गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
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विवरण | प्रत्येक वर्ष का 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्नेह भर उठता है। |
उद्देश्य | यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती। |
इतिहास | 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार भारत सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया। भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करने वाले पर्याप्त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है। |
विशेष | प्रधानमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या (25 जनवरी) पर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन, जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है। इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है और राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है एवं राष्ट्रगान होता है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्हें आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है। |
संबंधित लेख | बीटिंग द रिट्रीट, स्वतंत्रता दिवस, भारतीय क्रांति दिवस, विजय दिवस, भारत का विभाजन |
अन्य जानकारी | सबसे पहली बार 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की। ब्रिटिश राज से आज़ादी पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राज्य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्ट्र में बड़े उत्साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है। |
गणतंत्र दिवस (अंग्रेज़ी: Republic Day) भारत में 26 जनवरी को मनाया जाता है और यह भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। हर वर्ष 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्त्वपूर्ण स्मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है। 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार यह सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोकतांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया। भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्व करने वाले पर्याप्त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है। यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती।
इतिहास
भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्य रात्रि में राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज़ सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।
भारतीय संविधान सभा
उसी समय भारतीय संविधान सभा की बैठकें होती रहीं, जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई, जिसमें भारतीय नेताओं और अंग्रेज़ कैबिनेट मिशन ने भाग लिया। भारत को एक संविधान देने के विषय में कई चर्चाएँ, सिफारिशें और वाद - विवाद किया गया। कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया गया जो 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया। 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ। भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ की मुद्रा पर जॉर्ज 6 की तस्वीरें थी। आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के संविधान को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत महसूस की और संविधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली, 25 नवम्बर, 1949 को 211 विद्वानों द्वारा 2 महीने और 11 दिन में तैयार देश के संविधान को मंजूरी मिली।
