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12:35, 27 अप्रैल 2011 का अवतरण
- आगरा से आठ मील पूर्व में स्थित सामूगढ़ का मैदान, रोगग्रस्त सम्राट शाहजहाँ के पुत्रों दारा शिकोह और उनके दो छोटे भाइयों औरंगजेब तथा मुराद की समर्थक सेनाओं के बीच युद्ध स्थल बना था।
- यह युद्ध 29 मई 1558 को राज्य सिंहासन के लिये हुआ था। इसमें प्रचण्डता के साथ संघर्ष हुआ। दोनों दल वीरता से लड़े। दुर्भाग्य से दारा तीर से घायल हो गया। वह हाथी छोड़कर घोड़े पर चढ़ गया। इसी एक भूल ने युद्ध के भाग्य का निर्णय कर दिया।
- वह अपने स्वामी के हाथी का होदा ख़ाली देखकर बची हुई सेना उसे मरा हुआ समझ कर अत्यंत घबराहट में मैदान से तितर-बितर हो गई। निराशा से भरा दारा अपने पड़ाव और बन्दूकों को अपने शत्रुओं के द्वारा अधिकृत किये जाने के लिए छोड़कर आगरा के लिए भाग चला, वहाँ वह अकथनीय रूप से दीन अवस्था में पहुँचा। इस निर्णायक युद्ध में दारा की पराजय हुई।
- इस प्रकार सामूगढ़ की लड़ाई ने शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार के युद्ध का व्यावहारिक रूप से निर्णय कर दिया। दारा की अपने पिता की गद्दी को प्राप्त करने की समस्त आशाएँ धूल में मिल गयीं।
- इस प्रकार दारा की पराजतय के कारण औरंगजेब के लिए अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करना और भी सुगम हो गया। यह बहुत अच्छी तरह कहा जा सकता है कि हिन्दुस्तान के राज सिंहासन पर औरंगजेब का अधिकार सामूगढ़ में प्राप्त उसकी विजय का तर्कसंगत परिणाम था। इस विजय के शीघ्र बाद वह सेना लेकर आगरा गया। उसने 8 जून 1658 को आगरा पर अधिकार कर लिया।
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