"कर्णी सिंह": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Karni singh shooting-stadium.jpg|thumb|250px|कर्णी सिंह शूटिंग रेंज]] | |||
कर्णी सिंह ने ‘क्ले पीजन ट्रैप’ प्रतियोगिता तथा स्कीट में 17 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हर स्तर की प्रतियोगिताओं में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया और विश्व चैंपियनशिप में ‘रजत पदक’ भी जीता। कर्णी सिंह देश के ऐसे पहले शूटर थे, जिन्हें भारत में पहली बार ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ देकर सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें [[1961]] में प्रदान किया गया। उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी ने भी अपने पिता के शूटिंग के शौक को अपनाया। महाराजा के तीन बच्चों में से दूसरी राज्यश्री ने अनेक पुरस्कार जीते और उन्हें भी [[1968]] में निशानेबाज़ी के लिए ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। | कर्णी सिंह ने ‘क्ले पीजन ट्रैप’ प्रतियोगिता तथा स्कीट में 17 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हर स्तर की प्रतियोगिताओं में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया और विश्व चैंपियनशिप में ‘रजत पदक’ भी जीता। कर्णी सिंह देश के ऐसे पहले शूटर थे, जिन्हें भारत में पहली बार ‘[[अर्जुन पुरस्कार]]’ देकर सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें [[1961]] में प्रदान किया गया। उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी ने भी अपने पिता के शूटिंग के शौक को अपनाया। महाराजा के तीन बच्चों में से दूसरी राज्यश्री ने अनेक पुरस्कार जीते और उन्हें भी [[1968]] में निशानेबाज़ी के लिए ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। | ||
09:02, 4 सितम्बर 2016 का अवतरण
महाराजा कर्णी सिंह (अंग्रेज़ी: Maharaja Karni Singh, 21 अप्रैल, 1924, बीकानेर; मृत्यु- 6 सितम्बर, 1988, नई दिल्ली) को प्रतियोगात्मक निशानेबाज़ी का जनक माना जा सकता है। मेजर जनरल हिज हाईनेस डॉक्टर कर्णी सिंह बीकानेर के महाराजा थे। उनके राजा होने के कारण उनका हर अंदाज राजसी था। उनके विविध प्रकार के शौक थे। राजा कर्णी सिंह की अनेकों उपलब्धियां थीं। उनका व्यक्तित्व व अंदाज भी बिल्कुल शाही था। वह पहले निशानेबाज़ थे, जिन्हें 1961 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया था।
परिचय
महाराजा कर्णी सिंह का जन्म 21 अप्रैल सन 1924 को बीकानेर, राजस्थान में हुआ था। वे निर्भीक राजपूत शासकों में 23वें शासक थे। उनके लिए हथियारों को पकड़ना या कुशलता के साथ चलाना एक सामान्य बात थी। उनके लिए कोई बंदूक या हथियार चलाना एक ऐसा स्वाभाविक कार्य था, जैसे किसी व्यक्ति के लिए चलना।[1]
- शिक्षा
कर्णी सिंह ने निशानेबाज़ी की शुरुआत अपने पिता स्वर्गीय महाराजा सादूल सिंह की देखरेख में की। उन्होंने अपने पिता से बन्दूकों के बारे में हर प्रकार की जानकारी हासिल की। कर्णी सिंह की शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में तथा मुम्बई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई। कर्णी सिंह ने मुम्बई विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री भी हासिल की। उनकी थीसिस का विषय था- ”द रिलेशन हाउस ऑफ़ बीकानेर विद सेंट्रल पावर्स फ़्रॉम 1465 टू 1949”। कर्णी सिंह ने अपने निशानेबाज़ी के यादगार लम्हों को एक पुस्तक के रूप में भी प्रस्तुत किया, जिसका नाम है- ”फ़्रॉम रोम टू मास्को”।
- बदूक का पहला अनुभव
कर्णी सिंह को बदूक का पहला अनुभव मात्र 13 वर्ष की आयु में हुआ, जब उन्होंने एक चिड़िया को अपने सही निशाने से मार गिराया। इस चिड़िया को मारने से उनकी निशानेबाज़ी की भीतरी चाहत को जहाँ बहुत संतुष्टि मिली, वहीं भावनात्मक रूप से वह बहुत आहत हुए। इसके पश्चात् उन्होंने निश्चय किया कि वह केवल शौक या आनंद के लिए निशानेबाज़ी करके किसी पक्षी या जानवर को नहीं मारेंगे। तब से उन्होंने अपना इरादा केवल निशानेबाज़ी का कर लिया।
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व
महाराजा कर्णी सिंह ने मिट्टी के नकली कबूतरों की खूब निशानेबाज़ी की। उनके शूटिंग के अतिरिक्त विविध शौक थे। वह गोल्फ खेलने के शौकीन रहे, वह एक कलाकार थे, वह एक पायलट भी थे। उन्हें फोटोग्राफ़ी का भी बेहद शौक था। वह 25 वर्षों तक संसद सदस्य भी रहे। यह सदस्यता 1952 से 1977 तक रही।[1]
अर्जुन पुरस्कार
कर्णी सिंह ने ‘क्ले पीजन ट्रैप’ प्रतियोगिता तथा स्कीट में 17 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हर स्तर की प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया और विश्व चैंपियनशिप में ‘रजत पदक’ भी जीता। कर्णी सिंह देश के ऐसे पहले शूटर थे, जिन्हें भारत में पहली बार ‘अर्जुन पुरस्कार’ देकर सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें 1961 में प्रदान किया गया। उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी ने भी अपने पिता के शूटिंग के शौक को अपनाया। महाराजा के तीन बच्चों में से दूसरी राज्यश्री ने अनेक पुरस्कार जीते और उन्हें भी 1968 में निशानेबाज़ी के लिए ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
बीकानेर हाउस सदैव ही लोकप्रिय शाही खेलों से जुड़ा रहा। महाराजा गंगा सिंह तथा महाराजा सादूल सिंह के समय में यहां पोलो खेला जाता रहा। शाही परिवार ने पोलो खेलने के लिए अपने पोलो-घोड़े रखे हुए थे। इस शाही परिवार के पास पिस्टल, राइफल तथा बन्दूकों का बड़ा कीमती संग्रह था। कर्णी सिंह के पास कारों का बड़ा संग्रह था। कर्णी सिंह ने अपने दादा महाराजा गंगा सिंह के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मध्य पूर्व देशों के विविध युद्ध फ्रंट की सैर भी की थी। उन्हें कई मिलिट्री अवॉर्ड भी प्रदान किए गए थे।
उपलब्धियाँ
महाराजा कर्णी सिंह की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्न प्रकार हैं[1]-
- कर्णी सिंह भारत में प्रतियोगात्मक निशानेबाजी के अग्रज थे।
- वह 25 वर्षों तक (1952-1977) संसद के सदस्य रहे थे।
- वह कलाकार, पायलट, फोटोग्राफर गोल्फर तथा शूटर थे।
- उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की थी।
- उन्होंने विश्व चैंपियनशिप निशानेबाजी में रजत पदक भी जीता था।
- उन्होंने 17 वर्षों तक ‘क्ले पीजन ट्रेप’ में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीती।
- वह भारत के पहले ऐसे निशानेबाज़ हैं, जिन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ (1961) दिया गया था।
- उनकी पुत्री राज्यश्री कुमारी भी अच्छी निशानेबाज़ रहीं और उन्हें 1968 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाराजा कर्णी सिंह का जीवन परिचय (हिंदी) कैसे और क्या। अभिगमन तिथि: 04 सितम्बर, 2016।