24 जनवरी, 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए। और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तथा 21 तोपों की सलामी के बाद 'इर्विन स्टेडियम' में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की थी। 26 जनवरी का महत्त्व बनाए रखने के लिए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यूएंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई। इस तरह से 26 जनवरी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। यह एक संयोग ही था कि 'कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस' बन गया था। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष राष्ट्रभर में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।
कांग्रेस अधिवेशन और मुस्लिम लीग
26 जनवरी सन् 1930 को ही कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में रावी के किनारे पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव पास करके आज़ादी का जश्न मनाया था। उसी वक़्त से सारे देश में हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था। जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ, जिसमें 296 सदस्यों की सभा में से मुस्लिम लीग को 73 और कांग्रेस को 211 स्थान मिले थे।
कांग्रेस के नेताओं ने पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, गोविन्द बल्लभ पन्त, बी. जी. खेर, डॉ. पुरुषोत्तम दास टण्डन, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ, श्री आसफ़ अली, श्री रफ़ी अहमद किदवाई, श्री कृष्ण सिन्हा, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, आचार्य जे. बी. कृपलानी और श्री कृष्णमाचारी आदि थे। इसके अलावा कांग्रेस सेना मेम्बरों में कांग्रेस द्वारा नामांकित सदस्यों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, श्री एन. गोपाल स्वामी अयंगर, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, डॉ. एम. आर. जयकर, श्री अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर, पं. हृदयनाथ कुंजरू, श्री हरी सिंह गौड़ और प्रोफेसर के. टी. शाह आदि थे। संविधान सभा में कुछ महिलायें भी थीं, जिनमें श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, श्रीमती हंसा मेहता, और श्रीमती रेणुका राय प्रमुख थीं। मुस्लिम लीग में नवाबज़ादा लियाक़त अली ख़ाँ, ख़्वाजा नाज़िमुद्दीम, श्री एच. एस. सुहरावर्दी, सर फ़िरोज़ ख़ाँ नून और मोहम्मद जफ़रुल्ला ख़ाँ, प्रमुख थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष थे। 9 दिसम्बर सन् 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन होना निश्चित हुआ। मुस्लिम लीग ने दो संविधान सभाओं की माँग की जिसमें से एक पाकिस्तान के लिए बनाई और दूसरी भारत के लिए।
भारत का विभाजन
3 जून सन् 1947 को माउण्टबेटन योजना प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रस्ताव किया गया कि भारत को दो भागों, भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया जाए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस योजना को स्वीकार कर लिया। अप्रैल सन् 1947 में बड़ौदा, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, रीवा और पटियाला के देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित हो चुके थे।
और 14 जुलाई सन् 1947 तक केवल दो देशी राज्यों जम्मू–कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर बाकी देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में भाग लेने आ गए थे। 15 अगस्त सन् 1947 को भारत के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान से होकर भारत आज़ाद हुआ। पं. जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। अक्टूबर सन् 1947 तक जम्मू और कश्मीर भी भारत में शामिल हो गया और नवम्बर सन् 1948 में हैदराबाद भी।
संविधान पारित
