म की कथा है। इसे हम जातक भी कह सकते हैं। क्योंकि जातक में बोधिसत्त्व के जन्म की कथा दी गयी है। किन्तु ऐसे भी अवदान हैं, जिनमें अतीत की कथा नहीं पाई जाती। कुछ अवदान 'व्याकरण' के रूप में हैं अर्थात इनमें प्रत्युत्पन्न कथा का वर्णन करके अनागत काल का व्याकरण किया गया है। तिब्बती भाषा में भी अवदान साहित्य अनूदित हुआ है।  

13:36, 20 दिसम्बर 2011 का अवतरण

अवदान साहित्य

  • इस शब्द की व्युत्पत्ति अज्ञात है। पालि में इसके समकक्ष 'अपदान' शब्द है। सम्भवत: इसका प्रारम्भिक अर्थ असाधारण या अद्भुत कार्य है।
  • अवदान कथाएं कर्म-प्राबल्य को सिद्ध करती हैं।
  • आजकल अवदान का अर्थ कथामात्र रह गया है। महावस्तु को भी 'अवदान' कहते हैं।
  • अवदान कथाओं का प्राचीनतम संग्रह 'अवदानशतक' है।
  • तीसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हो गया था। प्रत्येक कथा के अन्त में यह निष्कर्ष दिया जाता है कि शुक्ल कर्म का शुक्ल फल, कृष्ण कर्म का कृष्ण फल तथा व्यामिश्र का व्यामिश्र फल होता है। इनमें से अनेक में अतीत जन्म की कथा है। इसे हम जातक भी कह सकते हैं। क्योंकि जातक में बोधिसत्त्व के जन्म की कथा दी गयी है। किन्तु ऐसे भी अवदान हैं, जिनमें अतीत की कथा नहीं पाई जाती। कुछ अवदान 'व्याकरण' के रूप में हैं अर्थात इनमें प्रत्युत्पन्न कथा का वर्णन करके अनागत काल का व्याकरण किया गया है। तिब्बती भाषा में भी अवदान साहित्य अनूदित हुआ है।

अवदानशतक

  • यह हीनयान का ग्रन्थ है- ऐसी मान्यता है। इसके चीनी अनुवादकों का ही नहीं, अपितु इसके अन्तरंग प्रमाण भी हैं।
  • सर्वास्तिवादी आगम के परिनिर्वाणसूत्र तथा अन्य सूत्रों के उद्धरण अवदानशतक में पाये जाते हैं। यद्यपि इसकी कथाओं में बुद्ध पूजा की प्रधानता है, तथापि बोधिसत्त्व का उल्लेख नहीं मिलता। अवदानशतक की कई कथाएं अवदान के अन्य संग्रहों में और कुछ पालि-अपदानों में भी आती हैं।


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