"भारत की आदिम जातियाँ": अवतरणों में अंतर

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प्राचीन काल से ही [[भारत]] में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है। भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन [[सिंधु घाटी सभ्यता|सिन्धु]] और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि भूमध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने ही<ref> जिन्हें हम [[द्रविड़]] कहते हैं</ref>, [[हड़प्पा]] व [[मोहनजोदड़ों]] की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली [[आर्य]] प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है। प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है। -  
प्राचीन काल से ही [[भारत]] में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है।
==प्रागैतिहासिक जातियाँ==
भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन [[सिंधु घाटी सभ्यता|सिन्धु]] और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि [[भूमध्य सागर|भू-मध्य सागरीय]] प्रजाति के लोगों ने ही<ref> जिन्हें हम [[द्रविड़]] कहते हैं</ref>, [[हड़प्पा]] व [[मोहनजोदड़ों]] की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली [[आर्य]] प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है।
====विभाजन====
प्रारम्भिक काल में [[भारत]] में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है-
#[[नीग्रिटो]]  
#[[नीग्रिटो]]  
#[[प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड]]  
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#[[नॉर्डिक]]
#[[नॉर्डिक]]


भारतीय जनसंख्या में उन कई मानव प्रजातियों का सम्मिश्रण पाया जाता है, जो प्रागैतिहासिक काल के पूर्व से ऐतिहासिक काल तक यदाकदा भारत में प्रवेश करती रही हैं। [[एशिया]] भूखण्ड के सुदूर दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] पर स्थित उत्तर, उत्तर पूर्व और उत्तर-पश्चिम में पर्वतमालाओं द्वारा आवेष्ठित और दक्षिण में समुद्रों द्वारा विलग भारत भौगोलिक दृष्टि से एक ऐसा सुरक्षित प्रदेश है, जिसमें यदि कोई प्रवेश करना चाहे तो वह केवल पर्वतीय दर्रों के द्वारा अथवा तटीय भागों से ही प्रवेश कर सकता है। उपर्युक्त भू-अवस्थाओं के फलस्वरूप भारत में काफ़ी समय पूर्व से आकर रहने वाली प्रजातियाँ नष्ट न होकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर हटती गईं और जंगलों ने बड़े परिमाण में आदिवासियों को अपने अंक में स्थान देकर उन्हें सर्वनाश से बचाए रखा है। भारत की जनसंख्या में मानव की समस्त प्रमुख प्रजातियों के वे सभी तत्त्व मौजूद हैं, जो साधारणतया इस सीमा तक अन्य देशों से नहीं मिलते।
==रिजले का वर्गीकरण==
तत्त्वशास्त्र के दृष्टिकोण से भारतीय प्रजातियों का सर्वप्रर्थम वर्गीकरण सर हरबर्ट रिजले ने सन 1901 की भारतीय जनगणना में किया था। रिजले के अनुसार, भारतीय जनसंख्या में निम्न सात विभिन्न मानव प्रजातियां सम्मिलित हैं-
====(1) द्राविड़ियन====