इस प्रकार संसद भारत की मुकम्मल प्रतिनिधि सभा बन गई। 29 अगस्त सन् 1947 के प्रस्ताव के अनुसार एक प्रारूप समिति क़ायम की गई, जिसके सात सदस्य थे और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर उसके अध्यक्ष थे। इस समिति ने 21 फ़रवरी सन् 1948 को अपना निर्णय प्रस्तुत कर दिया, जो 4 नवम्बर, सन् 1948 को संसद के सामने रखा गया। इस पर 9 नवम्बर सन् 1948 से 17 अक्टूबर सन् 1949 तक दूसरी खुवांदगी (वाचन) चलती रही जिसमें 7635 धाराएँ पेश की गईं। 14 नवम्बर सन् 1949 से 26 नवम्बर सन् 1949 तक तीसरी खुवांदगी हुई और 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पर संविधान सभा हस्ताक्षर होकर संविधान पारित हो गया। 24 जनवरी सन् 1950 को संविधान सभा का अन्तिम अधिवेशन हुआ और इसमें नये संविधान के अनुसार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। 26 जनवरी सन् 1950 से नया संविधान लागू किया गया। उसी दिन से हर साल 26 जनवरी को भारत में गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है।[1]
गणतंत्र की यात्रा
सबसे पहली बार 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की। ब्रिटिश राज से आज़ादी पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्वतंत्र राज्य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्ट्र में बड़े उत्साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है। एक ब्रिटिश उपनिवेश से एक सम्प्रभुतापूर्ण, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत का निर्माण एक ऐतिहासिक घटना रही। यह लगभग 2 दशक पुरानी यात्रा थी जो 1930 में एक सपने के रूप में संकल्पित की गई और 1950 में इसे साकार किया गया। भारतीय गणतंत्र की इस यात्रा पर एक नज़र डालने से हमारे आयोजन और भी अधिक सार्थक हो जाते हैं।[2]
सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन
गणतंत्र दिवस की परेड, नई दिल्ली |
गणतंत्र दिवस मनाते बच्चे |
एन.सी.सी. छात्र |
गणतंत्र दिवस रैली |
लोकनृत्य करते कलाकार |
गणतंत्र दिवस की परेड |
गणतंत्र दिवस मनाती लड़कियाँ |
गणतंत्र दिवस भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय त्योहार है, इस दिन राष्ट्रपति इंडिया गेट पर भारत के सब राज्यों से आए हुए प्रतिनिधियों तथा भारत की तीनों सेनाओं की सलामी लेते हैं। अनेक प्रकार की सुन्दर–सुन्दर झाँकियाँ नाच-गाने, बैण्ड-बाजे, हाथी, ऊँट, घोड़ों की सवारियाँ, टैंक, तोप, समुद्री जहाज़ और हवाई जहाज़ के नमूने कृषि और उद्योग की झाँकियाँ, स्कूली बच्चों के नाच-गाने करते हुए ग्रुप राष्ट्रपति को सलामी देते हुए चलते हैं। जो कि विजय चौक से शुरू होकर लाल क़िले तक जाते हैं। इस उत्सव में किसी दूसरे देश का कोई मेहमान बुलाया जाता है। उस दिन दर्शकों की इतनी भीड़ होती है कि इंडिया गेट पर ऐसा मालूम होता है जैसे इन्सानों का समुद्र लहरा रहा हो। रात को इंडिया गेट, राष्ट्रपति भवन, सेंट्रल सेक्रेटेरियट, संसद भवन तथा मुख्य सरकारी इमारतों पर रोशनी की जाती है।
- असली मायनों में भारत की जनता को राज्य 26 जनवरी सन् 1950 से ही प्राप्त हुआ। 15 अगस्त सन् 1947 को हम आज़ाद ज़रूर हो गए थे लेकिन हमारा कोई संविधान लागू नहीं हुआ था और न ही कोई गणराज्य का राष्ट्रपति था।
- अंग्रेज़ भारत को छोड़कर चले गए और 26 जनवरी को जनता का राज्य हुआ, इसलिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं। जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है।
- इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है, राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है और राष्ट्रगान होता है। इस प्रकार परेड आरंभ होती है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्हें आयोजन के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।
- राष्ट्रपति महोदय के सामने से खुली जीपों में वीर सैनिक गुजरते हैं। भारत के राष्ट्रपति, जो भारतीय सशस्त्र बल, के मुख्य कमांडर हैं, विशाल परेड की सलामी लेते हैं। भारतीय सेना द्वारा इसके नवीनतम हथियारों और बलों का प्रदर्शन किया जाता है जैसे टैंक, मिसाइल, राडार आदि। इसके शीघ्र बाद राष्ट्रपति द्वारा सशस्त्र सेना के सैनिकों को बहादुरी के पुरस्कार और मेडल दिए जाते हैं जिन्होंने अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व साहस दिखाया और ऐसे नागरिकों को भी सम्मानित किया जाता है जिन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में वीरता के अलग-अलग कारनामे किए। इसके बाद सशस्त्र सेना के हेलिकॉप्टर दर्शकों पर गुलाब की पंखुडियों की बारिश करते हुए फ्लाई पास्ट करते हैं।
