भारत की आदिम जातियाँ

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प्राचीन काल से ही भारत में आक्रमणकारियों के रूप में विदेशियों का आवागमन होता रहा है। इसके परिणामस्वरूप यहाँ प्रजातीय मिश्रण इतना अधिक हुआ कि यह कहना बहुत कठिन है कि यहाँ के मूल निवासी किस प्रजाति के थे। भारत का प्रजातीय इतिहास प्रमाणों के अभाव में अधिक स्पष्ट नहीं है। जो कुछ भी जानकारी मिलती है, उसमें भी विश्वसनीयता और प्रमाणिकता का अभाव पाया जाता है।

प्रागैतिहासिक जातियाँ

भारत की प्रागैतिहासिक युग की प्रजातियों की जानकारी हमें प्राचीन सिन्धु और नर्मदा घाटियों की सभ्यताओं से मिलती है। मजूमदार एवं गुहा नामक विद्वानों का मत है कि भू-मध्य सागरीय प्रजाति के लोगों ने ही[1], हड़प्पामोहनजोदड़ों की सभ्यता का निर्माण किया था, जो सम्भवत: समुद्री मार्ग से भारत में आये होंगे। द्रविड़ों को उत्तर से आने वाली आर्य प्रजाति ने हराया और उन्होंने यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। आर्यों ने द्रविड़ों को दक्षिण में खदेड़ दिया। यही कारण है कि उत्तरी भारत में आर्य प्रजाति और द्रविड़ प्रजाति की प्रधानता है।

विभाजन

प्रारम्भिक काल में भारत में कितने प्रकार की जातियां निवास करती थीं, उनमें आपसी सम्बन्घ किस स्तर के थे, आदि प्रश्न अत्यन्त ही विवादित हैं। फिर भी नवीनतम सर्वाधिक मान्यताओं में 'डॉ. बी.एस. गुहा' का मत है। भारतवर्ष की प्रारम्भिक जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. नीग्रिटो
  2. प्रोटो ऑस्ट्रेलियाड
  3. मंगोलॉयड
  4. भूमध्यसागरीय द्रविड़
  5. पश्चिमी ब्रेकी सेफल
  6. नॉर्डिक

भारतीय जनसंख्या में उन कई मानव प्रजातियों का सम्मिश्रण पाया जाता है, जो प्रागैतिहासिक काल के पूर्व से ऐतिहासिक काल तक यदाकदा भारत में प्रवेश करती रही हैं। एशिया भूखण्ड के सुदूर दक्षिण में हिन्द महासागर पर स्थित उत्तर, उत्तर पूर्व और उत्तर-पश्चिम में पर्वतमालाओं द्वारा आवेष्ठित और दक्षिण में समुद्रों द्वारा विलग भारत भौगोलिक दृष्टि से एक ऐसा सुरक्षित प्रदेश है, जिसमें यदि कोई प्रवेश करना चाहे तो वह केवल पर्वतीय दर्रों के द्वारा अथवा तटीय भागों से ही प्रवेश कर सकता है। उपर्युक्त भू-अवस्थाओं के फलस्वरूप भारत में काफ़ी समय पूर्व से आकर रहने वाली प्रजातियाँ नष्ट न होकर दक्षिण और दक्षिण-पूर्व की ओर हटती गईं और जंगलों ने बड़े परिमाण में आदिवासियों को अपने अंक में स्थान देकर उन्हें सर्वनाश से बचाए रखा है। भारत की जनसंख्या में मानव की समस्त प्रमुख प्रजातियों के वे सभी तत्त्व मौजूद हैं, जो साधारणतया इस सीमा तक अन्य देशों से नहीं मिलते।

रिजले का वर्गीकरण

तत्त्वशास्त्र के दृष्टिकोण से भारतीय प्रजातियों का सर्वप्रर्थम वर्गीकरण सर हरबर्ट रिजले ने सन 1901 की भारतीय जनगणना में किया था। रिजले के अनुसार, भारतीय जनसंख्या में निम्न सात विभिन्न मानव प्रजातियां सम्मिलित हैं-

