"गुरबचन सिंह रंधावा": अवतरणों में अंतर

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#गुरबचन सिंह रंधावा ने [[1964]] में टोक्यो ओलंपिक में यादगार प्रदर्शन किया था, लेकिन किस्मत का साथ ना होने की वजह से वे पदक पाने से चूक गए।
#गुरबचन सिंह रंधावा ने [[1964]] में टोक्यो ओलंपिक में यादगार प्रदर्शन किया था, लेकिन किस्मत का साथ ना होने की वजह से वे पदक पाने से चूक गए।
#रंधावा को खेल विरासत में मिला है और [[मिल्खा सिंह]] की तरह ही उनके कई रिकॉर्ड वर्षों से सलामत हैं।
#रंधावा को खेल विरासत में मिला है और [[मिल्खा सिंह]] की तरह ही उनके कई रिकॉर्ड वर्षों से सलामत हैं।
#जानकारों की मानें तो यदि डिकेथन में रंधावा को बेहतर सुविधाएँ मिली होतीं तो वे विश्व में चोटी के एथलीटों में शुमार हो सकते थे।<ref>{{cite web।url=http://khabar.ibnlive.in.com/news/40671/4/33।title=गुरबचन सिंह रंधावा।accessmonthday=14 दिसम्बर|accessyear=2012|last=।first=।authorlink=।format=।publisher=।language=[[हिन्दी]]}}</ref>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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12:17, 28 अक्टूबर 2016 का अवतरण

गुरबचन सिंह रंधावा
गुरबचन सिंह रंधावा
गुरबचन सिंह रंधावा
पूरा नाम गुरबचन सिंह रंधावा
अन्य नाम जी. एस. रंधावा
जन्म 6 जून, 1939
जन्म भूमि नांगली, पंजाब
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र एथलीट
शिक्षा स्नातक
विद्यालय खालसा कॉलेज, अमृतसर
पुरस्कार-उपाधि अर्जुन पुरस्कार’ (1961)
प्रसिद्धि भारतीय एथलीट
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गुरबचन सिंह रंधावा ओलंपिक खेलों के फाइनल में भाग लेने वाले गुरबचन दूसरे भारतीय थे।

गुरबचन सिंह रंधावा (अंग्रेज़ी: Gurbachan Singh Randhawa, जन्म- 6 जून, 1939, नांगली, पंजाब) भारत के प्रसिद्ध एथलीटों में गिने जाते हैं। उन्हें भारतीय एथलेटिक्स का सबसे उम्दा ऑलराउंडर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। ट्रैक एंड फ़ील्ड की हर विधा में माहिर रंधावा ने स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही धमाल मचाना शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने बेहतर प्रदर्शन से कई रिकॉर्डों को तोड़ा था। इन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।

परिचय

गुरबचन सिंह रंधावा का जन्म 6 जून, 1939 को पंजाब में अमृतसर जिले के नांगली गांव में हुआ था। यह भारत के सर्वाधिक प्रतिभावान एथलीटों में गिने जाते हैं। इन्हें जी. एस. रंधावा के नाम से भी जाना जाता हैं। वे छह फुट कद के पतले-दुबले एथलीट रहे। वह जन्मजात श्रेष्ठ खिलाड़ी माने जाते हैं। इनके भीतर एक जन्मजात श्रेष्ठ खिलाड़ी की ऐसी छिपी हुई प्रतिभा रही की कि वह जिस के खिलाड़ी बनते, उसमें बेहतरीन प्रदर्शन करते। गुरबचन सिंह रंधावा का परिवार खेलों से सम्बंध रखता है। उनके पिता अपने समय में पंजाब के प्रसिद्ध एथलीट थे। गुरबचन ने अपने पिता के कारण ही एथलीट बनने का निर्णय लिया था। अपने पिता का अनुसरण करते हुए उन्होंने बाधा दौड़ को गम्भीरता पूर्वक अपनाया था। रंधावा ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिताओं के ऐसे पहले एथलीट रहे हैं।

उनकी शिक्षा अमृतसर के खालसा कॉलेज से हुई। रंधावा ने अपने स्कूल तथा कॉलेज के समय से ही खेलों में सफलता के झंडे गाड़ने आरम्भ कर दिए थे। वह पंजाब विश्वविद्यालय के ‘स्टार एथलीट’ थे, जिन्हें ऊंची कूद, बाधा दौड़ तथा ‘डिकैथलॉन’ जैसे खेलों में महारत हासिल थी। गुरबचन सिंह एथलेटिक्स में ऊँची कूद, भाला फेक, बाधा दौड़ जैसे खेलों में राष्ट्रीय चैंपियन रहे हैं। इन्हें भारतीय एथलेटिक्स का सबसे उम्दा ऑलराउंडर कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। ट्रैक एंड फ़ील्ड की हर विधा में माहिर थे