सांस्कृतिक परेड
सेना की परेड के बाद रंगारंग सांस्कृतिक परेड होती है। विभिन्न राज्यों से आई झांकियों के रूप में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया जाता है। प्रत्येक राज्य अपने अनोखे त्यौहारों, ऐतिहासिक स्थलों और कला का प्रदर्शन करते हैं। यह प्रदर्शनी भारत की संस्कृति की विविधता और समृद्धि को एक त्यौहार का रंग देती है। विभिन्न सरकारी विभागों और भारत सरकार के मंत्रालयों की झांकियां भी राष्ट्र की प्रगति में अपने योगदान प्रस्तुत करती है। इस परेड का सबसे खुशनुमा हिस्सा तब आता है जब बच्चे, जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार हाथियों पर बैठकर सामने आते हैं। पूरे देश के स्कूली बच्चे परेड में अलग-अलग लोक नृत्य और देश भक्ति की धुनों पर गीत प्रस्तुत करते हैं। परेड में कुशल मोटर साइकिल सवार, जो सशस्त्र सेना कार्मिक होते हैं, अपने प्रदर्शन करते हैं। परेड का सर्वाधिक प्रतीक्षित भाग फ्लाई पास्ट है जो भारतीय वायु सेना द्वारा किया जाता है। फ्लाई पास्ट परेड का अंतिम पड़ाव है, जब भारतीय वायु सेना के लड़ाकू विमान राष्ट्रपति का अभिवादन करते हुए मंच पर से गुजरते हैं।
प्रधानमंत्री की रैली
गणतंत्र दिवस का आयोजन कुल मिलाकर तीन दिनों का होता है और 27 जनवरी को इंडिया गेट पर इस आयोजन के बाद प्रधानमंत्री की रैली में एन.सी.सी. केडेट्स द्वारा विभिन्न चौंका देने वाले प्रदर्शन और ड्रिल किए जाते हैं।
लोक तरंग
सात क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों के साथ मिलकर संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा हर वर्ष 24 से 29 जनवरी के बीच ‘’लोक तरंग – राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह’’ आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में लोगों को देश के विभिन्न भागों से आए रंग बिरंगे और चमकदार और वास्तविक लोक नृत्य देखने का अनोखा अवसर मिलता है।
बीटिंग द रिट्रीट
बीटिंग द रिट्रीट गणतंत्र दिवस आयोजनों का आधिकारिक रूप से समापन घोषित करता है। सभी महत्वपूर्ण सरकारी भवनों को 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है। हर वर्ष 29 जनवरी की शाम को अर्थात गणतंत्र दिवस के बाद अर्थात गणतंत्र की तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट आयोजन किया जाता है। यह आयोजन तीन सेनाओं के एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड वादन से आरंभ होता है जो लोकप्रिय मार्चिंग धुनें बजाते हैं। ड्रमर भी एकल प्रदर्शन (जिसे ड्रमर्स कॉल कहते हैं) करते हैं। ड्रमर्स द्वारा एबाइडिड विद मी (यह महात्मा गाँधी की प्रिय धुनों में से एक कहीं जाती है) बजाई जाती है और ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्स बजाई जाती हैं, जो काफ़ी दूरी पर रखी होती हैं और इससे एक मनमोहक दृश्य बनता है। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। तब सूचित किया जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय लोकप्रिय धुन सारे जहाँ से अच्छा बजाते हैं। ठीक शाम 6 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाते हैं और राष्ट्रीय ध्वज को उतार लिया जाता हैं तथा राष्ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता हैं।[3]
महापुरुष कथन
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गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि
वर्ष | मुख्य अतिथि | देश और पद |
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2017 | शेख मोहमद बिन ज़ायेद अल नाह्यान | अबु धाबी के क्राउन प्रिंस |
2016 | फ्रांस्वा ओलांद | फ्रांस के राष्ट्रपति |
2015 | बराक ओबामा | अमेरिका के राष्ट्रपति |
2014 | शिंजो अबे | जापान के प्रधानमन्त्री |
2013 | जिग्मे खेसर नामग्यल वांग्चुक | भूटान नरेश |