(1) द्राविड़ियन

ऐतिहासिक युग के पूर्व भारत में द्राविड़ नामक प्रजाति रहती थी, जिन्हें भारत का आदिवासी कहा जा सकता है। पीछे से आने वाली आर्य, सिथीयन तथा मंगोल प्रजातियों के सम्पर्क से इनकी नस्ल में बड़ा अन्तर आ गया है। ये भारत के दक्षिण में तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, छोटा नागपुर का पठार और मध्य प्रदेश के दक्षिणी भागों में रहते हैं। मालाबाद के पनियान, उड़ीसा के जुआंग, पूर्वी घाट के कोंड, छत्तीसगढ़ के गोंड, नीलगिरि के टोडा, राजस्थान और गुजरात के भील और गरासिया एवं छोटा नागपुर के सन्थाल इसी प्रजाति के प्रतिनिध हैं। इसका कद छोटा और रंग प्राय: पूर्णत: काला होता है। इनकी आंखें काली, सिर लम्बा तथा घने बालों वाला (जो कभी-कभी घुंघराले भी होते हैं), नाक बहुत चौड़ी (जो कभी-कभी जाड़ों में दबी हुई होती है) और खोपड़ी बड़ी होती है। यह प्रजाति भारत की जनसंख्या का केवल 20% है।

(2) भारतीय आर्य

ऐसा अनुमान किया जाता है कि ईसा से 2000 वर्ष पूर्व आर्य लोग मध्य एशिया से भारत आये और इन्होंने यहाँ बसने वाली द्राविड़ जाति को दक्षिण की ओर खदेड़ दिया। इस समय साधारणत: यह प्रजाति पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कश्मीर में पाई जाती है। इस प्रजाति के वर्तमान सदस्य राजपूत, खत्री और जाट हैं। हिन्दुओं के तीन उच्च वर्ग (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) आर्य प्रजाति के ही वंशज हैं। इसका कद लम्बा, रंग गोरा, सिर ऊँचा, आंखें घनी और गहरी, भुजाएं लम्बी कंधे चौड़े, कमर और टांगें पतली, नाक ऊँची, नुकीली और लम्बी होती है। इसके चेहरे पर भरपूर बाल होते हैं।

(3) मंगोलॉयड

यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश, नेपाल और असम में फैली हुई है। लाहुल और कुल्लू के कनेत, सिक्किम और दार्जिलिंग के लेप्चा, नेपाल के लिम्ब, मर्मी और गुरूंग, असम के बोडू लोग इस प्रजाति के मुख्य प्रतिनिधि हैं। इनका कद छोटा, सिर चौड़ा, नाक चौड़ी, चेहरा चपटा, भौंहें टेड़ी, रंग पीला और शरीर पर बाल कम होते हैं।

(4) आर्य द्राविड़ियन

यह प्रजाति आर्य और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। यह उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और राजस्थान के कुछ भागों में फैली हुई है। उच्च कुलों में हिन्दुस्तानी ब्राह्मण और निम्न कुलों में हरिजन इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। इन लोगों का सिर प्राय: लम्बा या मध्यम आकार का होता है। कद विशुद्ध आर्यों से कुछ छोटा, नाक मध्यम से चौड़ी और रंग हल्का भूरा, गेहुंआ होता है।

(5) मंगोल-द्राविड़ियन

यह प्रजाति पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पाई जाती है। बंगाली ब्राह्मण और बंगाली कायस्थ इसके मुख्य प्रतिनिधि हैं। यह प्रजाति द्राविड़ और मंगोल तत्त्वों से बनी है। उच्च वर्गों में भारतीय आर्य लोगों के रक्त का अंश भी देखा जाता है। इन लोगों का कद मध्यम और कभी-कभी छोटा होता है। इनका सिर चौड़ा और गोल, रंग काला, बाल घने और नाक चौड़ी होती है।

(6) सिथो-द्राविड़ियन

यह प्रजाति सिथियन और द्राविड़ लोगों के सम्मिश्रण से बनी है। ये लोग केरल, सौराष्ट्र, गुजरात, कच्छ और मध्य प्रदेश के पहाड़ी भागों में फैले हुए हैं। समाज के उच्च वर्गों में सिथियन तत्त्व और निम्न वर्गों में द्राविड़ तत्त्व प्रमुख हैं। ये लोग कद में छोटे और काले रंग के होते हैं। इनका सिर अपेक्षतया लम्बा और नाक मध्यम होती है। इनके सिर पर बाल कम होते हैं।

(7) तुर्क-ईरानी

वर्तमान समय में यह प्रजाति अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान में पाई जाती है।

रिजले का वर्गीकरण अब अनेक कारणों से अमान्य हो गया है। यह प्रजातियों के शरीरिक लक्षणों पर आधारित न होकर भाषाओं पर आधारित है। यह अपूर्ण है तथा रिजले ने भारतीय जनसंख्या में नीग्रिटो तत्त्व का कोई जिक्र नहीं किया है। किन्तु भारत में द्राविड़ों से पूर्व की प्रजातियों में निग्रिटो तत्त्व की उपस्थिति को मना नहीं किया जा सकता है।

