हिन्दी सिनेमा
हिन्दी सिनेमा, जिसे 'बॉलीवुड' के नाम से जाना जाता है, हिन्दी भाषा में फ़िल्म बनाने का फ़िल्म उद्योग है। बॉलीवुड नाम अंग्रेज़ी सिनेमा उद्योग हॉलीवुड के तर्ज़ पर रखा गया। हिन्दी फ़िल्म उद्योग मुख्यतः मुम्बई शहर में बसा है। ये फ़िल्में भारत, पाकिस्तान, और दुनिया के कई देशों के लोगों के दिलों की धड़कन हैं। हर फ़िल्म में कई संगीतमय गाने होते हैं। इन फ़िल्मों में हिन्दी की "हिन्दुस्तानी" शैली का चलन है। हिन्दी, खड़ीबोली और उर्दू के साथ साथ अवधी, मुम्बईया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों मे उपयुक्त होते हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। ज़्यादातर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं।
इतिहास
1904 में मणि सेठना ने भारत का पहला सिनेमाघर बनाया, जो विशेष रूप से फ़िल्मों के प्रदर्शन के लिए ही बनाया गया था। इसमें नियमित फ़िल्मों का प्रदर्शन होने लगा। उसमें सबसे पहले विदेश से आयी दो भागों मे बनी फ़िल्म ‘द लाइफ आफ क्राइस्ट’ प्रदर्शित की गयी। यही वह फ़िल्म थी जिसने भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के को भारत में सिनेमा की नींव रखने को प्रेरित किया। हालांकि स्वर्गीय दादा साहब फाल्के को भारतीय सिनेमा का जनक होने और पूरी लंबाई के कथाचित्र बनाने का गौरव हासिल है लेकिन उनसे पहले भी महाराष्ट्र में फ़िल्म निर्माण के कई प्रयास हुए। लुमीयर बंधुओं की फ़िल्मों के प्रदर्शन के एक वर्ष के भीतर सखाराम भाटवाडेकर उर्फ सवे दादा ने फ़िल्म बनाने की कोशिश की। उन्होंने पुंडलीक और कृष्ण नाहवी के बीच कुश्ती फ़िल्मायी थी। यह कुश्ती इसी उद्देश्य से विशेष रूप से बंबई के हैंगिंग गार्डन में आयोजित की गयी थी। शूटिंग के बाद फ़िल्म को प्रोसेसिंग के लिए इंग्लैंड भेजा गया। वहां से जब वह फ़िल्म प्रोसेस होकर आयी तो सवे दादा अपने काम का नतीजा देख कर बहुत खुश हुए। पहली बार यह फ़िल्म रात के वक्त बंबई के खुले मैदान में दिखायी गयी। उसके बाद उन्होंने अपनी यह फ़िल्म पेरी थिएटर में प्रदर्शित की। टिकट की दर थी आठ आना से लेकर तीन रुपये तक। अक्सर हर शो में उनको 300 रुपये तक मिल जाते थे।[1]
पहली फ़िल्म
दादा साहेब फाल्के द्वारा 1913 में बनाई गई 'राजा हरिश्चंद्र' हिन्दी सिनेमा की पहली फ़िल्म थी। फ़िल्म काफी जल्द ही भारत में लोकप्रिय हो गई और वर्ष 1930 तक लगभग 200 फ़िल्में प्रतिवर्ष बन रही थी।
पहली सवाक फ़िल्म
आलम आरा भारत की पहली सवाक (बोलती) फ़िल्म थी जो अर्देशिर ईरानी ने सन 1931 में बनाई। आलम आरा से पहले सभी फ़िल्में अवाक (आवाज़ नहीं) थीं। यह फ़िल्म काफी ज्यादा लोकप्रिय रही। जल्द ही सारी फ़िल्में, बोलती फ़िल्में थी।
आने वाले वर्षो में भारत में स्वतंत्रता संग्राम, देश विभाजन जैसी ऐतिहासिक घटना हुई। उन दरमान बनी हिंदी फ़िल्मों में इसका प्रभाव छाया रहा। 1950 के दशक में हिंदी फ़िल्में श्वेत-श्याम (ब्लैक & व्हाइट) से रंगीन हो गई। फ़िल्में के विषय मुख्यतः प्रेम होता था, और संगीत फ़िल्मों का मुख्य अंग होता था। 1960-70 के दशक की फ़िल्मों में हिंसा का प्रभाव रहा। 1980 और 1990 के दशक से प्रेम आधारित फ़िल्में वापस लोकप्रिय होने लगी। 1990-2000 के दशक मे समय की बनी फ़िल्में भारत के बाहर भी काफी लोकप्रिय रही। प्रवासी भारतीयो की बढती संख्या भी इसका प्रमुख कारण थी। हिंदी फ़िल्मों में प्रवासी भारतीयो के विषय लोकप्रिय रहे।
प्रमुख फ़िल्में
- आलम आरा
- किसान कन्या
- देवदास (1936)
- दो आँखें बारह हाथ
- दो बीघा ज़मीन
- नया दौर
- मदर इंडिया
- मुग़ल ए आज़म
- शोले
- दीवार
- हम आपके हैं कौन
- दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे
- थ्री इडियट्स
प्रमुख निर्माता-निर्देशक
- दादा साहब फाल्के
- सत्यजित राय
- बिमल राय
- वी शांताराम
- ऋषिकेश मुखर्जी
- कमाल अमरोही
- तपन सिन्हा
- मृणाल सेन
- गुरु दत्त
- डी. रामानायडू
- श्याम बेनेगल
- के. बालाचंदर
- महबूब खान
- बी. आर. चोपड़ा
- यश चोपड़ा
प्रमुख अभिनेता
- दिलीप कुमार
- अमिताभ बच्चन
- अशोक कुमार
- राज कपूर
- राजेश खन्ना
- धर्मेन्द्र
- गुरु दत्त
- राजेंद्र कुमार
- देवानंद
- सोहराब मोदी
- भगवान दादा
- बलराज साहनी
- सुनील दत्त
- अमरीश पुरी
- नसीरुद्दीन शाह
प्रमुख अभिनेत्री
- सुलोचना (रूबी मेयर्स)
- नादिरा
- वहीदा रहमान
- मीना कुमारी
- नर्गिस
- आशा पारेख
- मधुबाला
- देविका रानी
- वैजयंती माला
- जया बच्चन
- नूतन
- दुर्गा खोटे
- शर्मिला टैगोर
- हेमा मालिनी
- माधुरी दीक्षित
- ऐश्वर्या राय
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ त्रिपाठी, राजेश। हिंदी सिनेमा का इतिहास (हिन्दी) सिनेमा जगत (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 10 नवम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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