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मुग़लकालीन चित्रकला

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मुग़लकालीन चित्रकला का प्रेरणा स्रोत 'समरकन्द' एवं 'हेरात' रहा है। तैमूरी चित्रकला शैली को चरमोत्कर्ष पर ले जाने का श्रेय 'बिहजाद' को जाता है। 'बिहजाद' को पूर्व का 'राफेल' भी कहा जाता है। बाबर ने अपनी आत्मकथा में 'बिहजाद' की प्रशंसा की है। यह बाबर के समय का महत्वपूर्ण चित्रकार था। बाबर ने इससे प्रेरित होकर इसके द्वारा निर्मित चित्रों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया ।चूँकि बाबर का भारत में शासनकाल अल्पकालीन था, इसलिए वह चित्रकला के क्षेत्र में कुछ अधिक नहीं कर सका।

मुग़ल सम्राटों का योगदान

भारत में चित्रकला के विकास में अधिकांश राजाओं ने अपना-अपना योगदान दिया है, लेकिन मुग़ल शासकों का योगदान इसमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। मुग़ल शासकों द्वारा करवाई चित्रकारी में ईरानी और फ़ारसी प्रभाव साफ़ दिखाई देता है। मुग़ल चित्रकारों ने एक नई चित्रकला शैली को विकसित कर दिया था। इस शैली ने भारत में अपनी एक ख़ास जगह बनाई है। वे मुग़ल शासक जिन्होंने चित्रकला के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दिया, उनका विवरण इस प्रकार से है-

हुमायूँ

बाबर के पुत्र हुमायूँ ने फ़ारस एवं अफ़ग़ानिस्तान के अपने निर्वासन के दौरान मुग़ल चित्रकला की नींव रखी। फ़ारस में ही हुमायूँ की मुलाकात वहाँ के दो महानतम कलाकार - 'मीर सैय्यद अली' एवं 'ख़्वाजा अब्दुस्समद' से हुई हुमायूँ ने अब्दुस्समद द्वारा बनाई गई कुछ कृतियों का संकलन जहाँगीर की ‘गुलशन चित्रावली’ में करवाया है। इन दोनों ने मिलकर अकबर के लिए एक ‘उन्नत कला संगठन’ की स्थापना की। हुमायूँ ने 'मीर सैय्यद अली' को 'नादिर -उल-अस्त्र' तथा 'अब्दुस्समद' को 'शीरी कलम' की उपाधियों आदि से सम्मानित किया था।

अकबर

'हम्जानामा' मुग़ल चित्रकला की प्रथम महत्वपूर्ण कृती है, इसे 'दास्ताने-अमीर-हम्जा' भी कहा जाता है। 'हम्जानामा' में लगभग 1200 चित्रों का संग्रह है, जिसमें लाल, नीले, पीले, कासनी, काले एवं हरे रंगों का प्रयोग मिलता है।

'मीर सैय्यद' एवं 'अब्दुस्समद' के अतिरिक्त 'आईने अकबरी' में अबुल फ़ज़ल ने लगभग 15 चित्रकारों का उल्लेख किया है, जिनका सम्बन्ध अकबर के राजदरबार से था। ये चित्रकार हैं - 'दसवंत', 'बसावन', 'केशव लाल', 'मतुकुंद', 'फ़ारुक कलमक', 'मिशकिन', 'माधों', 'जगन', 'महेश', 'शेमकरण', 'तारा', 'सावंल', 'हरिवंश' एवं 'राम'। अकबर ने अपने शासन काल में एक अदने से कलाकार 'दसवंत' को ‘साम्राज्य का प्रथम अग्रणी’ कलाकार घोषित किया था। इसकी दो अन्य कृतियाँ हैं - 'खानदाने-तैमूरिया' एवं 'तूतीनामा'। बाद में दसवंत मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया। उसने 1584 ई. में आत्महत्या कर ली। 'रज्मनामा' पांडुलिपि को मुग़ल चित्रकला के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है।

'बसावन' को चित्रकला के सभी क्षेत्रों - रेखांकन, रंगों के प्रयोग, छवि-चित्रकारी, भू-दृश्यों के चित्रण में महारत प्राप्त थी। इसलिए इसे अकबर के समय का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार माना जाता है। बसावन की सर्वोत्कृष्ट कृति एक दुबले पतले घोड़े के साथ 'मजनू' का निर्जन एवं उजाड़ क्षेत्र में भटकता हुआ चित्र था। अकबर के समय में पहली बार 'भित्ति चित्रकारी' की शुरुआत हुई थी।

जहाँगीर

मुग़ल सम्राट जहाँगीर के समय में चित्रकारी अपने चरमोत्कर्ष पर थी। उसने 'हेरात' के 'आगा रजा' के नेतृत्व में आगरा में एक 'चित्रणशाला' की स्थापना की। जहाँगीर ने हस्तलिखित ग्रंथों की विषय वस्तु को चित्रकारी के लिए प्रयोग करने की पद्धति को समाप्त किया, और इसके स्थान पर छवि चित्रों, प्राकृतिक दृश्यों आदि के प्रयोग की पद्धति को अपनाया। जहाँगीर के समय के प्रमुख चित्रकारों में 'फ़ारूख बेग', 'दौलत', 'मनोहर', 'बिसनदास', 'मंसूर' एवं 'अबुल हसन' थे। 'फ़ारूख बेग' ने बीजापुर के शासक सुल्तान 'आदिलशाह' का चित्र बनाया था।

