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'''अद्वय''' अर्थात 'द्वित्व भाव से रहित'। '[[महायान]]' [[बौद्ध दर्शन]] में भाव और अभाव की दृष्टि से परे ज्ञान को 'अद्वय' कहा जाता है। इसमें अभेद का स्थान नहीं होता। इसके विपरीत अद्वैत भेदरहित सत्ता का बोध कराता है।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%AF|title= अद्वय|accessmonthday=11 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
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'''अद्वय''' अर्थात् 'द्वित्व भाव से रहित'। '[[महायान]]' [[बौद्ध दर्शन]] में भाव और अभाव की दृष्टि से परे ज्ञान को 'अद्वय' कहा जाता है। इसमें अभेद का स्थान नहीं होता। इसके विपरीत अद्वैत भेदरहित सत्ता का बोध कराता है।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%AF|title= अद्वय|accessmonthday=11 जुलाई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
  
 
*[[अद्वैतवाद|अद्वैत]] में ज्ञान सत्ता की प्रधानता होती है और अद्वय में चतुष्कोटिविनिर्मुक्त ज्ञान की प्रधानता मानी जाती है।
 
*[[अद्वैतवाद|अद्वैत]] में ज्ञान सत्ता की प्रधानता होती है और अद्वय में चतुष्कोटिविनिर्मुक्त ज्ञान की प्रधानता मानी जाती है।

07:50, 7 नवम्बर 2017 का अवतरण

अद्वय अर्थात् 'द्वित्व भाव से रहित'। 'महायान' बौद्ध दर्शन में भाव और अभाव की दृष्टि से परे ज्ञान को 'अद्वय' कहा जाता है। इसमें अभेद का स्थान नहीं होता। इसके विपरीत अद्वैत भेदरहित सत्ता का बोध कराता है।[1]

  • अद्वैत में ज्ञान सत्ता की प्रधानता होती है और अद्वय में चतुष्कोटिविनिर्मुक्त ज्ञान की प्रधानता मानी जाती है।
  • माध्यमिक दर्शन अद्वयवाद्वी और शंकर वेदांत तथा विज्ञानवाद 'अद्वैतवादी दर्शन' माने जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अद्वय (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 11 जुलाई, 2014।

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