ऐतिहासिक युग के पूर्व भारत में [[द्रविड़ जाति|द्राविड़]] नामक प्रजाति रहती थी, जिन्हें भारत का आदिवासी कहा जा सकता है। पीछे से आने वाली [[आर्य]], [[सिथीयन]] तथा मंगोल प्रजातियों के सम्पर्क से इनकी नस्ल में बड़ा अन्तर आ गया है। ये भारत के दक्षिण में [[तमिलनाडु]], [[आन्ध्र प्रदेश]], [[छोटा नागपुर पठार|छोटा नागपुर का पठार]] और [[मध्य प्रदेश]] के दक्षिणी भागों में रहते हैं। मालाबाद के पनियान, [[उड़ीसा]] के जुआंग, पूर्वी घाट के कोंड, [[छत्तीसगढ़]] के [[गोंड]], [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरि]] के [[टोडा जनजाति|टोडा]], [[राजस्थान]] और [[गुजरात]] के [[भील]] और गरासिया एवं छोटा नागपुर के सन्थाल इसी प्रजाति के प्रतिनिध हैं। इसका कद छोटा और [[रंग]] प्राय: पूर्णत: [[काला रंग|काला]] होता है। इनकी [[आंख|आंखें]] काली, सिर लम्बा तथा घने बालों वाला (जो कभी-कभी घुंघराले भी होते हैं), नाक बहुत चौड़ी (जो कभी-कभी जाड़ों में दबी हुई होती है) और खोपड़ी बड़ी होती है। यह प्रजाति [[भारत]] की जनसंख्या का केवल 20% है।
====(2) भारतीय आर्य====
ऐसा अनुमान किया जाता है कि ईसा से 2000 वर्ष पूर्व आर्य लोग मध्य एशिया से भारत आये और इन्होंने यहां बसने वाली द्राविड़ जाति को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। इस समय साधारणत: यह प्रजाति [[पंजाब]], राजस्थान, [[उत्तर प्रदेश]] और [[कश्मीर]] में पाई जाती है। इस प्रजाति के वर्तमान सदस्य [[राजपूत]], खत्री और [[जाट]] हैं। [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के तीन उच्च वर्ग ([[ब्राह्मण]], [[क्षत्रिय]] और [[वैश्य]]) आर्य प्रजाति के ही वंशज हैं। इसका कद लम्बा, रंग गोरा, सिर ऊँचा, आंखें घनी और गहरी, भुजाएं लम्बी कंधे चौड़े, कमर और टांगें पतली, नाक ऊँची, नुकीली और लम्बी होती है। इसके चेहरे पर भरपूर बाल होते हैं।
====(3) मंगोलॉयड====
यह प्रजाति [[हिमाचल प्रदेश]], [[नेपाल]] और [[असम]] में फैली हुई है। लाहुल और [[कुल्लू]] के कनेत, [[सिक्किम]] और [[दार्जिलिंग]] के [[लेप्चा]], नेपाल के लिम्ब, मर्मी और गुरूंग, असम के बोडू लोग इस प्रजाति के मुख्य प्रतिनिधि हैं। इनका कद छोटा, सिर चौड़ा, नाक चौड़ी, चेहरा चपटा, भौंहें टेड़ी, [[पीला रंग|रंग पीला]] और शरीर पर बाल कम होते हैं।
====(4) आर्य द्राविड़ियन====
यह प्रजाति आर्य और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। यह उत्तर प्रदेश, [[बिहार]], [[झारखण्ड]] और राजस्थान के कुछ भागों में फैली हुई है। उच्च कुलों में हिन्दुस्तानी ब्राह्मण और निम्न कुलों में हरिजन इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। इन लोगों का सिर प्राय: लम्बा या मध्यम आकार का होता है। कद विशुद्ध आर्यों से कुछ छोटा, नाक मध्यम से चौड़ी और रंग हल्का [[भूरा रंग|भूरा]], गेहुंआ होता है।
====(5) मंगोल-द्राविड़ियन====
यह प्रजाति [[पश्चिम बंगाल]] और [[उड़ीसा]] में पाई जाती है। बंगाली ब्राह्मण और बंगाली कायस्थ इसके मुख्य प्रतिनिधि हैं। यह प्रजाति द्राविड़ और मंगोल तत्त्वों से बनी है। उच्च वर्गों में भारतीय [[आर्य]] लोगों के [[रक्त]] का अंश भी देखा जाता है। इन लोगों का कद मध्यम और कभी-कभी छोटा होता है। इनका सिर चौड़ा और गोल, रंग काला, बाल घने और नाक चौड़ी होती है।
====(6) सिथो-द्राविड़ियन====
यह प्रजाति सिथियन और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। ये लोग [[केरल]], [[सौराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[कच्छ]] और [[मध्य प्रदेश]] के पहाड़ी भागों में फैले हुए हैं। समाज के उच्च वर्गों में सिथियन तत्त्व और निम्न वर्गों में द्राविड़ तत्त्व प्रमुख हैं। ये लोग कद में छोटे और काले रंग के होते हैं। इनका सिर अपेक्षतया लम्बा और नाक मध्यम होती है। इनके सिर पर बाल कम होते हैं।
====(7) तुर्क-ईरानी====
वर्तमान समय में यह प्रजाति [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[बलूचिस्तान]] में पाई जाती है।


