धनराज पिल्लै

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धनराज पिल्लै (अंग्रेज़ी: Dhanraj Pillay, जन्म- 16 जुलाई, 1968, पुणे, महाराष्ट्र) भारत के प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी हैं। हॉकी में सेंटर फारवर्ड खेलने वाले धनराज पिल्लै के खेल में गति और स्ट्राइकिंग कौशल है। उन्होंने कॅरियर के शानदार वर्षों में अनेक पुरस्कार प्राप्त किए हैं। 1991 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार का ‘शिव छत्रपति अवार्ड’ प्रदान किया गया था। इसके अतिरिक्त वह ‘राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार’, ‘अर्जुन पुरस्कार’ व ‘पद्मश्री’ पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

परिचय

धनराज पिल्लै का जन्म 16 जुलाई, 1968 को महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में खड़की नामक स्थान पर हुआ था। उनका जन्म तमिल माता-पिता नागालिन्गम पिल्लै और अन्दालम्मा के चौथे पुत्र के रूप में हुआ था। जब वे अविवाहित थे, तब पोवाई में अकेले रहते थे जबकि उनके माता-पिता महाराष्ट्र के खड़की में रहते थे। वे तमिल (मातृभाषा), हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी भाषाओं में धाराप्रवाह हैं। वह इंडियन एयरलाइन्स में असिस्टेंट मैनेजर हैं। वह तीन ओलंपिक में, 3 वर्ल्ड कप में तथा 4 एशियाई खेलों में भाग लेने वाले एकमात्र भारतीय हैं। वे एक सीनियर खिलाड़ी हैं और भारतीय टीम के लिए आशा की किरण हैं। वह अपने से 15 वर्ष छोटे खिलाड़ियों को भी फुर्ती में मात दे सकते हैं। उन्हें अपने खेल से प्यार है और वे मेहनत से खेलते हैं।

आर्थिक परेशानियाँ

भारतीय खेल जगत में हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै का नाम बहुत गर्व से लिया जाता है। हॉकी के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सेन्टर फारवर्ड खिलाड़ी समझे जाने वाले धनराज की तुलना क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर से की जाती है। जैसे क्रिकेट में सचिन का कोई सानी नहीं है, इसी प्रकार धनराज पिल्लै भी हॉकी के खेल में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं। धनराज पिल्लै की कहानी एक ऐसे सामान्य दर्जे के लड़के की कहानी है, जो गरीब परिवार से निकलकर कड़ी मेहनत करके अपना मुकाम हासिल करता है। पुणे की हथियारों की फैक्टरियों की गलियों में खेल-खेलकर उनका बचपन बीता। पांच बहन-भाइयों के बीच धनराज के यहां धन की कमी होते हुए भी उन्हें खेल के लिए पूरा नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ। धन की कमी के कारण धनराज व उनका भाई हॉकी खरीदने में पैसे खर्च करने में असमर्थ थे। अत: वे इसके स्थान पर टूटी हुई हॉकी को रस्सी से बांध कर उससे खेला करते थे।

माँ से लगाव

धनराज को बचपन से आज तक अपनी माँ से बेहद लगाव है। धनराज का कहना है- "यह कल्पना करना कठिन है कि घर में इतने कम साधन होते हुए भी माँ ने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया और हम सब को एक अच्छा इंसान बनाया।"

भारतीय टीम का नेतृत्व

धनराज पिल्लै को 1994 में ‘वर्ल्ड इलेवन टीम’ के लिए चुना गया। 1998 में उन्होंने भारतीय टीम का नेतृत्व हालैंड में विश्व कप में किया। उन्होंने अपने हॉकी के खेल की शुरुआत पुणे के एस.बी.एस. हाईस्कूल से की। 1985 में उन्हें इम्फाल में होने वाली जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप के लिए महाराष्ट्र की टीम के लिए चुना गया। अगले वर्ष उनका चुनाव सीनियर टीम के लिए हो गया। वह तब से लगातार महाराष्ट्र और मुम्बई की ओर से राष्ट्रीय चैंपियनशिप में खेल रहे हैं। 1991-1992 में लखनऊ में होने वाले फेडरेशन कप में वह मुम्बई टीम में थे, जो विजयी रही थी।

सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी

धनराज पिल्लै को दो बार सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी भी चुना गया। पहली बार 1992 में बेल्जियम, हालैण्ड, इंग्लैंड और स्पेन में हुई सीरीज में चुना गया और दूसरी बार 1994 में लखनऊ में हुए 'इन्दिरा गांधी गोल्ड कप टूर्नामेंट' में उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया। वह वर्ष 2003 तक ही 400 से अधिक मैच खेल चुके थे।

उपलब्धियाँ

  1. 1995 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
  2. 1998-1999 के लिए उन्हें के.के. बिरला फाउडेशन पुरस्कार’ दिया गया।
  3. 1999 में धनराज को ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
  4. वर्ष 2001 में उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया।
  5. 1989 में आल्विन एशिया कप में पहली बार धनराज पिल्लै अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर शामिल हुए, उस टीम ने रजत पदक जीता।