2012 | यींगलक शिनावात्रा | थाइलैण्ड की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री |
2011 | सुसिलो बाम्बांग युधोयोनो | इंडोनेशिया के राष्ट्रपति |
2010 | ली म्यूंग बाक | कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) के राष्ट्रपति |
2009 | नूर सुल्तान नजरबायेब | कज़ाख़िस्तान के राष्ट्रपति |
2008 | निकोलस सर्कोजी | फ्रांस के राष्ट्रपति |
2007 | व्लादिमीर पुतिन | रूस के राष्ट्रपति |
2006 | अब्दुल्ला बिन अब्दुल अज़ीज़ अल-सऊद | सउदी अरब के शाह |
2005 | वांगचुक | भूटान नरेश |
2004 | लुईज़ इनासियो लूला द सिल्वा | ब्राज़ील के राष्ट्रपति |
2003 | मोहम्मद ख़ातमी | ईरान के राष्ट्रपति |
2002 | कसाम उतीम | मॉरीशस के राष्ट्रपति |
2001 | अब्देलाज़िज बुटेफ्लिका | अलजीरीया के राष्ट्रपति |
2000 | ओलूसेगुन ओबाझाँजो | नाइजीरिया के राष्ट्रपति |
1999 | बिरेन्द्र बीर बिक्रम शाह देव | नेपाल नरेश |
1998 | जैक्स चिराक | फ्रांस के राष्ट्रपति |
1997 | बासदियो पांडेय | त्रिनिनाड और टोबैगो के प्रधानमंत्री |
1996 | डॉ. फरनॉनडो हेनरिक कारडोसो | ब्राजील के राष्ट्रपति |
1995 | नेल्सन मंडेला | दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति |
1994 | गोह चोक टोंग | सिंगापुर के प्रधानमंत्री |
1993 | जॉन मेजर | ब्रिटेन के प्रधानमंत्री |
1992 | मारियो सोर्स | पुर्तगाल के राष्ट्रपति |
1991 | मौमून अब्दुल गयूम | मालदीव के राष्ट्रपति |
1990 | अनिरुद्ध जुगनौत | मॉरीशस के प्रधानमंत्री |
1989 | गुयेन वैन लिंह | प्रधान सचिव, वियतनाम |
1988 | जुनियस जयवर्द्धने | श्रीलंका के प्रधानमंत्री |
1987 | ऐलेन गार्सिया | पेरु के प्रधानमंत्री |
1986 | एँड्रियास पपनड्रीयु | ग्रीस के प्रधानमंत्री |
1985 | रॉल अलफोन्सिन | अर्जेन्टीना के राष्ट्रपति |
1984 | जिग्मे सिंघे वाँगचुक | भूटान नरेश |
1983 | सेहु शगारी | नाइजीरिया के राष्ट्रपति |
1982 | जॉन कार्लोस प्रथम | स्पेन के राष्ट्रपति |
1981 | जोस लोपेज़ पोरेटील्लो | मेक्सिको के राष्ट्रपति |
1980 | वलेरी गिस्कार्ड द इस्टेइंग | फ्रांस के राष्ट्रपति |
1979 | मलकोल्म फ्रेज़र | ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री |
1978 | पैट्रीक हिलेरी | ऑयरलैंड के राष्ट्रपति |
1977 | एडवर्ड गिरेक | पौलैण्ड के प्रथम सचिव |
1976 | जैक्स चिराक | फ्रांस के प्रधानमंत्री |
1975 | केनेथ कौंडा | जांबिया के राष्ट्रपति |
1974 | सिरीमावो रतवत्ते दियास बंदरनायके एवं जोसिप ब्रौज टीटो | प्रधानमंत्री श्रीलंका और राष्ट्रपति यूगोस्लाविया |
1973 | मोबुतु सेस सीको | जैरे के राष्ट्रपति |
1972 | सीवुसागर रामगुलाम | मॉरीशस के प्रधानमंत्री |
1971 | जुलियस नीयरेरे | तंजानिया के राष्ट्रपति |
1970 | - | - |
1969 | टोडर ज़िकोव | बुल्गारिया के प्रधानमंत्री |
1968 | जोसिप ब्रोज टीटो एवं एलेक्सी कोज़ीगिन | राष्ट्रपति यूगोस्लाविया, प्रधानमंत्री सोवियत यूनियन |
1967 | - | - |
1966 | - | - |
1965 | राना अब्दुल हामिद | खाद्य एवं कृषि मंत्री, पाकिस्तान |
1964 | - | - |
1963 | नोरोदम शिनौक | कंबोडिया के राजा |
1962 | - | - |
1961 | एलिज़ाबेथ द्वितीय | रानी, ब्रिटेन |
1960 | क्लिमेंट वोरोशिलोव | सोवियत संघ के राष्ट्रपति |
1959 | ||
1958 | मार्शल यि जियानयिंग | चीन |
1957 | - | - |
1956 | - | - |
1955 | मलिक गुलाम मोहम्मद | गर्वनर जनरल, पाकिस्तान |
1954 | जिग्मे दोरजी वाँगचुक | भूटान नरेश |
1953 | - | - |
1952 | - | - |
1952 | - | - |
1950 | सुकर्णो | इंडोनेशिया के राष्ट्रपति |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- भारतीय उत्सव और पर्व द्वारा- वेद प्रकाश गुप्ता
- ↑ भारत के गणतंत्र की यात्रा (हिन्दी) (पी.एच.पी) आधिकारिक वेबासाइट भारत। अभिगमन तिथि: 29 दिसंबर, 2010।
- ↑ गणतंत्र दिवस के आयोजन (हिन्दी) (पी.एच.पी) आधिकारिक वेबासाइट भारत। अभिगमन तिथि: 23 दिसंबर, 2010।
बाहरी कड़ियाँ
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