{{लेख प्रगति
रिजले का वर्गीकरण अब अनेक कारणों से अमान्य हो गया है। यह प्रजातियों के शरीरिक लक्षणों पर आधारित न होकर भाषाओं पर आधारित है। यह अपूर्ण है तथा रिजले ने भारतीय जनसंख्या में नीग्रिटो तत्त्व का कोई जिक्र नहीं किया है। किन्तु भारत में द्राविड़ों से पूर्व की प्रजातियों में निग्रिटो तत्त्व की उपस्थिति को मना नहीं किया जा सकता है।
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==ग्यूफ्रिडा का वर्गीकरण==
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
रिजले के पश्चात् नृतत्व विज्ञान के कई विशेषज्ञों ने भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण करने की चेष्टा की है, किन्तु [[1931]] की जनगणना तक कोई भी उचित और वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। ग्यूफ्रिडा के अनुसार भारत की प्रजातियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-
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}}


'''(1) नीग्रिटो''' - नीग्रिटो के अंतर्गत दक्षिणी भारतीय वनों में रहने वाली कुछ जनजातियाँ और [[अण्डमान एवं निकोबार|अण्डमान द्वीपसमूह]] की ओंग जनजाति।<br />
'''(2) पूर्व द्राविड़ या आस्ट्रेलॉयड''' -इसके मुख्य उदाहरण वेद्दा, [[संथाल]], ओरन, [[मुण्डा]] और हास जनजातियां हैं। इनके शारीरिक लक्षण भी नीग्रिटो की भांति ही होते हैं।<br />
'''(3) द्राविड़''' - [[द्रविड़ जाति|द्राविड़]] प्रजाति [[दक्षिणी भारत]] में पाई जाती है। इसके अंतर्गत [[तेलुगु भाषा|तेलुगु]] और [[तमिल भाषा]]-भाषी लोग सम्मिलित किये गए हैं।<br />
'''(4) ऊँचे कद की लम्बे सिर वाली प्रजातियाँ''' - जैसे [[नीलगिरि पहाड़ियाँ|नीलगिरि]] के [[टोडा जनजाति|टोडा]] और [[केरल]] के [[कडार]]।<br />
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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06:54, 15 नवम्बर 2012 का अवतरण

प्राचीन काल से ही भारत में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है।

प्रागैतिहासिक जातियाँ

भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन सिन्धु और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि भू-मध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने ही[1], हड़प्पामोहनजोदड़ों की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली आर्य प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है।

विभाजन

प्रारम्भिक काल में भारत में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. नीग्रिटो
  2. प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड
  3. मंगोलॉयड
  4. भूमध्यसागरीय द्रविड़
  5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल
  6. नॉर्डिक

भारतीय जनसंख्या में उन कई मानव प्रजातियों का सम्मिश्रण पाया जाता है, जो प्रागैतिहासिक काल के पूर्व से ऐतिहासिक काल तक यदाकदा भारत में प्रवेश करती रही हैं। एशिया भूखण्ड के सुदूर दक्षिण में हिन्द महासागर पर स्थित उत्तर, उत्तर पूर्व और उत्तर-पश्चिम में पर्वतमालाओं द्वारा आवेष्ठित और दक्षिण में समुद्रों द्वारा विलग भारत भौगोलिक दृष्टि से एक ऐसा सुरक्षित प्रदेश है, जिसमें यदि कोई प्रवेश करना चाहे तो वह केवल पर्वतीय दर्रों के द्वारा अथवा तटीय भागों से ही प्रवेश कर सकता है। उपर्युक्त भू-अवस्थाओं के फलस्वरूप भारत में काफ़ी समय पूर्व से आकर रहने वाली प्रजातियाँ नष्ट न होकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर हटती गईं और जंगलों ने बड़े परिमाण में आदिवासियों को अपने अंक में स्थान देकर उन्हें सर्वनाश से बचाए रखा है। भारत की जनसंख्या में मानव की समस्त प्रमुख प्रजातियों के वे सभी तत्त्व मौजूद हैं, जो साधारणतया इस सीमा तक अन्य देशों से नहीं मिलते।

रिजले का वर्गीकरण

तत्त्वशास्त्र के दृष्टिकोण से भारतीय प्रजातियों का सर्वप्रर्थम वर्गीकरण सर हरबर्ट रिजले ने सन 1901 की भारतीय जनगणना में किया था। रिजले के अनुसार, भारतीय जनसंख्या में निम्न सात विभिन्न मानव प्रजातियां सम्मिलित हैं-

(1) द्राविड़ियन

ऐतिहासिक युग के पूर्व भारत में द्राविड़ नामक प्रजाति रहती थी, जिन्हें भारत का आदिवासी कहा जा सकता है। पीछे से आने वाली आर्य, सिथीयन तथा मंगोल प्रजातियों के सम्पर्क से इनकी नस्ल में बड़ा अन्तर आ गया है। ये भारत के दक्षिण में तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर का पठार और मध्य प्रदेश के दक्षिणी भागों में रहते हैं। मालाबाद के पनियान, उड़ीसा के जुआंग, पूर्वी घाट के कोंड, छत्तीसगढ़ के गोंड, नीलगिरि के टोडा, राजस्थान और गुजरात के भील और गरासिया एवं छोटा नागपुर के सन्थाल इसी प्रजाति के प्रतिनिध हैं। इसका कद छोटा और रंग प्राय: पूर्णत: काला होता है। इनकी आंखें काली, सिर लम्बा तथा घने बालों वाला (जो कभी-कभी घुंघराले भी होते हैं), नाक बहुत चौड़ी (जो कभी-कभी जाड़ों में दबी हुई होती है) और खोपड़ी बड़ी होती है। यह प्रजाति भारत की जनसंख्या का केवल 20% है।