विभिन्न खेल प्रतियोगिताएँ

ओलंपिक -

  1. धनराज पिल्लै सितम्बर, 2000 में सिडनी ओलंपिक में टीम के सदस्य थे। उन्होंने एक गोल किया था और टीम 7वें स्थान पर रही थी।
  2. जुलाई-अगस्त, 1996 में अटलांटा ओलंपिक में टीम आठवें स्थान पर रही। उन्होंने दो गोल किए।
  3. जुलाई-अगस्त, 1999 में बार्सीलोना में टीम के सदस्य थे।

विश्व कप - 2002 में कुआलांलपुर में दो गोल, 1998 में उत्रेची में दो गोल, कैप्टन बने। विश्व 11 खिलाड़ियों की टीम में धनराज का चयन।

चैंपियंस ट्राफी - 2002 में कोलोन में दो गोल, प्लेयर आफ द टूर्नामेंट घोषिता।

एशियाई खेल - 1990 में बीजिंग में और 1994 में हुए एशियाई खेलों में उन्होंने सात पदक प्राप्त किये। अक्टूबर, 2002 में हुए बुसान एशियाई खेलों में भारतीय टीम के अगुआ झण्डा धारक बने। उन्होंने 3 गोल दाग कर टीम को रजत पदक दिलाया।

  1. ‘आल स्टार एशियन गेम्स’ टीम के सदस्य बनाए गए।
  2. 1998 में बैंकाक में टीम ने उनके नेतृत्व में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 10 गोल दागे।
  3. 1994 में हिरोशिमा में व 1990 में बीजिंग में टीम द्वितीय।

एशिया कप -

  1. 1999 में कुआलांलपुर में उन्होंने तीन गोल किये। टीम तीसरे स्थान पर।
  2. 1993 में हिरोशिमा में तथा 1989 में नई दिल्ली में टीम के सदस्य रहे। नई दिल्ली में टीम दूसरे स्थान पर रही।

अन्तरराष्ट्रीय इंदिरा गांधी गोल्ड कप - इस टूर्नामेंट में धनराज पिल्लै 5 बार शामिल हुए। 1990, 1992 तथा 1994 में उन्होंने टाइटिल जीता। 1995 में टीम के सदस्य। 1999 में 7 गोल दाग कर ‘प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बने।

चैंपियंस चैलेंज - 2001 में कुआलालंपुर में प्रथम स्थान। 1 गोल किया।

भारत-पाक सीरीज - 1998 में हुई इस सीरीज में धनराज कप्तान बने।

सैफ खेल - 1995 में चेन्नई में टीम प्रथम।

कॉमनवेल्थ खेल - 1998 कुआलालंपुर में टीम चौथे स्थान पर 5 गोल किए।

सुल्तान अजियन शाह कप - 1991 में मलेशिया में टीम ने यह कप जीता, जिसमें पिल्लै भी शामिल थे।

वर्ष 2000 में कुआलालंपुर में तीसरे स्थान पर। उन्होंने 5 गोल किए। 1996 में ई पोह में खेले। आल्पस अन्तरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट (1992 में आस्ट्रिया) तथा सैफ खेल हॉकी टाइटल (मद्रास, 1995 में) टीम ने जीते। पिल्लै दोनों समय टीम के सदस्य थे।

आस्ट्रेलियाई दौरा - 2000 में सिडनी में टीम तीसरे स्थान पर, एक गोल किया। 2000 में पर्थ में टीम पहले स्थान पर, दो गोल किए।

यूरोप का दौरा - 2002 में एम्स्टेलवीन, 2000 में बर्सिलोना, 2000 में बेल्जियम, 1997 में हम्बर्ग, 1995 में जर्मनी, 1993 में वियना, 1993 में इंटरकांटिनेंटल टूर्नामेंट पोजनान, 1990 में बी.एम.डब्लू. टूर्नामेंट में टीम में खिलाड़ी रहे।

राष्ट्रीय टूर्नामेंट - उपर्युक्त अन्तर्राष्ट्रीय खेलों के अतिरिक्त धनराज ने सीनियर नेशनल (1997), जूनियर नेशनल (1995), राष्ट्रीय खेल (2002), जवाहरलाल नेहरू हॉकी टूर्नामेंट (2002), लाल बहादुर शास्त्री हॉकी टूर्नामेंट (2002), गुरूगप्पा गोल्ड कप (2002, 1999, 1998) में टीम के खिलाड़ी रहे। गुरूगप्पा गोल्ड में 2002 व 1999 में वे ‘मैन ऑफ द फाइनल’ चुने गए।

अंतिम ओलंपिक

एथेंस ओलंपिक, 2004 में भारतीय हॉकी टीम से बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन टीम एथेंस में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और अंत में सातवें स्थान पर रही। अंतिम समय पर टीम का कोच बदला जाना भी टीम के लिए घातक सिद्ध हुआ। धनराज पिल्लै का यह अंतिम ओलंपिक था।


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