"सत्ता का रंग -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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- जब हम सड़क पर पैदल चल रहे होते हैं तो हम स्वत: ही पैदल चलने वालों के समूह के सदस्य होते हैं। हमारी सहज सहानुभूति पैदल चलने वालों की ओर रहती है और कार वालों का समूह हमें अपना नहीं लगता। हमें पैदल चलते समय सड़क पर चलती कारों और उनके मालिकों का अपने विरुद्ध प्रतीत होना स्वाभाविक ही है। जब हम कार में बैठे हों तो ऐसी इच्छा होती है कि काश ये पैदल, साइकिल, रिक्शा, तांगे न होते तो फर्राटे से हमारी कार जा सकती ! इस संबंध में एक क़िस्सा बहुत सही बैठता है- | - जब हम सड़क पर पैदल चल रहे होते हैं तो हम स्वत: ही पैदल चलने वालों के समूह के सदस्य होते हैं। हमारी सहज सहानुभूति पैदल चलने वालों की ओर रहती है और कार वालों का समूह हमें अपना नहीं लगता। हमें पैदल चलते समय सड़क पर चलती कारों और उनके मालिकों का अपने विरुद्ध प्रतीत होना स्वाभाविक ही है। जब हम कार में बैठे हों तो ऐसी इच्छा होती है कि काश ये पैदल, साइकिल, रिक्शा, तांगे न होते तो फर्राटे से हमारी कार जा सकती ! इस संबंध में एक क़िस्सा बहुत सही बैठता है- | ||
एक गाँव में भयंकर बाढ़ आ गई। चारों तरफ़ तबाही हो गई, तमाम मकान टूट गए। बढ़ते हुए पानी से बचने के लिए एक पुराने मज़बूत मकान की छत पर सैकड़ों गाँव वाले जा चढ़े। छत पर पहुँचने के सभी रास्ते बंद थे, सिर्फ़ एक | एक गाँव में भयंकर बाढ़ आ गई। चारों तरफ़ तबाही हो गई, तमाम मकान टूट गए। बढ़ते हुए पानी से बचने के लिए एक पुराने मज़बूत मकान की छत पर सैकड़ों गाँव वाले जा चढ़े। छत पर पहुँचने के सभी रास्ते बंद थे, सिर्फ़ एक बांस की सीढ़ी लगी हुई थी। उसी सीढ़ी से चढ़ कर गाँव का सरपंच भी छत पर पहुँच गया। ये सरपंच हमेशा समाज सुधार की बातें किया करता था, लेकिन छत पर आकर जब इसने सीढ़ी ऊपर खींच ली तो सबको आश्चर्य हुआ। उससे पूछा गया- | ||
"सरपंच जी आपने ऐसा क्यों किया ? सीढ़ी ऊपर खींच ली तो अब और लोग कैसे चढ़ेंगे ?" | "सरपंच जी आपने ऐसा क्यों किया ? सीढ़ी ऊपर खींच ली तो अब और लोग कैसे चढ़ेंगे ?" | ||
"तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। | "तुम लोगों को मालूम नहीं है। यह मकान मेरी जानकारी में बना था और इसकी छत उतनी मज़बूत नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो, और अधिक लोग चढ़े तो बोझ ज़्यादा हो जाएगा और छत टूट जाएगी। इसलिए मैंने सीढ़ी खींच ली... न सीढ़ी दिखेगी और न कोई और चढ़ेगा" सरपंच ने समझाया। |
13:41, 7 अप्रैल 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