जहाँगीर के निर्देश पर चित्रकार 'दौलत' ने अपने साथ चित्रकार 'बिसनदास', 'गोवर्धन' एवं 'अबुल हसन' के छवि चित्र एवं स्वयं अपना एक छवि चित्र बनवाया। सम्राट जहाँगीर ने अपने समय के अग्रणी चित्रकार बिशनदास को फ़ारस के शाह के, उसके अमीरों के, तथा उसके परिजनों के यथारूप छवि-चित्र बनाकर लाने के लिए फ़ारस भेजा था। जहाँगीर के विश्वसनीय चित्रकार 'मनोहर' ने उस समय के कई छवि चित्रों का निर्माण किया।

फ़ारसी प्रभाव से मुक्ति

जहाँगीर के समय में चित्रकारों ने सम्राट के दरबार, हाथी पर बैठ कर धनुष-बाण के साथ शिकार का पीछा करना, जुलूस, युद्ध स्थल एवं प्राकृतिक दृश्य फूल, पौधे, पशु-पक्षी, घोड़ें, शेर, चीता आदि चित्रों को अपना विषय बनाया। जहाँगीर के समय की चित्रकारी के क्षेत्र में घटी महत्वपूर्ण घटना थी - मुग़ल चित्रकला की फ़ारसी प्रभाव से मुक्ति। पर्सी ब्राउन के लेखानुसार, “जहाँगीर के समय मुग़ल चित्रकला की वास्तविक आत्मा लुप्त हो गयी। इस समय चित्रकला में भारतीय पद्धति का विकास हुआ। यूरोपीय प्रभाव, जो अकबर के समय से चित्रकला पर पड़ना प्रारम्भ हुआ था, अभी भी जारी रहा। अबुल हसन ने 'तुजुके जहाँगीर' के मुख्य पृष्ठ के लिए चित्र बनाया था।

'उस्ताद मंसूर' एवं 'अबुल हसन' जहाँगीर के श्रेष्ठ कलाकारों में से थे। उन्हें बादशाह ने क्रमशः 'नादिर-उल-अस्र' एवं 'नादिरुज्जमा' की उपाधि प्रदान की थी। उस्ताद 'मंसूर' दुर्लभ पशुओं, बिरले पक्षियों एवं अनोखे पुष्प आदि के चित्रों को बनाने का चित्रकार था। उसकी महत्वपूर्ण कृति में 'साइबेरिया का बिरला सारस' एवं बंगाल का एक पुष्प है। 'उस्ताद मंसूर' पक्षी-चित्र विशेषज्ञ तथा 'अबुल हसन' व्यक्ति-चित्र विशेषज्ञ था। यूरोपीय प्रभाव वाले चित्रकारों में 'मिशकिन' सर्वश्रेष्ठ था।

जहाँगीर का कथन

जहाँगीर उन चित्रों को अच्छी क़ीमत देकर ख़रीद लेता था, जो उसकी सौन्दर्य भावना को संतुष्ठ करते थे। जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि, 'कोई भी चित्र, चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो या फिर जीवित व्यक्ति द्वारा, मैं देखते ही यह तुरन्त बता सकता हूँ कि, यह किस चित्रकार की कृति है। यदि किसी चेहरे पर आँख किसी एक चित्रकार ने, भौंह किसी और ने बनाई हो तो भी यह जान लेता हूँ कि आँख किसने और भौंह किसने बनाई है।' "जहाँगीर के समय को चित्रकला का 'स्वर्ण काल' कहा जाता है"।

शाहजहाँ

अपने शासन के आरम्भिक वर्षों में शाहजहाँ ने चित्रकारों को काफ़ी आज़ादी दे रखी थी, किन्तु रुचि परिवर्तनों के कारण चित्रकारों की संख्या में कटौती कर दी गयी थी। उसके दरबार के प्रमुख चित्रकार 'मुहम्मद फकीर' एवं 'मीर हासिम' थे। शाहजहाँ को दैवी संरक्षण में अपने चित्र बनवाना सदा प्रिय रहा। शाहजहाँ का पुत्र दारा शिकोह, चित्रकला का पोषक था। जैसा कि 'इंडिया ऑफ़िस' में सुरक्षित उसके चित्रों के संग्रह से सिद्ध होता है। उसकी अकाल मृत्यु से कला और साम्राज्य को बड़ा आघात पहुँचा।

औरंगज़ेब

औरंगज़ेब ने चित्रकारी को इस्लाम के विरुद्ध मानकर इससे घृणा की, पर अपने शासन काल के अन्तिम समय में उसने चित्रकारी में कुछ रुचि ली, जिसके परिणामस्वरूप उसके कुछ लघु चित्र शिकार खेलते हुए, दरबार लगाते हुए एवं युद्ध करते हुए बने। मुग़ल शासन के इस दौर में चित्रकारी को मुग़ल दरबार में अपने जीविकापार्जन के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। अतः मुग़ल दरबार के चित्रकारों ने स्वतंत्र राज्यों में बसकर अपनी चित्रकारी को जीवित रखने प्रयास किया। औरंगज़ेब ने अकबर के मक़बरे में बने चित्रों को चूने से पुतवा दिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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