"भारत की आदिम जातियाँ": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==") |
No edit summary |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। - | प्राचीन काल से ही [[भारत]] में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है। भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन [[सिंधु घाटी सभ्यता|सिन्धु]] और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने ही<ref> जिन्हें हम [[द्रविड़]] कहते हैं</ref>, [[हड़प्पा]] व [[मोहनजोदड़ों]] की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली [[आर्य]] प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है। प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। - | ||
# | #[[नीग्रिटो]] | ||
#[[प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड]] | |||
#[[मंगोलॉयड]] | |||
#[[भूमध्यसागरीय द्रविड़]] | |||
#[[पश्चिमी ब्रेकी सेफल]] | |||
#[[नॉर्डिक]] | |||
[[ | |||
# | |||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
पंक्ति 49: | पंक्ति 20: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारतीय संस्कृति}}{{भारत की संस्कृति}} | |||
{{जातियाँ और जन जातियाँ}} | {{जातियाँ और जन जातियाँ}} | ||
[[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]] | [[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]] | ||
[[Category:इतिहास]][[Category:इतिहास_कोश]]__INDEX__ | [[Category:इतिहास]][[Category:इतिहास_कोश]]__INDEX__ | ||
[[Category:संस्कृति]] | |||
[[Category:संस्कृति कोश]] | |||
__INDEX__ |
12:48, 15 अगस्त 2011 का अवतरण
प्राचीन काल से ही भारत में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है। भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन सिन्धु और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने ही[1], हड़प्पा व मोहनजोदड़ों की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली आर्य प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है। प्रारम्भिक काल में भारत में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। -
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख