"भदन्त आचार्य": अवतरणों में अंतर
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06:46, 17 मार्च 2011 का अवतरण
- साक्ष्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि सौत्रान्तिक दर्शन के आचार्यों की लम्बी परम्परा रही है।
- भोटदेशीय साक्ष्य के अनुसार सौत्रान्तिकों के प्रथम आचार्य कश्मीर निवासी महापण्डित महास्थविर भदन्त थे।
- आचार्यकनिष्क के समकालीन थे। उस समय कश्मीर में 'सिंह' नामक राजा राज्य कर रहे थे।
- बौद्ध धर्म के प्रति अत्यधिक श्रद्धा के कारण वे संघ में प्रव्रजित हो गये।
- संघ ने उन्हें 'सुदर्शन' नाम प्रदान किया।
- स्मृतिमान एवं सम्प्रजन्य के साथ भावना करते हुए उन्होंने शीघ्र ही अर्हत्त्व प्राप्त कर लिया।
- उनके विश्रुत यश को सुनकर महाराज कनिष्क भी उनके दर्शनार्थ पहुँचा व उनसे धर्मोपदेश ग्रहण किया।
- उस समय कश्मीर में शूद्र या सूत्र नामक एक अत्यन्त धनाढय ब्राह्मण रहता था। उसने दीर्घकाल तक सौत्रान्तिक आचार्य भदन्त के प्रमुख पाँच हज़ार भिक्षुओं की सत्कारपूर्वक सेवा की। यद्यपि आचार्य भदन्त कनिष्क कालीन थे, फिर भी यह घटना कनिष्क के प्रारम्भिक काल की है।
- बहुत समय के बाद कनिष्क के अन्तिम काल में उनकी संरक्षता में जालन्धर या कश्मीर में तृतीय संगीति (सर्वास्तिवादी सम्मत) आयोजित की गई। उसी संगीति में 'महाविभाषा' नामक बुद्धवचनों की प्रसिद्ध टीका का निर्माण हुआ।
- महाविभाषा शास्त्र में सौत्रान्तिक सिद्धान्तों की चर्चा के अवसर पर अनेक स्थानों पर स्थविर भदन्त के नाम का उल्लेख भी उपलब्ध होता है।
- इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि स्थविर भदन्त सौत्रान्तिक दर्शन के महान आचार्य थे और कनिष्क कालीन संगीति के पूर्व विद्यमान थे।