रंधावा ने 21 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय खेलों में सफलता प्राप्त की। 1960 में दिल्ली में हुए राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने सी. एम. मुथैया का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ दिया था। इन्होंने पहले ‘डिकैथलॉन’ को चुना, फिर उनकी निगाह ओलंपिक पदक जीतने की ओर थी।

करियर

रंधावा 1950 के दशक के अंतिम वर्षों में खेलों में आये। जब उन्होंने खेलों की दुनिया में कदम रखा तब चीमू मुथैया भारत के सर्वश्रेष्ठ आल राउंडर एथलीट थे, जो बाद में कोच बन गए और उसके पश्चात स्पोर्ट्स अथारिटी ऑफ इंडिया के निदेशक पद पर रहे। मुथैया ने भारत के एथलीट के तौर पर जो कीर्तिमान कायम किए थे, उन तक पहुंचना उस वक्त असम्भव-सा लगता था। लेकिन कुछ ही वर्षों में जी.एस. रंधावा ने असम्भव को न केवल सम्भव कर दिखाया वरन ‘डिकैथलान’ जैसे एथलेटिक खेलों को नई दिशा प्रदान की। वह एक अत्यन्त होनहार खिलाड़ी थे, ऊपर से सेन्ट्रल रिजर्व बल के कर्मचारियों ने उन पर दबाव डालकर उनकी खेल की इच्छा को इतना बलबती बना दिया कि वह शीघ्र ही जेवलिन, लम्बी कूद, ऊंची कूद, बाधा दौड़, ‘टेन-इन-वन डिकैथलॉन’ जैसे खेलों के राष्ट्रीय चैंपियन बन गए।

एशियाई खेल

1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में भी गुरबचन सिंह ने बाधा दौड़ में भाग लेकर 15 सेकंड में दूरी को पार किया। यहां भी वह पांचवें स्थान पर रहे थे। इसके पश्चात दो वर्ष बाद उन्होंने इसी प्रकार की दौड़ लगाकर ओलंपिक में भी पांचवां स्थान प्राप्त किया। यहां उन्होंने भाला-फेंक (जेवलिन) में भी भाग लिया और 59.61 मीटर की दूरी तक भाला फेंक कर वह पांचवें स्थान पर रहे। इन दोनों। प्रतियोगिताओं के बीच उन्होंने ‘डिकैथलान’ प्रतियोगिता में भाग लिया और 6739 अंक बनाकर स्वर्ण पदक जीता। कोई अन्य एथलीट उस वक्त इतना नहीं था कि एक ही मीट में इतने खेलों में भाग ले सके और विजयी हो सके।

ओलंपिक खेल

ओलंपिक खेलों के फाइनल में भाग लेने वाले गुरबचन दूसरे भारतीय थे। उन्होंने 1964 के टोकियो ओलंपिक में 110 मीटर बाधा दौड़ में हिस्सा लिया था और 14 सेकंड का बेहतरीन रिकॉर्ड बनाया था। यद्यपि वह पांचवें स्थान पर रहे परन्तु उनका निकाला समय आज भी भारतीय रिकॉर्ड है।

पुरस्कार

ट्रैक एंड फील्ड एथलेटिक्स में वह देश के पहले एथलीट थे जिन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया।

उपलब्धियां

  1. पंजाब के इस शेर ने 21 वर्ष की आयु में पहली बार राष्ट्रीय खेलों में अपनी पहचान बनाई थी।
  2. वर्ष 1960 में गुरबचन सिंह रंधावा ने राजधानी दिल्ली में 5793 प्वाइंट बनाकर डॉ. सीएम मुथैया के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया था।
  3. रंधावा ने ऊँची कूद, जैवलिन और 110 मीटर हर्ड्ल्स जीतकर 2 दिनों के अंदर ही चार रिकॉर्ड तोड़ डाले थे।
  4. 1962 में जकार्ता एशियन गेम्स में 10 इवेंट में एशिया में उन्होंने सबसे जबरदस्त प्रदर्शन किया।
  5. स्वर्ण पदक विजेता इस भारतीय एथलीट ने जापान के शोशुकी सुज़ुकी को पूरे 550 अंकों के साथ पीछे छोड़ा था।
  6. गुरबचन सिंह रंधावा ने 1964 में टोक्यो ओलंपिक में यादगार प्रदर्शन किया था, लेकिन किस्मत का साथ ना होने की वजह से वे पदक पाने से चूक गए।
  7. रंधावा को खेल विरासत में मिला है और मिल्खा सिंह की तरह ही उनके कई रिकॉर्ड वर्षों से सलामत हैं।
  8. जानकारों की मानें तो यदि डिकेथन में रंधावा को बेहतर सुविधाएँ मिली होतीं तो वे विश्व में चोटी के एथलीटों में शुमार हो सकते थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गुरबचन सिंह रंधावा (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 दिसम्बर, 2012।

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