(2) भारतीय आर्य

ऐसा अनुमान किया जाता है कि ईसा से 2000 वर्ष पूर्व आर्य लोग मध्य एशिया से भारत आये और इन्होंने यहां बसने वाली द्राविड़ जाति को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। इस समय साधारणत: यह प्रजाति पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कश्मीर में पाई जाती है। इस प्रजाति के वर्तमान सदस्य राजपूत, खत्री और जाट हैं। हिन्दुओं के तीन उच्च वर्ग (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) आर्य प्रजाति के ही वंशज हैं। इसका कद लम्बा, रंग गोरा, सिर ऊँचा, आंखें घनी और गहरी, भुजाएं लम्बी कंधे चौड़े, कमर और टांगें पतली, नाक ऊँची, नुकीली और लम्बी होती है। इसके चेहरे पर भरपूर बाल होते हैं।

(3) मंगोलॉयड

यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश, नेपाल और असम में फैली हुई है। लाहुल और कुल्लू के कनेत, सिक्किम और दार्जिलिंग के लेप्चा, नेपाल के लिम्ब, मर्मी और गुरूंग, असम के बोडू लोग इस प्रजाति के मुख्य प्रतिनिधि हैं। इनका कद छोटा, सिर चौड़ा, नाक चौड़ी, चेहरा चपटा, भौंहें टेड़ी, रंग पीला और शरीर पर बाल कम होते हैं।

(4) आर्य द्राविड़ियन

यह प्रजाति आर्य और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और राजस्थान के कुछ भागों में फैली हुई है। उच्च कुलों में हिन्दुस्तानी ब्राह्मण और निम्न कुलों में हरिजन इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। इन लोगों का सिर प्राय: लम्बा या मध्यम आकार का होता है। कद विशुद्ध आर्यों से कुछ छोटा, नाक मध्यम से चौड़ी और रंग हल्का भूरा, गेहुंआ होता है।

(5) मंगोल-द्राविड़ियन

यह प्रजाति पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पाई जाती है। बंगाली ब्राह्मण और बंगाली कायस्थ इसके मुख्य प्रतिनिधि हैं। यह प्रजाति द्राविड़ और मंगोल तत्त्वों से बनी है। उच्च वर्गों में भारतीय आर्य लोगों के रक्त का अंश भी देखा जाता है। इन लोगों का कद मध्यम और कभी-कभी छोटा होता है। इनका सिर चौड़ा और गोल, रंग काला, बाल घने और नाक चौड़ी होती है।

(6) सिथो-द्राविड़ियन

यह प्रजाति सिथियन और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। ये लोग केरल, सौराष्ट्र, गुजरात, कच्छ और मध्य प्रदेश के पहाड़ी भागों में फैले हुए हैं। समाज के उच्च वर्गों में सिथियन तत्त्व और निम्न वर्गों में द्राविड़ तत्त्व प्रमुख हैं। ये लोग कद में छोटे और काले रंग के होते हैं। इनका सिर अपेक्षतया लम्बा और नाक मध्यम होती है। इनके सिर पर बाल कम होते हैं।

(7) तुर्क-ईरानी

वर्तमान समय में यह प्रजाति अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान में पाई जाती है।

रिजले का वर्गीकरण अब अनेक कारणों से अमान्य हो गया है। यह प्रजातियों के शरीरिक लक्षणों पर आधारित न होकर भाषाओं पर आधारित है। यह अपूर्ण है तथा रिजले ने भारतीय जनसंख्या में नीग्रिटो तत्त्व का कोई जिक्र नहीं किया है। किन्तु भारत में द्राविड़ों से पूर्व की प्रजातियों में निग्रिटो तत्त्व की उपस्थिति को मना नहीं किया जा सकता है।

ग्यूफ्रिडा का वर्गीकरण

रिजले के पश्चात् नृतत्व विज्ञान के कई विशेषज्ञों ने भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण करने की चेष्टा की है, किन्तु 1931 की जनगणना तक कोई भी उचित और वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। ग्यूफ्रिडा के अनुसार भारत की प्रजातियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-

(1) नीग्रिटो - नीग्रिटो के अंतर्गत दक्षिणी भारतीय वनों में रहने वाली कुछ जनजातियाँ और अण्डमान द्वीपसमूह की ओंग जनजाति।
(2) पूर्व द्राविड़ या आस्ट्रेलॉयड -इसके मुख्य उदाहरण वेद्दा, संथाल, ओरन, मुण्डा और हास जनजातियां हैं। इनके शारीरिक लक्षण भी नीग्रिटो की भांति ही होते हैं।
(3) द्राविड़ - द्राविड़ प्रजाति दक्षिणी भारत में पाई जाती है। इसके अंतर्गत तेलुगु और तमिल भाषा-भाषी लोग सम्मिलित किये गए हैं।
(4) ऊँचे कद की लम्बे सिर वाली प्रजातियाँ - जैसे नीलगिरि के टोडा और केरल के कडार


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिन्हें हम द्रविड़ कहते हैं

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