ग्यूफ्रिडा का वर्गीकरण

रिजले के पश्चात् नृतत्व विज्ञान के कई विशेषज्ञों ने भारतीय प्रजातियों का वर्गीकरण करने की चेष्टा की है, किन्तु 1931 की जनगणना तक कोई भी उचित और वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत नहीं किया जा सका। ग्यूफ्रिडा के अनुसार भारत की प्रजातियों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से है-

(1) नीग्रिटो - नीग्रिटो के अंतर्गत दक्षिणी भारतीय वनों में रहने वाली कुछ जनजातियाँ और अण्डमान द्वीपसमूह की ओंग जनजाति।
(2) पूर्व द्राविड़ या आस्ट्रेलॉयड -इसके मुख्य उदाहरण वेद्दा, संथाल, ओरन, मुण्डा और हास जनजातियां हैं। इनके शारीरिक लक्षण भी नीग्रिटो की भांति ही होते हैं।
(3) द्राविड़ - द्राविड़ प्रजाति दक्षिणी भारत में पाई जाती है। इसके अंतर्गत तेलुगु और तमिल भाषा-भाषी लोग सम्मिलित किये गए हैं।
(4) ऊँचे कद की लम्बे सिर वाली प्रजातियाँ - जैसे नीलगिरि के टोडा और केरल के कडार

हैडन का वर्गीकरण

हैडन के अनुसार भारत मुख्यत: तीन भौगोलिक प्रदेशों में बंटा है-

  1. हिमालय प्रदेश
  2. उत्तरी मैदान
  3. दक्षिण का पठार

इन प्रदेशों में निम्न प्रजातियों के तत्त्व पाए जाते हैं-
(अ) हिमालय प्रदेश

(1) भारतीय आर्य - जैसे कनेत जो हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में पाए जाते हैं और जिनमें तिब्बती रक्त का अंश भी मिलता है।
(2) मंगोल जैसे नेपाल और भूटान के पर्वतीय भागों में भूटिया, गुरंग, गुर्मी, गुरखा और नेबार लोग मिलते हैं।
(3)पर्वतीय भागों में लाहुल क्षेत्र के कनेत लोग।

(ब) मैदानी भागों में दो प्रकार के लोग पाए जाते हैं-

(1) कश्मीर की घाटी, राजस्थान और पंजाब में रहने वाले जाट, गूजर, राजपूत, आदि, जिनका रंग गोरा, कद लम्बा, सिर लम्बा, चौड़ा ललाट, लम्बा संकरा चेहरा और सीधी लम्बी नाक होती है।
(2)हिमालय प्रदेश में शिवालिक प्रदेश के पहाड़ी लोग तथा दक्षिण की ओर के लोग।

(स) दक्षिण के पठार पर पाए जाने वाले लोगों के लिए हैडन ने द्राविड़ शब्द का उपयोग किया है। यहाँ इनके अनुसार ये तत्त्व पाए जाते हैं-

(1) पूर्व द्राविड़-सन्थाल, पनियान, कडार, कुरुम्बा, इरूला, कन्नीकर, कौंध, भील, गोंड, कोलारी और मुण्डा लोग इसके उदाहरण हैं। ये नाटे काले से भूरे रंग के लहरदार घुंघराले बाल वाले और चौड़ी नाक वाले होते हैं।
(2) द्राविड़-मालाबार तट और केरल के निवासी, जिनमें नय्यर, बड़ागा, तियान, कनारी हिन्दू, इजूवान और तमिल ब्राह्मण सम्मिलित हैं। ये लोग तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषा बोलते हैं।
(3)दक्षिणी चौड़े सिर वाले लोग बेल्लारी से लगाकर तिरुनलवैली ज़िले तक फैले हैं। पनियान और पराबा मछुए इनके प्रतिनिधि हैं।
(4)पश्चिमी चौड़े सिर वाले लोग गुजरात से लगाकर पश्चिमी तट पर केरल में मिलते हैं। नागर ब्राह्मण, प्रभु, मराठा, कुर्ग आदि इनके प्रतिनिधि हैं।

ईक्सटैड का वर्गीकरण

सन 1929 में ईक्सटैड ने भारतीयों का भौतिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से वर्गीकरण किया। इनके अनुसार, भारत में चार मुख्य प्रजातियां हैं, जिनके सात उपभेद हैं।
(1) वैडीड या प्राचीन भारतीय-वन प्रदेशों के अति प्राचीन आदिवासी, जो इन श्रेणियों में बंटे हैं-

