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प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और कपाल होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है। | प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और [[कपाल]] होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है। | ||
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13:04, 4 अगस्त 2014 का अवतरण
वज्रयोगिनी (तांत्रिक बौद्धमत) बोधत्त्व तक पहुँचाने वाली संज्ञानात्मक प्रक्रिया का साकार नारी स्वरूप है। वज्रयान अनुमान की अपेक्षा अनुभूति पर अधिक बल देता है, परंतु यह अनुमानिक दार्शनिक बौद्ध शब्दावली का कल्पनाशील प्रयोग करता है। व्रजयोगिनी को डाकिनी भी कहा गया है।
अर्थ
इस पद्धति का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के सामान्य जीवन से ली गई छवियाँ मानव अस्तित्त्व को गहराई से समझने का माध्यम बन जाती हैं, जिसमें ‘उपाय और प्रज्ञा’ एक-दूसरे को बल देती हैं।
प्रतिमा में वज्रयोगिनी
प्रतिमाओं में वज्रयोगिनी सामान्यतः विकराल रूप में दर्शाई जाती हैं, उनके हाथों में कटार और कपाल होते हैं। उनका दायाँ पैर बाहर को खिंचा रहता है और बायाँ पैर थोड़ा सा मुड़ा हुआ (अलिद्ध) रहता है। उनके चारों ओर श्मशान भूमि होती है, जो यह इंगित करती है कि कृत्रिमता को तोड़े-मरोड़े बिना ही समृद्ध संसार व दृष्टि की तुलना में बाह्यजगत मृत है, इसमें कल्पनाओं को तोड़ा नहीं जाता। यद्यपि उन्हें अकेला दिखाया जाता है, परंतु सामान्यतः वे (यब्-युम् ) हेरूका के साथ होती है।
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