(अ)गोंडिड लोग छोटे से मध्यम कद, गहरे भूरे रंग और घुंघराले बाल वाले होते हैं। ये जादू-टोने में विश्वास करते हैं। इनमें ओंरन, ओरांब और गोंड मुख्य हैं।
(ब)मालिड छोटे कद, घुंघराले बाल वाले और काले भूरे रंग के होते हैं। ये अधिक असभ्य होते हैं। कुरूम्बा, इरूला, चेंचू, कन्नीकर, मलेवान और वेद्दा इनके मुख्य उदाहरण हैं।

(2)मैलेनिड अथवा काले भारतीय एक मिश्रित प्रजाति है, जो दो भागों में बांटी गई है-

(अ)दक्षिण मैलेनिड, भारत के सुदूर दक्षिणी मैदानों में काले भूरे रंग के लोग हैं। यनादि इनका मुख्य उदाहरण है।
(ब)कोलिड दक्षिण के उत्तरी वन प्रदेशों के अति प्राचीन निवासी हैं। ये काले भूरे रंग के छोटे कद के होते हैं। सन्थाल, खरिया, भुइया, भूमिज और मुण्डा इनके उदाहरण हैं।

(3)इण्डीड या नवीन भारतीय-ये लोग अधिक विकसित एवं खुले मैदानों में रहने वाले हैं। ये निम्न भागों में विभाजित हैं-

(अ)ग्रेसाइल इण्डीड पीत वर्ण, पतली नाक और बड़ी आंखों वाले लोग जो पैतृक परिवार को मानने वाले हैं, जैसे बंगाली आदि।
(ब)उत्तरी इण्डीड हल्के भूरे रंग वाले, जो प्रारम्भ से ही पैतृक परिवार के मानने वाले हैं, जैसे टोडा एवं राजपूत लोग।

(4)पूर्व मंगोल वायनाद ज़िले के पलायन लोग।

हट्टन का वर्गीकरण

हट्टन ने भारतीय प्रजातियों के बारे में अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। इनके अनुसार भारत में किसी भी प्रजाति का मूल स्थान नहीं है। सभी प्रजातियां यहाँ बाहर से आयी हैं। अपने आने के क्रम के अनुसार विभिन्न प्रजातियां ये हैं-

  1. नीग्रिटो -नीग्रिटो प्रजाति भारत की प्राचीनतम प्रजाति है जो अपने मूल स्थान मैलेनेशिया से असम, म्यांमार, अण्डमान-निकोबार और मालाबार में फैली, किन्तु अब इसके अवशेष हमें भारत के मुख्य भाग पर प्राप्त नहीं होते।
  2. प्रोटो-आस्ट्रेलॉयड नीग्रिटो लोगों के बाद भारत में आए। इनका मूल-स्थान फिलिस्तीन था। यहीं से ये पश्चिम की ओर से भारत में आये। इनकी त्वचा का रंग चॉकलेट जैसा काला होता है तथा खोपड़ी लम्बी। इनके अवशेष अनेक जनजातियों में विद्यमान हैं।
  3. पूर्व-भूमध्यसागरीय प्रजाति पूर्वी यूरोप से भारत की ओर आयी है। इनमें कुछ का सिर लम्बा और कुछ का चौड़ा होता है। मध्य भारतीय प्रदेश में गुजरात, मध्य प्रदेश होते हुए पश्चिमी बंगाल तक इस प्रजाति का विस्तार पाया जाता है। इसे सिंचाई और खेती करने का ज्ञान था।
  4. अधिक विकसित भूमध्यसागरीय प्रजाति भारत में आकर द्राविड़ प्रजाति बस गई। ये अधिक लम्बे और गोरे रंग वाले हैं। यही लोग उत्तरी भारत में पंजाब और गंगा की ऊपरी घाटी में फैले हैं। इस प्रजाति को धातुओं के प्रयोग तथा नगर बसाने की कला का ज्ञान था। सम्भवत: इन्होंने ही सिन्धु घाटी की सभ्यता का विकास किया था।
  5. अल्पाइन या पूर्व-वैदिक जो गुजरात और पश्चिम बंगाल में मिलते हैं।
  6. नॉर्डिक या वैदिक आर्य जो यूरोपीय स्टैपी प्रदेश से लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व भारत में आये और पंजाब, राजस्थान एवं गंगा की ऊपरी घाटी में बस गये।
  7. मंगोल उत्तरी-पूर्वी भागों से आकर भारत के पूर्वी भागों में, बंगाल और इंडोनेशिया में फैलकर बस गए।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिन्हें हम द्रविड़ कहते हैं

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